Thursday 29 October 2015

प्रधान - मित्र.....

@ ...मात्र प्रधान-मित्रों के लिये...जरुरी नहीं कि हर कोई ध्यान से पढ़ें...पर हर शब्द ध्यानपूर्वक लिखा गया है....इस 'काल्पनिक-कहानी' का "वास्तविक-नायक" शब्दों के माध्यम से स्वयं मन-मंदिर में प्रकट होगा...कोई व्यक्ति-विशेष नहीं....परन्तु कहलायेगा मात्र "प्रधान-मित्र"...भला वह कौन ???....और अगर मालूम हो जाये तो आगे और भी प्रश्न...कब ?, क्यों ?, कैसे ?....बेहद वृहद् अध्ययन करने की क्षमता चाहिए....इसके तत्पश्चात यह निष्कर्ष हो सकता है कि प्रधान-मित्र "अति-विशिष्ट" ही होता होगा...और यह सब, साधारण व्यक्ति के लिये असाधारण चर्चा अवश्य हो सकती है...कुल मिला कर किसी भी प्रधान-मित्र को जानने-पहचानने के अनेक दांव-पेंच....और जानना आवश्यक...भला प्रधान तो प्रधान ही होता है...सहज-अग्रणी...सहज-मनोनित...सहज-स्वीकार...यत्र-तत्र-सर्वत्र...गावँ में, गली में, शहर में, घर में, देश में, परदेश में....मंदिर में, मठ में, आश्रम में....यंत्र में, तंत्र में, मंत्र में....कुल मिला कर "महत्वपूर्ण"...किसलिये ???...और मामूली सा उत्तर है इसका....सिर्फ "संबल" के लिए...Only One Word Answer....उत्तर सुन कर एक पल ऐसा लगता है कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया....तब तो यह भी मानना होगा कि पहाड़ खोदना किसी 'ऐरे-गैरे' का काम नहीं...पहाड़ो में, पत्थरों में ताकत झोंकने के लिए तो 'दम' चाहिये....शत-प्रतिशत....'दल-बल'...समान बल सम्पूर्ण दल में...."संबल".....उदार या कठोर...राम जाने...परन्तु बल का समान वितरण...कमांडो...अनेक का कार्य एक करे...और एक का बल अनेक में...एक बल रूप अनेक...उदारता या कठोरता...उदारता-पूर्वक...'सात्विक-नियंत्रण'...साम, दाम, दंड, भेद...'हल्लू से' या 'लाठी में आवाज नहीं' या 'चक्की वही जो बारीक़ पिसे' या 'हन्टर वही जो आवाज का दम भरे'....और आनन्द यह है कि...'हल्लू कभी सुनाई नहीं देता' अथवा 'आवाज कभी दिखाई नहीं देती'....शायद इसीलिये 'आकाशवाणी'....जहाँ आवाज सुनाई देती है....प्रत्येक प्रधान-मित्र की...प्रत्येक प्रधान-मित्र को...मन की बात....मात्र एकान्त से मात्र सार्वजानिक होने के लिये...सहज एकाग्र...सहज "संजय" समान....'जैसी दृष्टि-वैसी सृष्टि'...सिर्फ कहने-सुनने के लिये...soft-touch...'हाल-चाल कैसे है ?'....'हाल कैसे है जनाब के ?'....पिता-पुत्र का सहज संवाद....खुद की सरपरस्ती....स्वयं की सत्ता.....सब-कुछ पता...फिर पुत्र कुछ तो इजहार करता है....'विनायक-उवाच'....कुछ-कुछ या बहुत-कुछ...पर स्मरण रहे, 'सब-कुछ' तो राजा का अधिकार....पिता की सत्ता...सहज-राज्य पक्ष....'विनायक-बन्दगी'...आश्रम की बन्दगी....सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा का अहसास...क्षणिक भक्ति में महादेव तथा महादेवी सहज प्रसन्न....मात्र सात्विक क्रमचय-संचय....स्वयं के बल को वितरित करना...सम्पूर्ण परिधि "पावन"....स्वयं को गौरान्वित महसूस करने का सशक्त पथ...शायद इसीलिये प्रधान-मित्र सहज 'लथ-पथ'.....प्रत्येक जीवित शरीर में जीवित अर्थात जाग्रत 'मस्तिष्क'.....अर्थात सर्व-प्रथम तो मस्तिष्क ही स्वमेव, स्वतः 'प्रधान-मित्र'....यही 'मन'....यही 'आत्मा'...."हम"...एक तो स्वयं , दूसरा कौन ???....Very Simple...'जिसे हम चुने या 'JOIN' करे....सहज दाखिला....Admission....मन-मंदिर में....कौन, किसको बुलंदियों पर पहुँचाता है ?...भगवान भक्त को या भक्त भगवान को...'घी तो थाली में ही सुशोभित'....मात्र समरसता...और थाली हो या घी...दोनों का सहज स्वामी...सिर्फ और सिर्फ...मात्र 'प्रधान-मित्र'....प्रत्येक या कोई भी या सभी या हर कोई या हर एक...यह तो मात्र भक्त और भगवान के मध्य भावनाओं की बात है...in terms of human science...."CHEMICAL-IMBALANCE"....'लोचा'...आखिर अनुभव तो 'कम से कम'.....मन से मन की बात...लोचा मतलब.....खुद को मंदिर में खड़ा करना....सारे वाद्द्य-यंत्र छोड़ कर...खरी-बात....नहीं बजाना बैठ कर....मंदिर की घंटी....सिमित-समय या समय-अंतराल...राम जाने....पर चित्त भी अपना और पट्ट भी अपनी....भले ही कोई भी उछाले "सिक्का"....सिर्फ उछालने का खेल....खरीदने-बेचने का "TENSION" नहीं...खास सौदा 'खास' अथवा प्रधान-मित्रो के मध्य....और जीत तो 'जय' की पक्की.....'वीरू' से अलग...यह कहने के लिए कि 'ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे'...'जय-जवान'...अमर-जवान....सिंह-स्वरूप...अंतिम समय तक 'गर्जना'...'जय' अमर हो कर सदैव अग्रणी रहेगा....देशी-कलाकार...यार मेरा, SUPERSTAR.....सोच कर बोलने का परिणाम..."सर्वे भवन्तु सुखिनः".....सिक्का तो कलाकार ही 'DESIGN' करता है....और संगीत भी कलाकार की 'PROPERTY'....ध्वनि या प्रतिध्वनि कुछ भी....सहज 'नाद'....आखिर कोई 'प्रधान-मित्र' यूँ ही "मन की बात" कहने के लिये 'समय' नहीं निकालता है....निरन्तर, बारम्बार, लगातार....सहज आकाशवाणी....'सर्वे भवन्तु सुखिनः'....यक़ीनन विरोध भी जय-जयकार सिद्ध हो सकता है....आखिर स्वर को सात्विकता से परिवर्तन करना बेहद आसान.....एक श्वास-दो स्वर....एक कला-अनेक प्रेमी.....और साधारण के लिए बिल्कुल साधारण....दोनों बेशक अच्छी आत्माएँ...'मन की बात' को 'मन' से ही सुना जाता है...परम-आनन्द.....दुनिया को कौन चला रहा है ?....आस्था की आवाज है---"ईश्वर"...परन्तु 'यंत्र-तंत्र-मन्त्र' कुछ , कुछ-कुछ, बहुत-कुछ....कहते है....और 'षडयंत्र'.....'कुछ भी नहीं कहते'....अच्छी आत्मा को शुद्ध रूप से मस्तिष्क द्वारा मात्र आत्म-सम्मान हेतु 'ब्रहम-देव' माना गया है...तब तो सहज शाश्वत सात्विक प्रधान-प्रार्थना....उन सबके लिये...जो दौड़े जा रहे है...पहली बारिश में भी भीगने से इनकार नहीं..यही जीना है.....'जियो और जीने दो'....मरने का अनुभव तो अभिनय से भी नहीं आता...मन बहलाने के लिये टहलना जरुरी है....तब तक अगली मुलाक़ात...हण्ड्रेड-परसेंट....इधरिच...येइच-टाइम...Till Then.....Don't Worry......Be Happy......सायोनारा....और हाँ....सबको सब-कुछ मालूम है...कब ?, क्यों ?, कैसे ?...'सहज प्रश्न'....'सरल-उत्तर'....हमेशा के लिये.....मै 'मालिक' अपनी मर्जी का, पर मेरा "मालिक" कोई और....ठीक जैसे....Train Your MIND, To Mind Your TRAIN.....संकट में घड़ी की चाल धीमी लगती है और प्रसन्नता में यही घडी पंख लगा कर उडती प्रतीत होती है....शायद यही सबसे बड़ा भ्रम है....सादर नमन....जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष"....जय हो..."विनायक समाधान"...@...91654-18344....Just An idea.....To Feel Or Fill..... To Fit With Faith....Just For Prayer..... Just for Experience....INDORE / UJJAIN / DEWAS...











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