Sunday 18 October 2015


शब्द वाक्य बन जाते है....जैसे झरने नदी बन जाते है,,,,और वाक्य से यात्रा शुरू...जैसे नदी की यात्रा....मात्र सागर में सरिता....और शब्दों की यात्रा कहाँ तक ???....मात्र मन तक....मात्र आँखों देखी.....बराबर “मस्तिष्क” तक पंहुच जाय....समस्त ज्ञानेन्द्रियों का परम गुरु-देव....शब्द ही एक-मात्र माध्यम है...मन को छूने का....’हम-सब’ जानते है.....और....हम ‘सsssब’ जानते है.....वाकई हमारा मन हमेशा चर्चारत हो सकता है....मनुष्य की गणनाये....हमेशा श्रेष्ठ मानी जाती रही है....मनुष्य स्वयं के समकक्ष अनेक मस्तिष्क उपस्थित करने की क्षमता रखता है....ROBOT….परन्तु बात तो मन की हो रही है....’इन्टेलीजेन्ट’ या ‘ब्रिलियंट’ या ‘जीनियस’ शब्द तो निश्चिन्त रूप से मनुष्य के लिए उपयोग होता है....शायद इसी आधार पर सम्पूर्ण विश्व में “हम-सब भारतीय है” पर चर्चा हो रही है.....हम अक्सर चमत्कार को जिज्ञासा की दृष्टि से देखते है....यह भूलते हुए कि “पूर्वाभास” मनुष्य का नैसर्गिक गुण है....शत-प्रतिशत-शाश्वत सत्य....”विनायक-सत्य”.....पूर्वाभास....कर्म से पहले या बाद में....मुख्य आधार तो मात्र सात्विक कर्म....सुना है---‘खड्ग सिंह के खड़कने से खड्कती है खिड़कियाँ....और खिड़कियों के खड़कने से खडकता है खडग सिंह’...मजा तो बहुत आता है परन्तु समझने का प्रयास अवश्य करना होगा...स्वयं को...OUTPUT का चमत्कार से कोई लेना-देना नहीं....लेना न देना, मगन रहना...मात्र प्रतिशत % की भाषा.....तब सहज INPUT क्या हो ???.....सहज जागरूकता.....दवा खाने से पहले मरीज दवा का स्वरूप (लेबल) जान ले तो स्वस्थ होने की सम्भावनाये बढ़ जाती है...”मन ही मन में’...अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…











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