Friday 9 October 2015

जय हो...एक बहुत बड़ा वरदान है, मनुष्य को....स्वयं के विकार निकालने का....अपशिष्ट प्रदार्थ सुनियोजित तथा सुनिश्चित तरीके से त्याग करने का...शरीर तो प्रकृति अनुरूप स्वतः सुधार करने में सक्षम है, बस उदर-पूर्ति सुनियोजित हो....उच्च, समकक्ष, मध्यम....विकार न हो अत: सहज उपवास....सहज संकल्प या आत्म-नियंत्रण....यह तो सहज शरीर की प्रकृति का विषय हुआ....अब सहज हो कर जरा असहज होने के विषय में चर्चा की कोशिश....अर्थात मष्तिष्क के विकार...विकार पलायन हो तो 'उत्तम'......विकार समाप्त हो तो 'अति-उत्तम'......और यदि उत्पन्न न हो तो "श्रेष्ठ"...Good, Better, Best....और यह न हुआ तो मात्र विकार, विकार, विकार...Down...Down...Down....अर्थात असहज....ठीक सहज के विपरीत....Ready...Steady...Go....अब विकार न हो अत: 'सहज उपवास'....संकल्प या आत्म-नियन्त्रण...और सहज हो तो 'हिंग लगे ना फटकरी'....अनार के दाने-दाने में जान होती है...बिखरने से पूर्व बंधन का संकल्प....ठीक गुरुमाला के समान...बिन धागे के भी मोती की माला....मात्र या पर्याप्त...(108=1+0+8=9)....सहज अनवरत...और मष्तिष्क किसी और उपवास की गवाही नहीं देता....सिवाय मौन के...संकल्प या आत्म-नियन्त्रण....और सुनिश्चिंत स्मरण रखे...इस दौरान स्वयं से चर्चा करने का सुअवसर का लाभ कोई भी प्राप्त कर सकता है...और सुअवसर का लाभ प्रत्येक अवसर को सुनहरे लाभ में बदल सकता है...हम स्वयं के आदेश का पालन सहज कर लेते है...तब यह हमारा कार्य है कि हम स्वयं को आदेश दे....सुझाव दे...चेतावनी दे...Ready....Steady...Go....तब स्वयं से प्रश्न भी सम्भव है.....कब ? क्यों ? कैसे ?....तब एक ही उत्तर...."राम-जाने"....स्वयं से प्रश्न करना भोलेपन की निशानी हो सकती है...स्वयं से प्रश्न, स्वयं से उत्तर.....अर्थात स्वयं से एक बात कहने की कोशिश...'भोले की बात भोले से'...."भोले-नाथ सबके साथ"....उसी से ठंडा-उसी से गरम...यही है अदभुत 'वायुमंडल' का सहज "चमत्कार"....जय गजानन्द, सदा रहे आनन्द.....गौरी-पुत्र....हर हर महादेव.....जय श्री महाकाल....जय हो...सादर नमन....प्रणाम.....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....”विनायक समाधान” @ 91654-18344 (INDORE/UJJAIN/DEWAS)....प्रत्येक चित्र, मित्र के रूप में एक ‘निमंत्रण-पत्रिका’ या ‘VISITING CARD’ या ‘BANNER’ या ‘HOARDING’....जो भी हो....पर है....BECAUSE OF YOU….&….WE LOVE YOU….मित्रोँ स्मरण रहे....(VINAYAK) विनायक की भक्ति में हम सब (WE-NAYAK)....हम-नायक अर्थात गण-स्वरूप....और वह गण-पति अर्थात गण-नायक....Most welcome....regards... शेष चर्चा हेतु....www.vinayaksamadhan.blogspot.in....अवश्य अध्ययन करे...हार्दिक स्वागतम…..






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