Wednesday 30 September 2015



जय हो...'विनायक-चर्चा'...’मन की चर्चा’...जो पैदा होता है, वह जीता भी है तथा मृत्यु भी सुनिश्चिन्त है...इसी दौरान शरीर, मन तथा चेतना के रूप में तीन उपलब्धियाँ प्राप्त होती है...और समस्त प्राणियों में मानव मन सर्वाधिक विकसित माना गया है...यह मन सम्पूर्ण विचारों की जड़ माना जाता है...यह मन ईश्वर का निर्माण करता है...मन सभी जिज्ञासाओं को उत्पन्न करता है...मन ही समस्त जिज्ञासाओं का समाधान करता है...बुद्धि, चित्त, प्रज्ञा, ज्ञान, अज्ञान यह सभी मन के विभिन्न रूप हो सकते है...अर्थात मन ही आत्मा तथा शरीर के मध्य सम्बन्ध का कारक माना जाता है...सुख-दुःख मात्र शरीर और मन के हो सकते है, आत्मा के हरगिज नहीं...आत्मा तो सिर्फ आनन्द को पहचानती है...और आनन्द के लिए मन का शान्त होना अति-आवश्यक है...समस्त आकुलता और विकल्प मन की ही देन है, अतः मन पर नियंत्रण जरुरी है...मन पर अंकुश लगाने हेतु अनेक सहज विधियाँ सहज उपलब्ध है...वशिष्ठ की योग क्रियाएँ, गीता के तीनो मार्ग-ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग, भक्ति मार्ग...बुद्ध के अष्टांग योग, महावीर के दस धर्म, जीसस का बलिदान, मोहम्मद की भक्ति, गुरु-गोविन्द का शौर्य इत्यादि...सभी विधियाँ एक ही सन्देश देती है...”इच्छायें मन के रथ पर सवार हो कर दुखो का कारण बनती है”...अस्थाई सुख-दुःख तथा चिर-स्थाई आनन्द में अन्तर हम जान सकते है, बस हमें सहज जागरूकता चाहिए...एवं इसके सहज माध्यम हो सकते है...सहज भक्ति, सहज ज्ञान, सहज भक्ति, सहज श्रध्दा, सहज आस्था.. क्लिष्टता विद्वान की अनिवार्यता हरगिज नहीं हो सकती है...असीम संभावनाओं का प्रकाशन धार्मिक आवरण में लगभग सुरक्षित महसूस होता है...ना हार का डर...ना जीत का लालच... शृंगार हम अपनी सुंदरता निखारने के लिए करते है, न कि अपनी कमजोरिया छुपाने के लिए...हार्दिक स्वागत...मात्र अनुभव का क्रमचय तथा संचय....आमने-सामने...."विनायक समाधान" @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)..

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