जय हो...सभी मित्रो को नमस्कार....इन तीन लाइनों पर, जो कागज पर किसी भी मित्र द्वारा खीचीं जाती है, चर्चा शुद्ध रूप से व्यक्तिगत होती है, आप सभी मित्रों ने अभी तक देखा होगा कि जितनी भी, अभी तक चर्चा हुई है, किसी वयक्ति विशेष का नाम उल्लेखित नहीं होता है....संभव नहीं है...नाम तो राम का ही बड़ा है...'राम से बड़ा राम का नाम'....अर्थात मर्यादा पुरुषोत्तम....जब हम किसी पहलु पर आवश्यकता के अनुरूप सोचने में असमर्थ होते है तो सामानांतर सोचने वाले की आवश्यकता महसूस हो सकती है....इसी पहलु को ध्यान में रख कर 'विनायक चर्चा' का आयोजन किया गया है...सहज मित्रों की सभी को आवश्यकता होती है...मित्रों के साथ मन खोल कर बात करने का सुयोग प्राप्त होता है...मित्रता का धागा मजबूत जंजीर में बदलते दैर नहीं लगती है...बस विश्वास का अनुभव होना चाहिए...मित्रता में संकोच का शिष्टाचार न हो...और यंहा प्रगति में बाधा हो सकती है...मानव मात्र का मन गुल्लक की तरह होता है....और अच्छे विचार उसमे धन के समान मान सकते है...और अच्छे विचारो का उद्गम स्थल मात्र मित्र ही हो सकते है...और मात्र मानव को ही यह वरदान है कि वह किसी को भी अपना मित्र मान सकता है...बना सकता है... मित्र की सहज परिभाषा है कि वह जो आपकी बात सुनें....आपका प्रोत्साहन बनाये और बढाएं....आपको कुसंगति से आगाह करे....पूर्ण सहज और सात्विक रूप से...आपको सुरक्षित दृष्टि से अवलोकन करे....और मित्र का महत्व तब सिद्ध होता है जब आप अपने स्वयं के विचारो से विरोध, प्रतिरोध या अवरोध महसूस करे...तब आपको 'विनायक चर्चा' की आवश्यकता महसुस हो सकती है...इस स्थिति में...हार्दिक स्वागत...विनायक समाधान @ 91654-18344....(INDORE / UJJAIN / DEWAS)..
Wednesday, 30 September 2015
जय हो...सभी मित्रो को नमस्कार....इन तीन लाइनों पर, जो कागज पर किसी भी मित्र द्वारा खीचीं जाती है, चर्चा शुद्ध रूप से व्यक्तिगत होती है, आप सभी मित्रों ने अभी तक देखा होगा कि जितनी भी, अभी तक चर्चा हुई है, किसी वयक्ति विशेष का नाम उल्लेखित नहीं होता है....संभव नहीं है...नाम तो राम का ही बड़ा है...'राम से बड़ा राम का नाम'....अर्थात मर्यादा पुरुषोत्तम....जब हम किसी पहलु पर आवश्यकता के अनुरूप सोचने में असमर्थ होते है तो सामानांतर सोचने वाले की आवश्यकता महसूस हो सकती है....इसी पहलु को ध्यान में रख कर 'विनायक चर्चा' का आयोजन किया गया है...सहज मित्रों की सभी को आवश्यकता होती है...मित्रों के साथ मन खोल कर बात करने का सुयोग प्राप्त होता है...मित्रता का धागा मजबूत जंजीर में बदलते दैर नहीं लगती है...बस विश्वास का अनुभव होना चाहिए...मित्रता में संकोच का शिष्टाचार न हो...और यंहा प्रगति में बाधा हो सकती है...मानव मात्र का मन गुल्लक की तरह होता है....और अच्छे विचार उसमे धन के समान मान सकते है...और अच्छे विचारो का उद्गम स्थल मात्र मित्र ही हो सकते है...और मात्र मानव को ही यह वरदान है कि वह किसी को भी अपना मित्र मान सकता है...बना सकता है... मित्र की सहज परिभाषा है कि वह जो आपकी बात सुनें....आपका प्रोत्साहन बनाये और बढाएं....आपको कुसंगति से आगाह करे....पूर्ण सहज और सात्विक रूप से...आपको सुरक्षित दृष्टि से अवलोकन करे....और मित्र का महत्व तब सिद्ध होता है जब आप अपने स्वयं के विचारो से विरोध, प्रतिरोध या अवरोध महसूस करे...तब आपको 'विनायक चर्चा' की आवश्यकता महसुस हो सकती है...इस स्थिति में...हार्दिक स्वागत...विनायक समाधान @ 91654-18344....(INDORE / UJJAIN / DEWAS)..
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