Monday 12 October 2015

जय हो...ग्लास, लोटा, कमण्डल या “कलश”......सबका कर्म सहज जल-मंडल....और पसीने को बहने से कोई ताकत रोक नहीं सकती....और ताकत का रक्त के रूप में बहना उचित नहीं....पसीना हो या रक्त...दोनों ही जल-मंडल....स्वयं के वायुमंडल में जलमंडल....सहज जिज्ञासा का हल....सहज ज्योतिष-शास्त्र....ज्योतिष पर विश्वास करे या अविश्वास ?...इसका समर्थन करे या आलोचना ?...ज्योतिष एक शास्त्र है...सरस दृष्टिकोण तथा वैज्ञानिक प्रयोगधर्मिता के कारण शास्त्र सदैव सम्मान का पात्र रहे है...खगोल का प्रभाव भूगोल पर...मनन, चिंतन आधार तथा माध्यम....हठधर्मिता कदापि नहीं....शास्त्र वही जो स्वरूप तथा सत्य का ज्ञान करवाए...और ज्योतिष-शास्त्र अर्थात मात्र ज्ञान के प्रकाश से जीवन का, कर्म का, कर्तव्य का पथ प्रदर्शित करे....अर्थात सहज कर्म-शास्त्र या कर्तव्य-शास्त्र...और कर्म-विश्लेषण में समय अनुसार आकलन या अंदाज़...उपवास, स्नान, उपासना को महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्य तथा अध्ययन, विश्लेषण, उपचार में धैर्य को सर्वोपरि माना गया है...ज्योतिष विज्ञानं का सिद्धांत स्पष्ट कहता है....ग्रह तथा नक्षत्र मानव को शुभ व् अशुभ की सुचना मात्र देते है...मानव हित में ज्योतिषचक्र द्वारा शुभाशुभ कर्मफल का बोध सम्भव है...ग्रह-नक्षत्र किसी को शुभ या अशुभ फल नहीं देते...तब यह जानकर ज्योतिष के प्रकाश में सदैव शुभ तथा सात्विक कर्म हेतु तत्पर रहने का संकल्प सहज "गुरु-कृपा" से ही सम्भव हो सकता है....सम्पूर्ण यात्रा सिर्फ और सिर्फ सरपरस्ती का खेल....सिवाय इसके भला और क्या ???....गुरु सिर्फ वह सिखाने में सक्षम है जो क़िताबों में हरगिज नहीं...वायुमंडल के शब्द 'आकाशवाणी' कहलाते है...इसके अतिरिक्त कुछ नहीं...शब्दों की उम्र का अंदाज की कल्पना सम्भव नहीं....परन्तु आकलन का अधिकार प्रत्येक को....और मानव ने सर्व-प्रथम शब्द को पहचाना....कोई आश्चर्य नहीं.....आखिरकार शब्द का निर्माण मानव ने किया...आवश्कता आविष्कार की जननी है....स्वम्भू....स्व-सिद्ध....प्रत्येक शब्द साक्षात् जीवित...स्वयं की उत्पत्ति...सहज गर्व...मगर शब्द की उम्र तय करना शायद बस में नहीं...स्वयं का उत्पादन अत: 'भूल-चुक लेनी देनी'...और सहज मानवीय-भूल...और सजा नहीं, पश्चाताप नहीं, पछतावा नहीं....बस 'गुरु-आदेश'...मात्र प्रसार....सात्विक सकल....निरन्तर.....जय हो...सादर नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)










No comments:

Post a Comment