.जय हो…..”मिच्छामी दुक्कड़म”...."विनम्र इस हद तक हुआ जा सकता है कि अन्य
लोग निश्चिन्त रूप से अपनी राय बदल सकते है"...माफ़ कर देने या माफ़ी मांग
लेने के पहले यह आवश्यक है कि हम नफरत से
मुक्त हो जाए...मगर शाब्दिक क्षमा-याचना का अपना महत्त्व होता है...स्वयं
का अहम् खंडित करने का सहज प्रयास....तब...Ego travels
towards....Downward....Without digging....into the pit...हमेशा के लिए
दफ़न हो जाए शायद...एक सुनहरा मौका वह काम करने के लिए, जो मात्र स्वयं से
ही सम्भव है...अपनी गलती को सुधारना अर्थात स्वीकृत करना...दोनों पक्षों के
लिए शब्द आवागमन हेतु...सहज सेतु...&...From this bridge we may
observe so many pits in which EGO may be buried...down OR
underground....&....downwards....Forever.....शब्दिक 'क्षमा याचना'
क्रोध के ज्वार को ठंडा तथा अपमान की तीखी धार को कम कर सकती
है...'क्षमा-याचना' या 'क्षमा-दान'....औपचारिकता भी अपना एक अलग महत्व रखती
है...सहजता का स्पर्श...प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष...मात्र
स्व-अनुभव...प्रत्येक समाज इसे अनिवार्य मान्यता देता है...एक उत्सव के रूप
में....होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस.....अर्थात मिच्छामी दुक्कड़म....एक ही
मकसद....मात्र "क्षमा"... एक पर्व के रूप में...The Simplest
Task...Ever...'इसकी कहानी, मित्रो की जुबानी"...ऐसा कहते है कि क्षमा से
सम्बंधित समस्त कार्य बहुत ही आसान होता है, परन्तु साहस अनिवार्य प्रारम्भ
होता है...दुस्साहस न हो अत: प्रतिशत की बाध्यता हरगिज नहीं......पूजा,
अर्चना, आरती, समागम, त्याग, तपस्या, उपवास...यही सब उत्सव-पर्व मनाने के
लिए शायद पर्याप्त है.....मात्र शून्य से एक की यात्रा....”गलती” मिट्टी का
मलबा है....मलबे में सब-कुछ, बहुत-कुछ, कुछ-कुछ या कुछ नहीं....यदि हम
स्वयं की गलती को सहज साहस के साथ स्पर्श करते है तो लगता है कि साहस उम्दा
होते हुए भी सहज है....यही सहजता साहस को "उच्च-कोटि- सम्मान" प्रदान करती
है....मलबा उठाने वाली मशीने (JCB) ज्यादा शक्तिशाली तथा उच्च दक्षता के
अनुरूप होती है....ठीक भारतीय सेना के 'टैंक' के
समान...आमने-सामने....प्रत्यक्ष....सहज 'विनायक-परिश्रम'....सब के स्पष्ट
इनकार के बाद भी अपनी गति से कार्य सहज संपन्न....अश्व-शक्ति की ताकत
कल-कारखानों की मशीनों में हो सकती है तो आश्रमों में भी "विनायक-शक्ति" का
उल्लेख हो सकता है....’हाथी की ताकत’.....पूर्ण सात्विकता...और यह शक्ति
अत्यन्त सहज है...जो मात्र सहज शुरुआत में विश्वास रखती
है....’विनायकम्-वंदना’....किसी भी नए कार्य पर सहज प्रथम आमंत्रित....सहज
अनिवार्य...सब के साथ, सब का विकास...वृहद् उदेश्य....थकान भी होना लाजमी
है....मनोरंजन का बहाना लापरवाही का कारण बनता है...और मनोरंजन संगति के
परिणाम लाता है...’अमृत-मंथन’.....निरन्तर अथक परिश्रम....सहज जल.....’वही
अमृत, वही विष”....बस आत्म-मंथन भिन्न हो सकता है... मात्र विश्राम का एक
उपाय आजमाना होगा....Well begin is half done.....50-50...शुरुआत को "श्री
गणेश" नाम से पुकारा जाता है...शुरुआत मात्र विनायक द्वारा….ध्यान
रहे....निमंत्रण के तहत अतिथि मात्र....कार्य तो कर्ता या जातक द्वारा ही
संपन्न होता है....और संपन्न में परिश्रम का तड़का लगा कि सम्पन्नता निश्चित
हाजिर....शेष चर्चा हेतु....www.vinayaksamadhan.blogspot.in.....अवश्य अध्ययन करे...हार्दिक स्वागतम..
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