Wednesday 30 September 2015

जय हो..जय हो...सादर नमन..."चर्चा उत्पाद की"...अर्थात PRODUCT...किसी भी प्रतिष्ठान या संस्थान की सफलता एवं विश्वसनीयता उसके उत्पाद पर निर्भर हो सकती है...शायद इसीलिए सभी अपने उत्पाद को श्रेष्ठतम् प्रस्तुत करने का श्रेष्ठ प्रयास करने की कोशिश करते है...उत्पाद सशुल्क हो तो 'व्यवसाय'...अर्थात उत्तम व्यापार या सात्विक व्यवसाय...और उत्पाद निःशुल्क हो तो 'सेवा'...सेवार्थ मात्र...मात्र परमार्थ...सशुल्क के साथ अनेक शर्त या विकल्प...Guarantee/Warranty...उपभोक्ता फोरम... दूसरी ओर निःशुल्क के साथ मात्र एक सत्य...'सहज-स्वीकार'...प्रकुति के सहज उत्पाद पञ्च तत्त्व तथा प्रकृति के सहज चमत्कार हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ मानी जाती है जो सहज निशुल्क उपलब्ध है...यत्र, तत्र, सर्वत्र...और धर्म में एक सत्य हमेशा निःशुल्क उपलब्ध है...वह है "प्रार्थना"...हमारा मन भी एक संस्थान या प्रतिष्ठान के समान निरंतर विचारो का उत्पादन करता है...सहज श्रवण, कीर्तन, चिंतन, मनन...पूर्णतः निःशुल्क...हम सब प्रतिदिन अधिकांश कार्य निःशुल्क ही करते है...लिखना, पढ़ना, हंसना, व्यायाम, टहलना, शयन, स्नान, प्रार्थना इत्यादि...कुछ अपनी ख़ुशी के लिए, कुछ दुसरो की ख़ुशी के लिए...अगर संकल्प ख़ुशी अर्थात आनंद अर्थात परम आनंद खोजने का हो तो कही भी खोजा जा सकता है...चाहे स्वयं में या दुसरो में...शायद इसीलिए समस्त धर्मो की समस्त प्रार्थनाओं का संक्षिप्त सार है--"सर्वे भवन्तु सुखिनः"...इसी 'विनायक-चर्चा' के साथ सहज निमंत्रण...हार्दिक स्वागत..."विनायक समाधान" @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)...

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