"विनायक_चर्चा"...मात्र शब्दों का आदान-प्रदान...Respected friends, जय
हो...with due respect...सादर नमन...The anxiety eats-up humans . As
termites consume paper, white ant
eats-up wood and makes it hollow, and tuberculosis makes the body
dilapidated and weak, worry ruins health, beauty and vigour...अर्थात
जीवन के मुख्य आधार स्वास्थ्य, सुंदरता तथा शक्ति या जोश या जिंदादिली...और
यह सब मात्र सहज जीवन के मुख्य स्तम्भ होते है...इन स्तंम्भो का चिंता
द्वारा प्रभावित होना स्वाभाविक प्रक्रिया हो सकती है...परन्तु सहज चिन्ता
'असहज' चिन्ता में परिवर्तित होने लगे तो अनेक लक्षण प्रकट हो सकते
है...जैसे सोच, उत्कण्ठा, फ़िक्र, व्यग्रता, खिन्नता, खिजना, थकना...और इन
समस्त असहज लक्षणों से प्रतिदिन के कार्य निश्चिन्त प्रभावित हो सकते
है...अर्थात हम अनियमित हो सकते है और नियमित होने के लिए हम सभी धर्म का
पालन कर सकते है...अर्थात सहज धर्म...सहज सात्विक कार्य...सहज
स्वैच्छिक...प्रतिपल, प्रतिप्रहर, प्रतिदिन, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक,
त्रैमासिक, अर्धवार्षिक, वार्षिक, आजीवन या हमेशा...कोई सीमा या बाध्यता
नहीं...सहज धर्म में सहज संकल्प...सहज धर्म उस परमेश्वर का साम्राज्य हो
सकता है, जिसे देखा या सुना नहीं जा सकता है, परन्तु फिर भी मात्र श्रवण,
कीर्तन, चिंतन, मनन तथा आहार, विहार, सदाचार से उसके साम्राज्य को अनुभव
किया जा सकता है...मात्र सहज प्रार्थना के आधार पर....और यह अनुभव एक
चिन्ता मुक्त आनंद का रूप हो सकता है...यही निवेदन....हार्दिक
स्वागत..."विनायक समाधान" @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास).....
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