Monday 28 September 2015

विपदाएं तथा समस्याएँ प्रत्येक के जीवन में आती है, परन्तु इन परिस्तिथियों में शुभचिन्तको या स्वयं द्वारा प्रार्थना का संसर्ग हमारे साथ हो तो विपदाएं भी सुअवसर बन कर वरदान बन सकती है...प्रार्थना अर्थात ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव....और यदि हम अकेले है तो विपदाओं का विकराल समस्या में परिवर्तित होने का आभास हो सकता है....कठिन परिस्तिथियों में धैर्य बनाये रखना और सकारात्मक सोच पाना, प्रत्येक लिये सरल तथा संभव नहीं...जटिल परिस्तिथियों में मन भी जटिलता में उलझ जाता है...परन्तु इस स्तिथि में भी यदि कोई सकरात्मक दृष्टिकोण कर ले तो वे जीवन की नई शुरुआत महसूस करते है...हमारे मार्गदर्शन तथा दिशाबोध के लिए अर्थात प्रोत्साहन के लिए जीवन में कोई तो होना ही चाहिए...समय अनुसार.....उच्च, समकक्ष या मध्यम....शुद्ध रूप से.....मात्र सहज शुभ-चिन्तक....हम ईश्वर को अनेक नाम से जानते है, मानते है, पहचानते है.....और अनेक में एक सहज नाम है....सबके लिए....हमेशा के लिए...”ऊपर-वाला”....और अनेक लोग तो इसे “रखवाला” भी मानते है....हमेशा के लिए...और अक्सर गुनगुनाते है---“तेरी कृपा से मेरे सब कम हो रहे, बेवजह मेरे नाम हो रहे है”....हम कल्पना करने की क्षमता रखते है...इसी कल्पना के आधार हमने उत्कृष्ट “काल्पनिक-पात्र” ईश्वर की रचना मात्र सकारात्मक तथा सात्विक वायुमंडल अनुभव करने के लिए की है...कठिन समय में सहारा लेने के लिए....स्व-प्रोत्साहन द्वारा स्वयं का आत्म-विश्वास बढ़ाने के लिए...अपनी सहन-शक्ति बढ़ाने के लिए...और मुख्य उदेश्य....प्रार्थना करने के लिए...तब शायद “भगवद्-कृपा” ही होती होगी कि कोई न कोई सहारा या मदद या सहयोग करने आ जाता है...तब लगता है कि क्या पता ईश्वर किस रूप में आता है ?...पर शुभचिंतक या मददगार ही कहलाता है...अनंत-रूप इसीलिए “हरी-कथा अनंता” और सबमे भी बहुत ही साधारण सहज बात,,,,”राम से बड़ा राम का नाम”.....और इसी कल्पना का मुख्य आधार है----“ईश्वर सत्य है”....अर्थात शाश्वत सत्य---“सत्यम-शिवं-सुन्दरम्”...इस युग्म के साथ---“सत्यमेव जयते”.... ....जय हो....शेष चर्चा अति-शीघ्र....ससम्मान.....सादर नमन्......”विनायक-चर्चा” हेतु सादर आमंत्रित...विनायक समाधान @ 91654-18344..




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