Saturday 17 October 2015


जय हो.... लालच या निन्यानवे का फेर...शत-प्रतिशत के लगभग को खोद कर जानने की कोशिश....और सुना है कि--'खोदा पहाड़, निकली चुहिया'....यदि परिश्रम न करने वालो को 'सूचकांक' में हानि होती है तो सिर को पकड़ कर अफ़सोस करते हुए देखना स्वाभाविक हो सकता है...और परिश्रम करने वालो को यदि रोटी की कमि होती है तो पेट पकड़ना स्वाभाविक है....तब पेट पकड़ कर हंसने वाले देखते है कि परिश्रम करने वाला पेट न पकड़ कर पेट पर हाथ फेरता है...भला परिश्रम करने वाला 'भरपेट-भोजन' तथा 'चैन की नींद' से कैसे अछुता रह सकता है ?....यह आरक्षण तो सदैव जारी रहेगा ?...मात्र परिश्रम के पश्चात सहज प्राप्त...सिर पकड़ने से या सिर पीटने से भोजन तथा नींद दोनों निकट होते हुए भी नजदीक नहीं आते...और आवाज लगाने पर तो हरगिज नहीं...क्योंकि भूख और नींद दोनों को आने पहले दरवाजा खटखटाने की आदत है...मात्र संस्कार-वश...सहज स्वागत को विवश या आतुर...मात्र हम स्वयं...दुनिया का श्रेष्ठ भोजन माँ के हाथ का...और दुनिया की सबसे तेज दवा... मीठी नींद के लिए...'माँ की लौरी'....जय हो...सादर नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)… 









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