Wednesday 30 September 2015

सभी मित्रों को प्रणाम....विनायक समाधान का मुख्य कार्य 'आमने-सामने' की 'विनायक-चर्चा' हो सकती है...बिल्कुल एक चैरिटी शो के समान...पूर्ण स्वैछिक माध्यम कोरे कागज पर मात्र तीन रेखाएं...निःशुल्क तथा निःस्वार्थ...और ख़ुशी है कि गुरु-कृपा तथा मित्रो के स्नेह से वर्ष 2007 से अनवरत सेवारत है...और आप विश्वास करे 'लेखन' का कार्य हरगिज नहीं है...प्रति सप्ताह करीब 25 से तीस मित्रों से चर्चा के बाद यदि कोई सर्व-साधारण अनुभव हासिल होता है तो सर्व-साधारण को ज्ञात हो...सहज रूप से...मात्र इसी उद्देश्य से लेखन प्रारम्भ किया गया...ठीक एक प्रयास से प्रारम्भ 'GRANT ME A PLACE TO STAND, I SHELL LIFT THE EARTH'....इत्र बेचने का कार्य कम लोग करते है, परंतु महकने, महकाने वाले अनेक हो सकते है....प्रत्येक बाधा को चीरते हुए...इत्र की महक की अपेक्षा शब्दों की महक अनंत काल तक हो सकती है...और यह विचार लेखन के समय मन में आ जाता है तो विस्तार में या प्रसार में एक दायित्व का अहसास होने लगता है...अभी तक के अनुभव से यह ज्ञात हुआ कि हम में प्रत्येक में एक स्वाभाविक चाहत या मनोकामना या इच्छा या आकांक्षा हो सकती है...इच्छा बड़ी सामान्य तथा विचित्र है...हम कुछ कहलाने में "वान" शब्द का उपयोग चाहते है...जैसे गुणवान, विद्धवान, रूपवान, धनवान, पहलवान, जवान, धैर्यवान, भाग्यवान् इत्यादि...और यकीन मानिये...'वान' शब्द को हासिल करने के लिए निश्चिन्त रूप से अनुभव के साथ-साथ परिश्रम की आवश्यकता होती है...और सामान्य भक्ति कहती है कि 'वान' शब्द हासिल करने हेतु , मात्र प्रोत्साहन हेतु , मात्र मात्र नकारात्मकता को स्पष्ट इनकार करने हेतु....प्रार्थना का प्रावधान सिर्फ और सिर्फ--"भगवान" के समक्ष हो सकता है...'हैवान' के सामने कदापि नहीं, हरगिज नहीं...असंभव....'हैवान' से भी इस सन्दर्भ चर्चा की जाय तो वह भी इच्छा के लिए मात्र "भगवान" के समक्ष अवश्य प्रार्थना करना चाहेगा...और ईश्वर के समक्ष सहज प्रार्थना हेतु एक माध्यम अवश्य चाहिए....वैसे तो सम्पूर्ण वायुमंडल माध्यम का कार्य करता है, परंतु इस वायुमंडल को अनुभव करने लिए हमारे पास मात्र हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ ही माध्यम का कार्य करती है...और हमारी ज्ञानेन्द्रियों का अनुभव कहता है कि "जो उंगली पकड़ कर चलना सिखाये"...हम उसी को श्रद्धा तथा आस्था के साथ "गुरु" शब्द से सम्बोधन करते है...और अनुभव कहता है--वह एक भी है और अनेक भी है...और एक मजेदार पहलु यह कि 'वान' शब्द हासिल करने के पश्चात् दुविधाएं बढ़ती प्रतीत हो सकती है...शीर्ष पर स्थापित रहना भी किसी चुनौती से कम नहीं...कभी-कभी हमें यह भ्रम हो जाता है कि संसार में हम से ज्यादा सुखी या हम से ज्यादा दुःखी कोई और नहीं हो सकता है, परन्तु यह बात ग़ौरतलब है कि सुख हो या दुःख दोनों उतने ही क्षणिक है, जितना हमारा जीवन....हम सुख या दुःख को गिनने के साथ-साथ परोपकार को भी गिनना शुरू या जारी रख सकते है....'विनायक चर्चा' का यही उदेश्य कि हम सब प्रार्थना करके सहज 'भाग्यवान' बने...धर्म या सम्प्रदाय कोई भी हो, सब का सार एक ही है---"सर्वे भवन्तु सुखिनः".....हार्दिक स्वागत...विनायक समाधान @ 91654-18344...(इंदौर / उज्जैन / देवास)



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