Wednesday 30 September 2015

यह सामान्य बात मात्र इसलिए हो सकती है कि ---*"शिष्य और कुछ नहीं, बल्कि मात्र गुरु की उत्पत्ति है"*----यह सम्पूर्ण चर्चा हम सभी मित्रों का अनुभव हो सकता है, सिर्फ इसलिए कि हम सभी --*गृहस्थ-आश्रम*--का अनुभव रखते है...और अपने 'माता-पिता' को किसी न किसी रूप में 'गुरु' मानते है...और सम्पूर्ण गृहस्थ-आश्रम में प्रत्येक शिष्य को गुरु कहलाने का सौभाग्य प्राप्त होता है...चर्चा अत्यन्त साधारण तथा पूर्ण धार्मिक है...और मजेदार तथ्य यह है कि प्रत्येक धर्म के प्रत्येक मित्र हेतु है...शायद संयुक्त परिवार सम्पूर्ण समाज की शान माना जा सकता है अतः बुजुर्ग लोग टेबलों पर सामान रखतें है, और सामान्य लोग उन्हें अपने उचित स्थान पर रख देते है...यह चर्चा के अनुभव की चर्चा हो सकती है कि बुजुर्गो की एकाग्रता और कार्य-क्षमता घर के अंदर बढ़ जाती है...बस उन्हें भोजन समय पर तथा ससम्मान प्राप्त हो जाये...और यह शुद्ध धार्मिक बात है कि इस उपाय से --"भोजन-दोष"-- पूर्ण सात्विक रूप से, पूर्ण रूपेण निवारण होता है....और इस सात्विक उपाय द्वारा आपके, अपने वायुमंडल में आप स्वयं को एक शब्द सुनाई देता है..."रूतबा"....और यह शब्द मात्र अनुभव के आधार पर सत्य होता है...और सत्य साधारण तथा सामान्य होता है...यही 'विनायक समाधान' का निवेदन है...मात्र "विनायक चर्चा" के माध्यम द्वारा....हार्दिक स्वागत....@....(इंदौर / उज्जैन / देवास)...91654-18344....भले पधारो सा...जय हो, सादर नमन...इस मजेदार पारिवारिक चर्चा का भाग (2) अर्थात गतान्क से आगे.....अर्थात रुतबा बढाने का फार्मूला.....कुछ चित्रो के साथ....हम साथ-साथ है...पिक्चर अभी बाकि है...दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम...यही चमत्कार है...इसके अतिरिक्त कुछ भी सत्य नहीं है...और हर दाने में सम्मान और संतुष्टि का अमृत हो सकता है...बस पकाने वाला चाहिए...शिष्य पकाता है...और जब गुरु सिखाता है तो "गुरु-आदेश" सर्वोपरि हो सकता है...स्वागत है, गतान्क में...

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