Wednesday 14 October 2015


….जय हो...सादर नमन...सहज “विनायक-गति”....समय की गति एक, परन्तु कथन अनेक..."जितने मुँह उतनी बाते"....समय कह कर नहीं आता...समय का कोई भरोसा नहीं...समय सबसे बड़ा मरहम है...समय बलवान होता है...समय कभी किसी का इंतज़ार नहीं करता...समय से पहले कुछ नहीं होता...समय की मार बहुत ख़राब....आपका समय शुरू होता है अब....मिलने से पहले समय अवश्य लेवे...मिलने का समय....समय-सीमा का ध्यान रखे...निर्धारित समय ही पर्याप्त माना जावेगा...अभी समय मध्यम है...समय बर्बाद न करे....समय सब कुछ कहेगा...बिता हुआ समय वापस नहीं आता....हर कार्य का एक अनुकूल समय होता है...जबकि घड़ी है कि रूकती ही नहीं....रूकती है तो चाबी या सेल कुछ भी पर घडी चलना चाहिए...हर हालत में...चाहे कुछ भी हो जाए....वरना...मुँह से कही बातो का क्या होगा ???...घडी रूकती है तो मुँह बन्द होने का डर या बातों को कहने-सुनने का अवसर खोने का डर...और कैलेण्डर के पन्ने टटोलने या पलटने की आदत का क्या होगा ???....मात्र भुत-काल की व्याख्या सम्भव....परन्तु बात तो वर्तमान या भविष्य की...यही सुनने की आदत...और हम है कि चलती घडी को भी छेड़ने का हुनर रखते है...पाँच मिनट....आगे या पिछे....यह जानते हुए भी कि हम चाह कर भी स्वयं से झूठ नहीं बोल सकते है...और इसे मात्र सुविधा ही मानना बेहतर होगा...मात्र समय के पाबन्द होने के लिए...एक सेकण्ड का क्रम...सहज अनन्त तक...और सत्य सात्विक 'क्रमचय-संचय'...हर-पल मनचाहा कार्य करने के लिए सहज आतुर...शायद इसीलिये एक घड़ी बंद जब रूकती है तो समकक्ष घड़ी सहज इशारा करती है....चल री, चलते रहना ही ज़िन्दगी है...खेल में टिक कर खेलना बहुत मायने रखता है...न हार का डर, न जीत का लालच....हार-जीत सबसे आखरी घोषणा हो सकती है....खेल के दौरान अनेक उतार-चढाव शत-प्रतिशत समक्ष है...खेल सहज आमने-सामने का प्रदर्शन...रुबरु...दोनों पक्ष....सहज एकाग्र....समय-अनुसार....प्रत्येक पल का महत्त्व...फिर भविष्य का महत्व कितना ???....."समय किसने देखा ?"....सहज उत्तर--'जिसने समय को बनाया'....और उसके बारे में एक बात सौ-प्रतिशत सत्य है...शाश्वत-सत्य....'उसको किसी ने नहीं देखा'...और वह किसी को मिलने के लिए समय नहीं देता....अपनी मर्जी का मालिक....शायद सबका मालिक....जय हो....सादर नमन.....स्वम्भू....स्व-सिद्ध....प्रत्येक शब्द साक्षात् जीवित...स्वयं की उत्पत्ति...सहज गर्व...मगर शब्द की उम्र तय करना शायद बस में नहीं...स्वयं का उत्पादन अत: 'भूल-चुक लेनी देनी'...और सहज मानवीय-भूल...और सजा नहीं, पश्चाताप नहीं, पछतावा नहीं....बस 'गुरु-आदेश'...मात्र प्रसार....सात्विक सकल....निरन्तर.....जय हो...सादर नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)









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