Saturday 17 October 2015


जय हो...वसीयत को ध्यान से पढ़ा जा सकता है...लिपि-बद्ध चर्चा...एकान्त सहज सार्वजनिक....नियमानुसार इच्छा जाहिर करने का अधिकार....वसीयत को वह मित्र ध्यान से पढ़ना चाहेगा जिसके नाम वसीयत होती है....”हिब्बा-नामा”...Nomination में Nominee...अर्थात सबसे प्रिय या सबसे योग्य या सबसे अनुभवी हो....स्वयं से प्रश्न करना पड़ सकता है..."Why Me" ???.....प्रश्न तथा उत्तर दोनों में आनन्द...और तब ध्यान और बढ जाता है, जब वसीयत की चर्चा में कुछ शब्द नदारद...मसलन धन, सम्पत्ति, भूखण्ड, भवन, नकदी इत्यादि...दान शब्द सहज सम्मिलित...पूर्ण-स्वैच्छिक...बाध्यता असंभव....सहज आदान-प्रदान...गुप्त हो या आमने-सामने...एकान्त यदि सात्विक हो तो सार्वजानिक सत्य सदैव शानदार...संस्कारों की विरासत हमें सहज दान में प्राप्त होती है...यही जनेऊ...यही तलवार...सहज राज्य-पक्ष...गल्ले की बैठक...सौगात...Along With...सहज संस्कार...मात्र शब्द...वसीयत के शब्द नदी की धारा के अनुकूल या विपरीत...यह तो Nominee ही भली-भाँती जान सकता है...कब ?, क्यों ?, कैसे ?....सबका उत्तर सिर्फ वसीयत को ध्यान से पढ़ कर ही जाना जा सकता है...वसीयत का एक-एक शब्द चित्र के रूप में मित्र प्रतीत होता है...और जब ऐसा होता है तो आनन्द सहज रूप से परम-आनन्द में परिवर्तित होता प्रतीत होता है...तब मन कहता है..."Let it be"....Forever.....जय हो...सादर नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)……







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