…..जय हो..."चाय से ज्यादा केतली गरम"....सहज रूप से व्यंग हो सकता है,
परन्तु बात गौर-तलब भी हो सकती है...हर पिता चाहता है कि पुत्र की योग्यता
स्वयं की योग्यता से बढ़ कर हो..तब विचार उत्पन्न होता है कि 'यथा बीजं तथा
निष्पत्ति'....और अच्छाई के पौधे पर जब फल लगने लगे तो देख-रेख भलीभांति
होना चाहिए...संस्कार नामक पौधे के लिए शब्द ही सर्वोत्तम खाद सिद्ध होते
है...जिस योग्यता पर यश तथा सम्मान बढ़ता है, यदि उसे न बढाया जाये तो
महत्वकांक्षा अधूरी रह जाती है...उचित योग्यता के अभाव में सम्मान
मिलना लगभग असम्भव होता है...बनारस का पान सिर्फ बनारस में ही मिलता है,
परन्तु गाना सभी दूर सुनाई देता है--'खईके पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल
का ताला'....जब गावँ की प्रतिभा शहर में परचम लहराती है...तब 56 इंच का
सीना पिता का होता है...और इसका गवाह कोई और नहीं बल्कि पुत्र अवश्य होता
है...प्रतिभा का जब नामकरण संस्कार होता है तो सब प्रकार तथा आकार का परिचय
तैयार हो जाता है...शत-प्रतिशत सहज...संपर्क-सूत्र, विजिटिंग-कार्ड, बैनर,
होर्डिंग, समाचार....सहज निरन्तर यात्रा...विनायक-यात्रा…..जय हो...सादर
नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे
?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की
गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज
स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक
शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....”विनायक समाधान” @
91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)….
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