Tuesday 13 October 2015

जय हो.....जिस परिवार में 'सुन्दर व सुशील' स्त्रियाँ हो तथा 'स्वस्थ और ईमानदार' पुरुष हो...तो सिक्का उछालने पर...न हार, न जीत...हर दावं सटीक...पत्रिका, हस्त-रेखा या सम्पूर्ण ज्योतिष-शास्त्र...समस्त सारस्वत-विद्या सहज हर्षित...मिले सुर मेरा-तुम्हारा तो.....सुर बने 'हमारा'...सहज युग्म...स्व-आकलन की योग्यता...बहुजन हिताय, बहुजन लाभाय...हठ-धर्मिता का प्रयोग पूर्ण-रूपेण वर्जित...शब्दों के लेन-देन पर प्रतिबन्ध नहीं अपितु नियंत्रण...सहज अटूट-बंधन...यह स्मरण करते हुए कि बंधवा-मजदूर प्रतिबंधित माने जाते है...क्योंकि बंधवा तो वास्तव में मालिक हो सकता है...समस्त सेवको का सहज पालनहार....और सेवक का काम सहज आसान...मालिक की सेवा...एक ही तो है, देखते है....कितना काम करवाएगा....सुना है--"Boss is always RIGHT"...Because he has all 'RIGHTS'...कही यह बात "मालिक" के लिए तो नहीं है ???...अगर ऐसा है तो काम करना, नुकसान का काम हरगिज नहीं....और मजे की बात...साहब के बंगले में काम करते हुए साहब के दर्शन बहुत साधारण बात है..और फिर.....मंजूर...मंजूर...मंजूर....हर मांग जायज...हुक्म सर, आँखों पर...मात्र दहलीज तक..एक परकोटा कायम रहे...सहजता में अशुद्धि का सम्मिश्रण जायज नहीं...कदापि नहीं...'उसकी आँखे हजार' और ' हजार आँखों वाला'...यह बात भी मालिक के बारे में ही हो सकती है....हम स्वयं दो-आँखों वाले और "तीसरी-आँख" तो 'भोले' की...कही मालिक का नाम 'भोले' तो नहीं....क्योंकि 'त्रिनेत्र' में सहस्त्र धाराओं की शक्ति....साक्षात् गज-शक्ति....'विनायक-अध्ययन'....अर्थात "प्रार्थना की सुबह अनन्त" ही हो सकती है...जब आँख खुली तब सवेरा....Good Morning.....सिर्फ "सु-प्रभात"....मात्र 'सुफल'....good noon या goodnight की चर्चा शत-प्रतिशत 'तत्पश्चात'... ....प्रत्येक चित्र, मित्र के रूप में....एक ‘निमंत्रण-पत्रिका’ या ‘VISITING CARD’ या ‘BANNER’ या ‘HOARDING’....जो भी हो....पर है....BECAUSE OF YOU…..हम इस दुनिया-दारी में गुम हो जाते है....तब गुम-शुदा की तलाश या गुमनाम.....तब कोई तो हो जो FIR अर्थात्....’रपट दर्ज करे’.....और गाँव की पुलिया पर लिखा है कि पानी ज्यादा होने पर “रपट पार करना मना है”....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)...







1 comment:

  1. हताश होने के कारण दस और हताश करने के बीस.....और हताश व्यक्ति के लिए दुनिया में एक से बढ़ कर एक व्यंग ठीक जैसे विष में बुझे तीर....असफलता में उम्मीद से दो-गुना व्यंग....अपनेपन में भी अपमान...और मजे की बात यह है कि सभी अपने...अपनापन की कमि न थी तो अब परिवर्तन क्यों ? कैसे ?...ठीक कुरुक्षेत्र का मैदान....ठीक अर्जुन के समान...श्रेष्ठतम होते हुए भी कोई समाधान नहीं...

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