Friday 30 October 2015

TO EACH & EVERY OFFICER....WITH DUE RESPECT.....REGARDS....... और यह दावा है कि प्रत्येक “अधिकारी-मित्र” इस पत्र को पढना चाहेगा....बारम्बार....जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर, टूटे-फूटे शब्दों में सहेजने का प्रयास, बस वही लिखने का प्रयत्न....शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश....."पत्र" इंगित करता है कि प्रत्येक "मित्र" अधिकारी बनने का पात्र....सावधान बात "मान्यता" की है....निरस्त हो जाए तो लेने के देने पड़ जाये....चालु बन्द न हो जाये...क्योंकि बन्द को चालु करने में बहुत मेहनत....सबके घर में आटे का डिब्बा...चाहे छोटा या बड़ा...और दाने-दाने पर लिखा है, खाने वाले का नाम....इससे तो शुरुआत ही बेहद आसान....और चाहे घर हो या कार्यालय...."अधिकारी" होने की 'मान्यता'....मात्र मानवता की 'मित्र'...'मान्यता' ही मूल आधार...अर्थात प्रत्येक मानव 'अधिकारी' हो कर, हर-एक का मित्र है...अधिकारी किसी से भी नाराज नहीं हो सकता है....असत्य हो सकते है वे लोग, जो कहते है....'साहब नाराज है'....या....'अरे ! साहब आपसे नाराज थे, पर मैंने उन्हें समझा दिया'....भूल जाते है वे लोग कि साहब समझते नहीं बल्कि समझाते है....अधिकारी की नियुक्ति या प्रति-नियुक्ति् तो केवल.... स्थिति को नियंत्रण प्रदान करने हेतु या स्थिति की गंभीरता को समझने के लिये....जनसेवक द्वारा....जन-सेवा...'बहुजन-सेवाय'...हित और लाभ तो किसी और की कृपा...वही "उच्च-अधिकारी"....सदैव निष्पक्ष वाणी....और अनिवार्य रूप से प्रत्येक प्राणी..."तेरे डिब्बे की वो दो रोटियाँ..
कहीं बिकती नहीं..
माँ, महंगे होटलों में आज भी..
भूख मिटती नहीं"...!...अन्न का 'अधिकारी' अर्थात भोजन का 'अधिकारी'...यत्र, तत्र, सर्वत्र....."भूखा कोई नहीं सोता"....भला नींद आना कैसे सम्भव...कमि-पेशी अधिकारी की जिम्मेवारी...क्योंकि बस एक अधिकारी बराबर दस....कम से कम....सहज शून्य को भी पीठ पर लाद कर....कहलाये "दस-नम्बरी"...मात्र एक अधिकारी...प्रत्येक गुणित दस बराबर...सहस्त्र-आधार...प्रत्येक कोण से सशक्त....जो छुट्टी की भी छुट्टी कर दे...परिश्रम का अंध-भक्त....खुद भी जाने, औरो से भी कहे...कठोर या उदार...सहज-सहिष्णु....काम करते रहो, सीख जाओगे....मित्रों की मदद करते जाओ, बड़े आदमी बन जाओगे.....बेरोकटोक.....बेहिचक....बेशक.....बेआवाज...लेकिन इमानदारी से....बेईमानी सम्भव नहीं...वो देख रहा है क्योंकि "वो है"...उच्च-अधिकारी स्थान की दुरी को भी ज्ञान की नजदीकी से समीप करे....दुनिया गोल है अर्थात 'शून्य'...जहाँ से शुरू पुन: वंही....और शून्य सहज दस को दस लाख बनाये....मै 'मालिक' अपनी मर्जी का, पर मेरा "मालिक" कोई और....ठीक जैसे....Train Your MIND, To Mind Your TRAIN.....संकट में घड़ी की चाल धीमी लगती है और प्रसन्नता में यही घडी पंख लगा कर उडती प्रतीत होती है....शायद यही सबसे बड़ा भ्रम है....सादर नमन....जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष"....यही है आदेश....अतिशीघ्र दूर हो स्वयं के दोष....जय हो..."विनायक समाधान"...@...91654-18344....Just An idea.....To Feel Or Fill..... To Fit With Faith....Just For Prayer..... Just for Experience....INDORE / UJJAIN / DEWAS...








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