Tuesday 20 October 2015



जय हो....सिद्धि-विनायक बप्पा की जय हो...ध्यान से....बस पांच-मिनिट....आनन्द के मार्ग में कोई शर्त लागू नहीं...आनन्द में बाध्यता बन्धन समान है....परन्तु चित्रों का अवलोकन अवश्य करे....जिस को जान की परवाह नहीं, उसके लिए जान से मारने की धमकी व्यर्थ....Hands-up कहने का कोई असर नहीं......जो फेल होने से नहीं डरता, वह प्रावीण्य सूचि में अवश्य आ हकता है...’पहला नम्बर’....”FIRST RANK’....जिसको प्रसिद्धी का मोह नहीं, वही सिद्धि का अधिकारी माना जा सकता है...OFFICER....सबसे कम संख्या परन्तु विलुप्त कदापि नहीं...निर्णय को पहचानने की कला...और यह मान कर चलिए सिद्धि रुपयों से नहीं खरीदी जा सकती है....न बेचीं जा सकती है....न हार का डर, न जीत का लालच....हद से ज्यादा साधारण चीज.....’बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख’.....”सिद्धि” तो सहज ‘रिद्धि-सिद्धि’ में से एक है....कोई निश्चिन्त माप-दण्ड नहीं....नापने या मापने का झंझट नहीं....बिल्कुल ‘सवा किलो हवा’ के माफ़िक....यत्र-तत्र-सर्वत्र.....गोल-मोल....सहज ‘रोटी’ के समान...सब्जियां अनेक मगर रोटी एक....दम लेकर दम देने वाली.....मेहनत की रोटी....मुहँ में पानी न आ जाये....बात सिद्धि की ही हो रही है....जो भूखे पेट ही सहज आती है....’भरा-पेट तो उबासी लाता--मस्तिष्क में शयन समाता’.....सहज चंचलता....एक खड़ी, एक पड़ी, एक छमाछम नाच रही....सुप्तावस्था में विलुप्तप्राय.....रोटी कभी विश्राम नहीं करती....सहज नृत्य.....सहज स्त्री-तत्व...गंगा, जमना, सरस्वती.....सहज-लक्ष्मी....गज-लक्ष्मी...सहज सिद्धि....जो चीज मालुम नहीं है...यदि जासूसी नहीं आती तो क्या हुआ ???.....प्रार्थना अर्थात सहज “राम-राम सा”....50-50..तो कर ही सकते है....आमने-सामने....एकांत के सत्य को सार्वजनिक करना....बेहद आसान....बेहद साधारण.....एक परिधि निर्धारित...मात्र एकाग्रता का बंधन.....POINT TO POINT…..सर्व-श्रेष्ठ....फलित-युग्म.....गुरु-शिष्य....सम्मान-स्नेह का












आदान-प्रदान...यह मान कर कि “रिद्धि-हिद्धि” में सिद्धि का 50% का हक़ है तो सिद्धि यह प्रतिशत सिद्ध करने का प्रयत्न तो कर सकती है...और इतिहास कहता है कि ‘सिद्ध करो, सिद्ध कहलाओ’....यह बात गणितीय गणना भी सहज दोहरा कर सिद्ध करती है...इतिहास ताउम्र, तमाम उम्र सिद्धों को नमस्कार कहता रहेगा....SO SIMPLE....नमोकार मन्त्र...मात्र सम्मान का प्रतिक... can be recited at any time...”णमो सिद्धाणं”.... Siddhas (liberated souls)....मात्र अरिहंत और आचार्य के बीच ताल-मेल....प्रार्थना के परिश्रम से सिद्ध करने का प्रयास...परिधि का परकोटा....सीमा-पार जाने के लिए ‘पासपोर्ट (PASSPORT)’ बनता है...लक्षमण-रेखा पवित्र मानी जाती है....समकक्ष का परकोटा सिद्धि को सिद्ध कर सकता है....आयाम-स्थापना....”खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर से पहले | खुदा बन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है”.....और जब सिद्धि का आभास होता है तो मन ही मन में एक ‘आकाशवाणी’ हो सकती है.... मेरी ईश्वर में पूर्ण आस्था है...मैं मानता हूँ कि ईश्वर ने आज तक जो किया वो अच्छा किया है, ईश्वर अब जो कर रहा है वो भी अच्छा कर रहा है, ईश्वर आगे जो करेगा वो भी अच्छा ही करेगा”...‘आकाशवाणी’ कब होगी ?....’मालूम नहीं’...परन्तु सुना है—‘इन्तजार का फल मीठा होता है’....सहज उपलब्ध है...यत्र-तत्र-सर्वत्र....और आश्रमों में क्लास नहीं लगती मात्र सत्संग होता है...जहाँ एक ही नियम...’समझदार को इशारा काफी है’....सुना है---‘खड्ग सिंह के खड़कने से खड्कती है खिड़कियाँ....और खिड़कियों के खड़कने से खडकता है खडग सिंह’...मजा तो बहुत आता है परन्तु समझने का प्रयास अवश्य करना होगा....समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)….

No comments:

Post a Comment