Wednesday 30 September 2015

जय हो...सादर नमन...we all are students…whenever…wherever…&…FOREVER…
”गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु र्गुरूदेवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥“... गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व.... गुरू पूर्णिमा 31 जुलाई 2015...गुरू पूर्णिमा अर्थात गुरू के ज्ञान एवं उनके स्नेह का स्वरुप है...हिंदु परंपरा में गुरू को ईश्वर से भी आगे का स्थान प्राप्त है अत: कहा गया है कि हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर...हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं...जो हमारा पालन-पोषण करते हैं, सांसारिक दुनिया में हमें प्रथम बार बोलना, चलना तथा शुरुवाती आवश्यकताओं को सिखाते हैं...अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरी है...जीवन का विकास सुचारू रूप से सतत् चलता रहे उसके लिये हमें गुरु की आवश्यकता होती है...भावी जीवन का निर्माण गुरू द्वारा ही होता है...मानव मन में व्याप्त बुराई रूपी विष को दूर करने में गुरु का विषेश योगदान है... ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान)एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश(ज्ञान)...गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं... गुरू शिष्य का संबन्ध सेतु के समान होता है...गुरू की कृपा से शिष्य के लक्ष्य का मार्ग आसान होता है... गुरू की कृपा से ही आत्म साक्षात्कार सम्भव है... गुरू द्वारा कहा एक शब्द या उनकी छवि मानव की कायापलट सकती है...गुरु, व्यक्ति और सर्वशक्तिमान के बीच एक कड़ी का काम करता है....जब गुरु-कृपा होती है तो एक शब्द, एक प्रश्न, एक चित्र, एक पुस्तक, एक कविता, एक चर्चा, एक प्रार्थना या मात्र एक दृष्टि ही पर्याप्त माध्यम हो सकती है...इस मस्ती की सहज पाठ-शाला में प्रार्थना हम करते है...परिणाम हमको चाहिए...निवेदन भी हमारा है...और यह सत्य है कि मात्र स्वीकार करने का कार्य गुरु का है...विद्ध्यार्थी को निरंतर आशीर्वाद हेतु मात्र गुरु ही सक्षम है...सफलता का एक-मात्र आधार....” “गुरु कृपा ही केवलम्””....हार्दिक स्वागतम...विनायक समाधान @ 91654-18344…(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…

No comments:

Post a Comment