Sunday 11 October 2015

मित्रवर आपसे ही बात हो रही है....किसी और से हरगिज नहीं....सामने देखिये....आमने-सामने....शब्दों के दर्पण में झाँकने की गुजारिश....जय हो....एकत्र होने की या करने की क्षमता या कला.....एकत्र अर्थात एक से भले दो....और जब गणना में वृद्धि होने लगती है तो 'एकाग्रता में एकांत' को सुरक्षित रखना परम-कर्तव्य हो जाता है...एकत्र होने की परम्परा या संस्कार सात्विकता-पूर्ण हो अत: अनेक संस्कारों का निर्वाह का प्रावधान हो सकता है...शायद यही एक अवसर होता है...धर्म की झलक पाने का...’झलक दिखला जा’....बस यही है अदा...एक निर्मल निमंत्रण....’एक बार आ जा’.....प्रत्येक मित्र की एक अदा हो सकती है....”जीने की अदा”....इस अदा में सभी अदाएं....”LIFE-STYLE”….हम सभी अदाओं पर चर्चा हरगिज नहीं कर सकते...वृहद् क्षेत्र....अदाएं तो प्रति-क्षण उत्पन्न होती है...सागर की लहरें....ज्वार-भाटा....चर्चा होना चाहियें....मात्र “सहज-अदा” पर....ना हार का डर, ना जीत का लालच....माना कि सब सहमत ना हो....पर कोई तो सहमत हो....किन्तु “आस्था की अदा”...प्रत्येक में....’सहज-श्रध्दा’....हिन्दुस्तान के विद्यार्थी की पहचान “पट्टी-पेम” (स्लेट/कलम)...आज भी....पूरी दुनिया का आदमी इस पहचान-पत्र अर्थात “पट्टी-पेम” (स्लेट/कलम) को नजदीक से अनिवार्य रूप से देखना चाहता है....आश्रम-जीवन का अनुसरण अनिवार्य नहीं बल्कि महत्वपूर्ण अवश्य हो सकता है...यदा-कदा...यत्र, तत्र, सर्वत्र....प्रत्येक मित्र...आखिर “रहमत” तो “ईश्वर” की “अदा” है....इस अदा की छवि निराली....और यह सत्य हो सकता है कि शायद ‘रहमत’ ही प्रार्थना या प्रार्थना-स्वरूप परिणाम हो....(OUTPUT).....और output की अदा में “आनन्द” हो सकता है....और ज्यादा अधिकार नहीं...”आनन्द” तो स्वयं एक परि-कल्पना है.....स्वत:…FULLY AUTOMATIC...दवाएँ काम नहीं करती तो क्या हुआ ? दुआ का संस्कार ता-उम्र शेष रहेगा......”दवाखाने की गोली”....पहली और आखरी होना चाहियें मात्र स्वयं के लिए....परन्तु एक मर्ज के लिए गोली अनेक...’हकिम लुकमान’ अपनी सिद्ध कला से वनस्पतियों से चर्चा अर्थात ‘सीधी-बातचीत’ करते थे, पर क्या शक का इलाज संभव है ???...पुनर्जन्म की चर्चा फिर कभी सही....|||.....पर क्या “पुनर्जीवित’ संभव है ???...कुछ प्राणियों के अंग अलग हो कर भी कुछ देर सक्रीय रहते है.....इसी प्रकार मानव अंग भी सक्रियता में फडकते है....और सुना है---‘खड्ग सिंह के खड़कने से खड्कती है खिड़कियाँ....और खिड़कियों के खड़कने से खडकता है खडग सिंह’...मजा तो बहुत आता है परन्तु समझने का प्रयास अवश्य करना होगा...स्वयं को...OUTPUT का चमत्कार से कोई लेना-देना नहीं....लेना न देना, मगन रहना...मात्र प्रतिशत % की भाषा.....तब सहज INPUT क्या हो ???....वह है “सहज-अदा”.....संघर्ष की सहज अदा.....आवेश तथा साहस का स्व-आकलन बेजोड़ होता है....शायद इसीलिए सावधानी रखना पड़ता है कि “दुस्साहस” उत्पन्न न हो जावें....आखिर ‘मेहनत मेरी, रेहमत तेरी’.....दिमाग मालिक का, काम सेवक का....स्त्री जब तक स्वयं के हाथ का पका भोजन सेवन नहीं करती है तब तक संतुष्टि का अहसास मुश्किल है....यही शक्ति उसकी....सहज “अन्नपूर्णा”.....माँ के हाथो का गर्म भोजन चित्त में शीतलता लाता है...कलेजे में ठंडक....और यही है ताकत....”साहस”...संघर्ष को सहज परिश्रम में परिवर्तन की कला....और जो पारंगत वहीं “कलाकार’.....जो दे जीवन को ‘आकार’....जय हो...ग्लास, लोटा, कमण्डल या “कलश”......सबका कर्म सहज जल-मंडल....और पसीने को बहने से कोई ताकत रोक नहीं सकती....और ताकत का रक्त के रूप में बहना उचित नहीं....पसीना हो या रक्त...दोनों ही जल-मंडल....स्वयं के वायुमंडल में जलमंडल....और सहज “आभा-मंडल”.....सदैव ‘अनोखी-अदा’ के रूप में....प्रत्येक चित्र, मित्र के रूप में....एक ‘निमंत्रण-पत्रिका’ या ‘VISITING CARD’ या ‘BANNER’ या ‘HOARDING’....जो भी हो....पर है....BECAUSE OF YOU…..हम इस दुनिया-दारी में गुम हो जाते है....तब गुम-शुदा की तलाश या गुमनाम.....तब कोई तो हो जो FIR अर्थात्....’रपट दर्ज करे’.....और गाँव की पुलिया पर लिखा है कि पानी ज्यादा होने पर “रपट पार करना मना है”....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)..

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