Monday 28 September 2015

.....(”33+33+33+1 = 100”)....अर्थात....( LHS = RHS )…..सहज तथा साधारण समीकरण....परन्तु सहज जीवन हेतु आवश्यक या अनिवार्य....शत-प्रतिशत...जीवन्त समीकरण...गणित विषय चमत्कार में नहीं अपितु सिद्ध करने में विश्वास करता है...प्रत्येक मित्र सहजता से हल करने की क्षमता रखता है...(तन+मन+धन+???=100)....चूँकि तीनो पहलु शुद्ध रूप से अप्रत्यक्ष या परदे में या अनुमानित या सहज परिवर्तनशील माने जाते है....अतः इन्हें प्रतिशत में दर्शाना ज्यादा उचित होगा...(33% + 33% + 33% + ? = 100%)……तत्पश्चात.....(99+ ? = 100)….तत्पश्चात...(? = 100-99 = 1)……तीनो पहलु हमारे पास है, समीकरण हल करने पश्चात् चूँकि उत्तर (1) आता है...वह भी प्रतिशत में....चूँकि बात गणितीय है...और सहज सिद्ध होती है... अतः शंका लेश-मात्र भी नहीं है....तीनो पहलुओं पर न्यूनतम 33 % से ले कर अधिकतम 99 % तक हम विचार या गर्व कर सकते है.......मात्र इन्ही पहलुओं के आधार पर हम अपने मित्रोँ के बीच अपनी पहचान बनाते है....हमारी अपनी गणना जिस पर हम विचार या गर्व कर सकते है....किसी भी सहज तथा साधारण परीक्षा में मात्र 33% उत्तीर्ण होने के लिए पर्याप्त प्राप्तांक माने जाते है....और इस जीवन्त समीकरण अनुसार तीनो पहलु “तन, मन, धन” मानव जीवन के मुख्य तथा महत्वपूर्ण विषय माने जाते है...इन विषयों को प्रत्येक माध्यम से अध्ययन किया जाता है...परिश्रम, भाग्य, ज्योतिष, समय, संगति.....और भी अनेक माध्यम हो सकते है...और यह रोचक बात है की हम अध्ययन ज्यादा से ज्यादा प्राप्तांक लाने हेतु करते रहते है....किसी एक विषय को उम्दा या बेहतरीन करने हेतु दुसरे विषय के अंक उपयोग करते है...अर्थात उपलब्ध अंको को दुसरे विषय में जोड़ने के लिए तस्करी करने का प्रयास करते है...इसी तारतम्य में ताना-बाना बुनने के चक्कर में हम ‘99 के फेर’ में.....दो दुनी चार के चक्कर में.....मात्र (1) एक पर विचार नहीं कर पाते है.....यह विचार गायब हो जाता है कि “जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है”....हम यह भूल जाते है कि गणना हमारी अपनी है, लेकिन ‘परीक्षक या पर्यवेक्षक’ कोई और हो सकता है....हमारी परीक्षा सार्वजानिक होती है, परन्तु हमारे उत्तरों की जाँच निश्चिन्त रूप से एकांत में होती है....सिर्फ हमारी उत्कृष्टता ही हमारी उपस्तिथि के रूप में पर्याप्त होती है....अब इस एक (1) पर भी विचार कर लेते है, जो सम्पूर्ण समीकरण का निष्कर्ष मात्र इसलिये है कि यही 100% को सार्थक करता है...इस एक को हम निश्चिन्त या अनिश्चिंत माने...यह हमारा निर्णय हो सकता है....एवं निर्णय अनुसार किसी भी नाम से पुकार सकते है....जन्म, मृत्यु, ईश्वर....और यह अटल सत्य है कि तीनो को अनुभव के माध्यम....“मात्र हम स्वयं”....”एक मात्र हम-स्वयं”...अर्थात....”शत-प्रतिशत” को स्पर्श की सक्षमता या पात्रता या योग्यता.....जो भी हो, मगर...”शत-प्रतिशत सुखद”....शुद्ध रूप से अप्रत्यक्ष या परदे में या अनुमानित....मात्र %%%... मात्र सात्विक उत्थान हेतु.....जय हो....जब जन्म सहज होता है तो अन्त भी सहज होना चाहिए....परन्तु इस जीवन-चक्र में ‘भूल-चुक, लेनी-देनी’ के अंतर्गत अनेक असहजताए सम्मान और नियंत्रण के सामंजस्य के प्रवाह को प्रभावित कर सकती है...शेष चर्चा अति-शीघ्र....ससम्मान.....सादर नमन्......”विनायक-चर्चा” हेतु सादर आमंत्रित…..




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