Wednesday 30 September 2015

.जय हो...सादर नमन...”चर्चा ‘ईश्वर’ की”...निर्धारित कुछ भी नहीं है...परन्तु जो घटित हो चूका है...उसे निर्धारित कहा जा सकता है...क्योंकि घटित होने के प्रमाण सत्य हो सकते है...परन्तु जो घटने वाला है, उसकी गणना किस प्रकार हो ?...यदि हम उसे निर्धारित कहते है तो किसी भी निर्धारण के लिए एक व्यवस्था या प्रणाली या गणना या अनुभव का होना अति-आवश्यक होता है...प्रत्येक निर्धारण एक सत्ता द्वारा होता है...और किसी भी सत्ताधारी को “GOD” से पुकारा जा सकता है...नियमानुसार ‘GOVERNOR OF DESTINY’...विधि का निर्माता...निर्धारित अनुकूलता...वह जो सबका निर्धारण करता है...और स्वयं के निर्धारण की आजादी सहजता से प्रत्येक को दी है...कभी किसी को खुल कर नहीं बताया कि मै कौन हूँ ?...वेदों में किसी एक ईश्वर की उपासना नहीं हो सकती है...अनेक स्तुतियाँ इसका साक्षात् प्रमाण है...और स्तुतियाँ मुक्त-गान की अनिवार्यता से बंधी होती है...प्रकृति को ईश्वर मानते हुए, सूर्य, चन्द्र, अग्नि, जल, वायु, धरती, आकाश आदि की भी स्तुतियाँ विद्यमान है...और सत्ता में या प्रशासन में नियम ईश्वर तुल्य माने जा सकते है...और मानव मात्र को यह स्वतंत्रता या बाध्यता है कि वह अपने सम्प्रदाय या संस्कार अनुसार ईश्वर को किसी भी नाम से पुकारे...किसी भी माध्यम का प्रयोग या उपयोग करे...मात्र सहज आनन्द के लिए...प्रपंच कदापि प्रभावशाली नहीं हो सकते है...बस आस्था तथा श्रध्दा का सम्मान हो...पूर्ण सहज रूप से...ईश्वर मात्र उत्तम व्यक्तित्व का नाम अथवा रूप हो सकता है..जो सदैव मात्र सकारात्मक का अनुसरण करने की प्रेरणा देता है...असीम संभावनाओं का प्रकाशन धार्मिक आवरण में लगभग सुरक्षित महसूस होता है...ना हार का डर...ना जीत का लालच... शृंगार हम अपनी सुंदरता निखारने के लिए करते है, न कि अपनी कमजोरिया छुपाने के लिए...संकल्पो की उड़ान आजादी के साथ सम्भव है...लापरवाही के साथ हरगिज नहीं...यही है...'विनायक-चर्चा'...हार्दिक स्वागत...मात्र अनुभव का क्रमचय तथा संचय....आमने-सामने...."विनायक समाधान" @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)....

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