जय हो...सादर नमन...'विनायक चर्चा 'में आपका हार्दिक स्वागत है..."हृदय में
आनंद सहज उत्पन्न हो तथा हृदय में सहज आनंद का स्थायी निवास हो"...यह
प्रार्थना पूर्ण धार्मिक हो कर किसी भी बंधन से पूर्ण मुक्त हो सकती
है...वास्तविक स्वरुप...शून्य से एक या अनेक या अनंत....कई बार यह स्वीकार
करना पड़ सकता है कि हम 'वास्तविक आनंद' से ज्यादा आनंद की चाह में कुछ
परेशान हो जाते है...और यह 'कुछ' स्वयं को 'बहुत-कुछ' भी लग सकता है...जबकि
'वास्तविक-आनंद' कुछ भी हो सकता है....कुछ, कुछ-कुछ, बहुत-कुछ....या
सब-कुछ...ना हार का डर, ना जीत का लालच...मात्र 'सहज-आनंद'...प्रतिदिन,
प्रतिपल न सही परन्तु कुछ पल ही सही...'सहज-आनंद' को अनुभव करने की क्षमता
प्रकृति अर्थात ईश्वर ने प्रत्येक को सहज प्रदान की है...और मानव-मात्र इस
सहज-अनुभव को "उत्कृष्ट-अनुभव" में परिवर्तन की क्षमता रखता है...कुछ कार्य
या अनुभव मात्र स्वयं को ही जानना या करना पड़ते है...जैसे मौन, नाद,
स्वप्न या अनुभूति...और यह स्व-अनुभव हमारी शक्ति को सत्य से प्रत्यक्ष
परिचय करवाते है...तब हम 'आनंद' को अनेक रूप में देख सकते है...आनंद,
सहज-आनंद, परम-आनंद, स्व-आनंद, आत्म-आनंद, सद्-आनंद या
अनंत-आनंद....स्वागतम् ...."विनायक-समाधान" @
91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)
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