जय हो....'या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रुपें संस्थिता'....क्या हम लगातार,
निरंतर, अनवरत...14-15-16 घंटे कार्य करने में सक्षम है ?......और यदि है
तो हमारा पारिश्रमिक कितना होना चाहिए ???...किसी भी सामान्य गृहणी की
वार्षिक आय सुन कर चौकिएगा नहीं...किसी की आय की गणना करने से पूर्व उसके
कार्यो का ब्यौरा आवश्यक होता है....अगर किये गए कार्य समय की सीमा से
ज्यादा होते है तो 'समयोपरि-भत्ता' सहज मान्य हो सकता है...शायद इसलिए कि
समय की सीमा से बाहर कार्य करना पूर्ण स्वैछिक हो सकता है...आय
का सहज नियम हो सकता है..."काम का लेंगे, पूरा दाम"....या....'काम नहीं तो
दाम नहीं'....या...'सही काम, सही दाम'....यदि हम किसी भी परिवार की
समीक्षा करते है तो देखते है क़ि किसी भी परिवार की महिला सुबह लगभग पांच
(5) बजे घडी या मोबाईल के अलार्म के साथ या नियमित आदत अनुसार उठ जाती
है...और फिर काम की सहज शुरुआत....लगातार, निरंतर, अनवरत...ना हार का डर,
ना जीत का लालच....कोई शिकवा-गिला नहीं, सहज कर्तव्य....थकान के स्थान पर,
अगले दिन की योजना तैयार...और रात्रि दस (10) बजे तक परिवार के सभी सदस्यों
की सेवा करती है...जीवन पर्यन्त सहज सेवा...कोई अवकाश नहीं, कोई अपेक्षा
नहीं...कोई सेवा-निवृत्ति नहीं...और यदि गृहणी किसी शासकीय या अन्य सेवा
में है तो पारिवारिक सेवा किसी सामंजस्य पूर्ण चुनौती से कम नहीं...यदि
उपरोक्त सम्पूर्ण परिश्रम को उचित पारिश्रमिक में परिवर्तित किया जाये तो
हम अंदाज लगा सकते है कि प्रतिदिन, प्रतिमाह, प्रतिवर्ष कितनी राशि
पारिश्रमिक के रूप में चुकाना होगी ???...एक विपुल धनराशि....और दिलचस्प
पहलु यह कि इस धनराशि का दुगना अदा करने पर भी कोई अन्य महिला इतनी सेवाए,
परिपूर्ण सेवा-भावना से नहीं दे सकती है...अत: गृहणी का महत्व सदैव
महत्वपूर्ण रहा है...शायद यही कारण है कि गृहणी को "गृह- लक्ष्मी" कहा जाता
है...साक्षात् “अन्नपूर्णा”....जय हो....सादर नमन...आप की उर्जा सदैव
विद्यमान रहे...यत्र, तत्र, सर्वत्र....'या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रुपें
संस्थिता'...प्रणाम...
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