Wednesday 30 September 2015

जय हो...प्रार्थना करने से पूर्व ‘प्रार्थना’ की महत्वपूर्ण चर्चा....”विनायक चर्चा”...प्रार्थना ही किसी भी सात्विक कार्य का मुख्य आधार होती है...प्रार्थना का मुख्य कार्य है—मन या मष्तिष्क में नए-नए विचार उत्पन्न करना...विचार हमेशा सजीव माने जा सकते है...जब ये उत्सर्जित होने लगते है तो वास्तविकता जन्म ले कर घटित होने लगती है...और निष्कर्ष या परिणाम सफलता के रूप में साक्षात्कार करते है...प्रकृति या ईश्वर ने मानव मस्तिष्क को अपार उर्जा तथा योग्यता दी है...और इन शक्तियों को प्रयोग में लाने हेतु हम प्रार्थना का उपयोग करते है...और जब प्रार्थना प्रतिदिन का नियम हो जाती है तो लय-ताल अर्थात स्वर-संगम का अनुभव संभव है...प्रत्येक कार्य में प्रकृति या ईश्वर के साथ हमारी सह्भागिदारिता या साझेदारी हो सकती है...अच्छा कार्य करने के लिए हम सभी ज्यादा योग्यता अर्जित करना चाहते है...और हमारी मदद सिर्फ हमारी प्रकृति या हमारा ईश्वर ही कर सकता है...हमारी शक्ति...हमारी प्रकृति...हमारा ईश्वर, हमारे भीतर है...इसी शक्ति से हम अपने सपने साकार करने की कोशिश करते है...इसी शक्ति के जागरण हेतु हम प्रार्थना करते है....अनुभव के विभिन्न स्तरों द्वारा इस आन्तरिक शक्ति का अध्ययन संभव है...और जब हम इस शक्ति से सम्बन्ध कायम करने की कोशिश करते है तो स्वयं को अंतर्दृष्टि तथा बुधिमत्ता के पथ पर महसूस करते है...और जब गुरु-कृपा होती है तो एक शब्द, एक प्रश्न, एक चित्र, एक पुस्तक, एक कविता, एक चर्चा, एक प्रार्थना या मात्र एक दृष्टि ही पर्याप्त माध्यम हो सकती है...और एक नई शुरुआत या कोई फैसला या कोई निर्णय हो सकता है...जिसका हमको पता चले या ना चले, कोई फर्क नहीं पड़ता...ना हार का डर, ना जीत का लालच....शायद यही है-प्रकृति का नियम...इसी सहज नियम का अनुसरण का नाम है...’विनायक-चर्चा’...प्रार्थना समस्त प्रलोभनों या प्रपंच पर विजय दिलाती है....'विनायक चर्चा' का यही उदेश्य कि हम सब प्रार्थना करके सहज 'भाग्यवान' बने...धर्म या सम्प्रदाय कोई भी हो, सब का सार एक ही है---"सर्वे भवन्तु सुखिनः".....हार्दिक स्वागत...विनायक समाधान @ 91654-18344...(इंदौर / उज्जैन / देवास)…




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