Thursday 1 October 2015

जय हो...भोजन की गर्मी से मुँह जलने डर बना रहना चाहिए अथवा नहीं...इसमें व्यक्तिगत सहमति हो सकती है...यह सहज स्व-अनुभव का विषय हो सकता है.....अध्ययन में गहराई मात्र स्वयं के हिस्से का अनुभव है....एक ऐसी जायदाद जिसके वारिस मात्र...."प्रत्येक"....अनिवार्य रूप से....पौष्टिक से पौष्टिक पदार्थ भी क्षण भर में शक्ति प्रकट नहीं करते है....ताकत पैदा करने के लिए आहार, विहार, सदाचार ही एकमात्र आधार.....गहरी नींद इसलिए भी आवश्यक कि सुबह जागना मज़बूरी या संकल्प या संस्कार...जब संस्कार की बात आती है तब..."अध्ययन में गहराई" अर्थात वायुमंडल का अध्ययन...वायु-यान की अपनी क्षमता होती है, परन्तु नियंत्रित तो मानव ही करता है....और स्व-चालित वायुयान का निर्माण भी मानव ही करता है...यंत्र, तंत्र, मन्त्र...सबका आधार मात्र...संस्कार...सहज गहराई का सहज नाम...साधारण काम...."एकाग्रता"...प्रत्येक सफलता का मुलभुत आधार....मात्र ज्ञानेन्द्रियो का क्रमचय-संचय...ठीक जैसे 'संजय'....दुरदर्शन....सहज साक्षात्...इस गहराई में गोता लगाना, प्रत्येक का अधिकार....प्रत्येक के लिए सम्भव...दृष्टि की एकाग्रता का लाभ हर प्राणी अपने अनुसार लेता है...दूरबीन का अविष्कार मानव ने अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु किया है...परन्तु फिर भी प्राकृतिक एकाग्रता अपनी उर्जा में उत्कृष्टता दर्शाती है....एक सहज जाग्रत अवस्था जिसे चंचलता का नाम दिया जा सकता है...सहज स्त्रीत्व अर्थात स्त्री-प्रधान गुण...एक खड़ी, एक पड़ी, एक छमा-छम नाच रही...रोटी का सहज नृत्य...सहज चंचलता...मात्र समर्पण...सहज शक्ति की उत्पत्ति...सहज सात्विक प्रदर्शन का उद्देश्य.. ...शुरुआत को "श्री गणेश" नाम से पुकारा जाता है...शुरुआत मात्र विनायक द्वारा….ध्यान रहे....निमंत्रण के तहत अतिथि मात्र....कार्य तो कर्ता या जातक द्वारा ही संपन्न होता है....और संपन्न में परिश्रम का तड़का लगा कि सम्पन्नता निश्चित हाजिर....शेष चर्चा हेतु....www.vinayaksamadhan.blogspot.in.....अवश्य अध्ययन करे...हार्दिक स्वागतम....







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