Monday 28 September 2015

...”धन, स्त्री तथा भोजन पर्दे (curtain) योग्य होते है”....यह कहावत किसी भी बुजुर्ग की हो सकती है....केवल सहज अनुभव...परन्तु यह भी विचारणीय है कि बात एकान्त की भी हो सकती है....तीनो पहलु सहज श्रृंगार या विश्राम का सहज अधिकार रखते है....और श्रृंगार एकान्त में उचित होता है....सिर्फ सहज शानदार सार्वजानिक प्रस्तुति के लिए....सहज मायावी होते हुए....प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शक्ति-प्रदर्शन द्वारा.....’अति-सर्वत्र-वर्जयते’ की चेतावनी या निर्देश या टिपण्णी के साथ....तीनो ही उत्तम पुरुषार्थ को चरित्रार्थ करने की पात्रता रखते है....सहज प्रतीक्षारत....दरवाजे की दहलीज से कौन सी वस्तु गुजरती है...यह आप और हम दोनों के अतिरिक्त, तमाम लोग निरंतर अवलोकन करते रहते है....दरवाजे का महत्व हो न हो, परन्तु दहलीज का महत्व जरूर हो सकता है...दहलीज में एक संकल्प लागू होता है....नियमानुसार....इस संकल्प पर हम को स्वयं विचार करना होगा....अंदर-बाहर होने के नियम सहज साधारण नियम....इन में एक सहज विश्वास कायम हो सकता है.....’चमत्कार की प्रतिक्षा’ से बेहतर ‘परिवर्तन की प्रतिक्षा’ उचित हो सकती है....क्योंकि ‘परिवर्तन’......उच्च, समकक्ष या मध्यम....शुद्ध रूप से....स्वयं का निर्णय हो सकता है....




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