Monday 28 September 2015

.........”no negative news”…..मात्र चित्र या मान-चित्र या शब्द देख कर ही उद्देश्य समझ में आ जाता है....”यथा बीजम् तथा निष्पत्ति”...किसी अच्छी चीज को प्रचार द्वारा विस्तार देना आवश्यक है...सात्विक प्रसार मात्र....यह हमारी स्वस्थ मानसिक आवश्यकता एवम् परम्परा हो सकती है...जैसी चर्चा होगी वैसा ही माहौल होगा, वैसी परिणति होगी... ”नक्शे, रेखाओं तथा घडीयो में “ध्यान तथा एकाग्रता” का परचम लहराता है...अंक तो फिर भी मांगने पर ही दिए जाते है अथवा बिना जानकारी के काट दिए जाते है...मात्र शून्य से एक तक की यात्रा....जो रेखाओं में अंकित नहीं परन्तु रेखाए उन्हें भी प्रकट करने का अथक परिश्रम कर सकती है...यत्र, तत्र, सर्वत्र....गर्भ से अंत तक की यात्रा मात्र रेखाओं का सफ़र भर है...रेखाओ में चिकनाइ नहीं होती है...परन्तु तेल में धार के रूप में रेखाए होती है, तभी तो कहा गया है...तेल देखो और तेल की धार देखो...और हम देख सकते है...शुद्धता मात्र निगाहों से ही झलक जाती है...और तेल स्वास्थ्य के लिए कम और स्वाद के लिए ज्यादा जाना जाता है....चिकनाई ज्यादा मात्रा में हानिकारक ही मानी गयी है...गिरने या फिसलने का डर बना रहता है...और रेखाए चिकनाई की परिधि से पूर्ण बाहर होती है....रेखाओ से ही शब्द या अंक उत्पन्न होते है...रेखाओं से ही प्रमेय निर्मित तथा सिद्ध हुए है...रेखाओं के बारे में अनेक मान्यताये हो सकती है...मस्तक पर खिंच जाये तो किस्मत...जमीन पर खींच जाये तो सरहद....त्वचा पर खीच जाए तो रक्त या प्रतिशोध या झुर्रियां...रिश्तों पर खीँच जाए तो दीवार...हस्त रेखाए तो प्रकृति का साक्षात् चमत्कार मान सकते है....उंगलियों के निशान तो अदभुत एवम् निरुत्तर चमत्कार हो सकता है...नींद और मौत के मध्य एक रेखा ही हो सकती है.




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