जय हो..."चर्चा, अभी तक की चर्चाओं की"....एक नहीं, अनेक....लगभग समान
स्वरूप्....मात्र 'विनायक- चर्चा'...सात्विकता का सहज अनुसरण....धर्म की
शुरुआत मात्र एक से...सहज यात्रा....एक साँस, एक ध्वनि, एक अक्षर, एक शब्द,
एक पत्र, एक चित्र, एक मित्र, एक विचार....और एक से अनेक...'राम से बढ़ा,
राम का नाम'....क्योंकि राम का नाम कहने वाले, सुनने वाले, लिखने वाले...एक
नहीं...अनेक....अनेकानेक....सहज प्रसार...प्रचार हरगिज नहीं...शायद यही वह
आनंद हो सकता है, जो 'परम आनंद' कहलाता है...ना हार का डर,
ना जीत का लालच...अनुभव के आधार पर सात्विकता द्वारा स्व-प्रोत्साहन एक
धार्मिक योग हो सकता है...प्रत्येक चर्चा में अध्ययन की अपेक्षा अनुभव पर
प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है...कोई भी चर्चा कही से भी शुरू करके
कही भी ख़त्म कर सकते है...शब्दों को सहज बातचीत की शैली में पेश किया गया
है...एक पल ऐसा लग सकता है कि हम स्वयं से चर्चा कर रहे है...या चित्रो में
हम चर्चारत है और वही प्रस्तुत है जो सभी को सहज पहले से ही ज्ञात
है...किसी भी विषय को समय की सीमा या बाध्यता में प्रस्तुत नहीं किया गया
है...प्रत्येक चित्र को शाश्वत सत्य के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास
रहा है...अर्थात प्रत्येक चित्र, प्रत्येक मित्र के लिए...और चित्र व मित्र
के संगम से 'चल-चित्र' संभव हो कर सुनिश्चिंत हो सकता है...कीर्ति या यश
की सीमा से पूर्ण परे...मात्र श्रवण, कीर्तन, चिंतन, मनन....आमने-सामने का
आभास या अनुभव...गहराई हेतु मस्तिष्क को जाग्रत करने का सहज
अभ्यास...'अभ्यास से अनुभव' की उत्पत्ति...उच्च, समकक्ष या मध्यम...मात्र
स्व-अनुभव...अल्प-काल में आत्म-विश्वास जाग्रत करने हेतु धर्म की सहजता को
स्पर्श करने का प्रयास...मात्र एक निवदेन...सहज निमंत्रण...मात्र
'विनायक-चर्चा' के माध्यम से...हार्दिक स्वागत..."विनायक समाधान" @
91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास).
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