Monday 28 September 2015

मनमानी या चिंदी-चोरी हो कर रहती है...आखिरकार ‘मनुष्य-मन’ सर्वाधिक स्वार्थी माना गया है....मन के साथ एक व्याधि और भी हो सकती है कि मन डरता है...प्राकृतिक रूप से डरता है...शेर, शेर को कभी नहीं डराता है....परंतु मनुष्य हमेशा मनुष्य को डराने के लिए प्रबंध करता रहता है....इस अवस्था में मन की विचारधारा सदैव सम होना चाहिए...जो कि सर्वाधिक श्रेष्ठ अभिनय माना गया है.....चूँकि सहज अभिनय ही श्रेष्ठ अभिनेता का सहज परिचय होता है...सहजता श्रेष्ठता का सर्वोत्तम श्रृंगार माना गया है...जहा पर सर्वाधिक उत्पादन होता है.(विचारों का उत्पादन) वहा उर्वरक क्षमता अत्यन्त मजबूत होना चाहिए...मन की विशेषता है कि वह एक साथ अनेक विषयों पर शीघ्रता से सोच कर विभिन्न परिदृश्य बना सकता है...



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