Friday 2 October 2015

जय हो....क्या मृत घोड़े को चाबुक मारते किसी को, किसी ने देखा है ???...भला यह भी कोई प्रश्न हुआ ?...किसी भी व्यक्ति को ईष्या के कारण निंदापूर्ण बाते सहन करना पड़ सकती है, विशेषत: जब सामान्य स्तर से ऊपर उठने लग जाता है...समाज में सम्मान, दौलत, विद्वत्ता, सफलता प्राप्त करना अर्थात आम आदमी की उपलब्धियों के स्तर से ऊँचा उठना...तब आलोचना होना इस बात का प्रमाण है कि उच्च स्तर को स्पर्श करना निष्क्रिय व्यक्ति के बस की बात नहीं है...यह भी सत्य है कि निष्क्रिय लोग सफल लोगो की भूलों तथा दोषों से बहुत खुश होते है...मगर वें यह भूल जाते है कि सक्रिय व्यक्तित्व का शायद कोई विकल्प नहीं हो सकता है...सक्रियता स्वयं से प्रसन्न रहने का सर्वोत्तम माध्यम है...यही कारण है कि निंदा या आलोचना का सफल लोगो पर कोई असर नहीं होता है...मानव इतिहास में ऐसे किसी व्यक्ति का जन्म इस धरती पर कभी नहीं हुआ जिसे निंदा, उपहास या आलोचना का शिकार न होना पड़ा हो...इस स्थिति में हम केवल यह कर सकते है कि लोगो द्वारा की गई आलोचना में अगर थोड़ी सी भी सच्चाई हो तो उसे सहज स्वीकार करे...तदनुसार अपने व्यवहार में सुधार कर सकते है...याद रखना होगा कि आलोचना का उद्देश्य बुरी नियत या ईष्या ही हो सकती है...तब हम स्वयं को प्रतिक्रिया करने से अवश्य रोक सकते है....क्योंकि हम दुसरो को आलोचना करने से नहीं रोक सकते है...आखिरकार अनेक लोगो द्वारा इस दुनिया को एक ही बिंदु से देख पाना असम्भव हो सकता है....वृक्ष के फल प्राप्त करने के लिए लोग अक्सर पत्थरों का इस्तेमाल करते है...और अज्ञानता में कच्चे फल प्राप्त कर लेते है......शेष चर्चा हेतु....www.vinayaksamadhan.blogspot.in....अवश्य अध्ययन करे....why rush to visit the same ???….Just because need not to purchase the books on simple subjects…..हार्दिक स्वागतम….




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