Wednesday 30 September 2015

जय हो...चर्चा छोटे या बड़े स्तर की अर्थात चर्चा "प्रेम" की....स्तर छोटे या बड़े ना हो कर इस प्रकार हो सकते है...उच्च, समकक्ष या मध्यम....प्रेम स्तरों को पाटने का अर्थात परस्पर करीब लाने का एक सात्विक माध्यम सिद्ध हो सकता है...धर्म के अनुसार प्रेम को अनेक रूप में जाना जा सकता है...स्नेह, करुणा, सम्मान, आदर, श्रद्धा, दया, प्रार्थना, क्षमा, रक्षा, न्याय, व्यवस्था....अर्थात पूर्ण सहज 'समर्पण'...समर्पण के बिना जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति असम्भव है...समर्पण अर्थात सहज पुरुषार्थ...ध्येय को पाने के लिए धैर्य पूर्वक सतत सहज प्रयास...सहज प्रयत्न...सहज साधना...ध्येय तथा धैर्य का सहज प्रेम... इस सहज प्रेम में भाग्य तथा भगवान दोनों ही मात्र सहज सहयोगी हो सकते है...सम्पूर्ण धर्म-विज्ञान में पुरुषार्थ को सर्वोपरि माना गया है...भाग्य और भगवान को जानने तथा मानने का एक-मात्र सहज सशक्त माध्यम...किसी भी स्तर पर प्रेम का यही उद्देश्य हो सकता है कि हमारे प्रेम की सुचना हमारे प्रिय तक पहुंचे...उनकी स्वीकृति, सहयोग एवम् अपनत्व के द्वारा हम लाभान्वित हो सके..."प्रभु-प्रेम" में प्रार्थना का यही एक-मात्र उद्देश्य हो सकता है..."विनायक-चर्चा" के माध्यम से यही विनम्र निवेदन...हार्दिक स्वागत...विनायक समाधान @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)...




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