Tuesday 29 September 2015

........यह सत्य है कि मनुष्य मुसीबत के समय ज्यादा अर्थात आवश्यकता से अधिक सोचता है..या विनाश काले विपरीत बुद्धि के तहत गलत निर्णय ले सकता है .ठीक श्रीमदभागवतगीता के विपरीत....'हम क्या लाये है और क्या साथ जायेगा ?.....सहज उत्तर है....'कुछ नहीं'.....और इस कुछ नहीं के लिए हम निरंतर 'बहुत कुछ' करने का प्रयास हरदम करते रहते है...'कुछ नहीं' के स्थान पर उत्तर यह भी हो सकता है कि हम संस्कार साथ लाये है और सम्मान साथ ले जायेंगे.....एक सहज नियम है जीने का कि सहज कर्म हेतु सहज प्रयास...अर्थात सहज परिश्रम...और इस परिश्रम के पश्चात् यदि दो वक्त का भोजन समय से प्राप्त हो जाए तो क्या अमीर और क्या गरीब....कोई अंतर नहीं रह जाता है....प्रत्येक आनंद-दायक भोजन के पश्चात् स्वयं को करोड़पति समझना मनुष्य की स्वाभाविक आनंद या प्रवृत्ति हो सकती है...भोजन की थाली सिर्फ भूख को देखती है....भूख के लिए मनुष्य भीख भी मांगने को मजबूर हो सकता है....भोजन की थाली में मुख्य आईटम सिर्फ और सिर्फ रोटी होती है...मगर हम उसमे सजावट के रूप में फालतू चीजे भरते जाते है....यह जानते हुए भी कि सिर्फ रोटी ही स्थायी है जिसका कोई विकल्प नहीं है....हम महल बनाते है, मगर शयन हेतु मात्र एक कमरा ही पर्याप्त होता है...हम सम्पूर्ण जिंन्दगी की चिंता करते है परन्तु सिर्फ वर्तमान ही महत्वपूर्ण होता है....हम अनेक पुरस्कार की चाह करते है परन्तु मात्र एक प्रोत्साहन की कल्पना को तरस जाते है.....




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