Monday 28 September 2015

"धर्म-संकट"...जब धर्म में किसी विशेष कर्म या संस्कार का प्रावधान अनिवार्य हो जाता है या हो सकता है...संभावनाओं से इंकार नहीं हो सकता है...समर्थन में सहजता अनिवार्य हो जाती है...और समर्थन ना हो तो धर्म-संकट उत्पन्न हो सकता है...धर्म स्थाई क्यों है ? मात्र इस प्रश्न के उत्तर द्वारा धर्म को जानने में ज्यादा सहजता हो सकती है...सत्य तो यह है कि धर्म को नवीन रूप से जानने में ही धर्म लगातार प्राचीन हो रहा है...शायद इसीलये धर्म चिर-स्थायी सिद्ध होते आया है...और मात्र अजर-अमर होने के कारण अनेक या कुछ प्रश्नो का जवाब देना आवश्यक या अनिवार्य नहीं समझता है...यही कारण है कि धर्म विशेष को भी सहज रूप में स्वीकार करता है...स्वयं को सहज मानने में यह लाभ हो सकता है कि अनेक असहज पहलुओं से बचा जा सकता है...प्रति-पल या प्रति-दिन....जय हो...




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