Tuesday 29 September 2015

..."म्हारो हेलो सुणो जी रामा पीर"...जय हो....आपसे लगातार आमने-सामने "विनायक-समाधान" @ 91654--18344 द्वारा सहज साधारण बातचीत करने की कोशिश की जा रही है, विशेष रूप से "फेसबुक" नामक जहाज के पर....शब्दों को निशुल्क बेचना...और फिर शब्दों के आदान-प्रदान का लालच....खरीददार को प्राप्त करने में कोई जल्दी नहीं...बेचने वाले को बनाने की तैयारी से फुर्सत नहीं...सहज कारण...advance booking....सभी शब्द मात्र साधारण या अति-साधारण....वही लिखा जा रहा है, जो हम सबको पहले से ही मालुम है...शब्दों को मात्र सहजता के सांचे में ढालने की कोशिश भर...और जब यह वास्तव में होता है तो ऐसा लगता है कि वास्तव में शब्द ही किसी मित्र की तरह आपसे बात कर रहे है...सहज मित्र....शब्द-कुमार या शब्द-चन्द्र या शब्द-प्रकाश या शब्द-आनंद या शब्द-सिंह.....बस मात्र अध्ययन का परिश्रम करना पड़ सकता है....और इस परिश्रम को आसान करने के लिए सभी वाक्य आपस में मात्र तीन बिन्दुओं के माध्यम से जोड़े गए है....सहज क्रमचय-संचय...कही से भी शुरू करे...न हार का डर, न जीत का लालच...."चर्चा का आधार रेखाए हो या बिंदु"...कोई फर्क नहीं पड़ता....लेकिन बिंदु जब अग्रसर होते है तो रेखाएं स्वत: निर्मित होती है...और इस क्रम का एक ही सहज नाम हो सकता है, जो है..."क्रमशः"..अब आगे, शब्दो की यात्रा हेतु और भी सहज मार्ग...www.vinayaksamadhan.blogspot.in.....सहज परिश्रम का सहज प्रदर्शन...यत्र, तत्र, सर्वत्र....






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