Tuesday 29 September 2015

..जय हो...सायकल को आम-भाषा में 'द्विचक्र-वाहिनी' कहना जरा असहज सा लगता है...वास्तव में यह नाम किसी भी दुपहिया वाहन का हो सकता है...सायकल कम लोग चलाते है...या कभी-कभी चलाते है...या नियमित चलाते है....या कभी-कभी परन्तु अनिवार्य रूप से चलाते है...प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि कितने लोग सायकल चलाने में असहज महसूस करते है ?...और कितने लोग है जो सायकल चलाते वक्त सहज महसूस कर सकते है ?...और यदि आसानी से सहज अनुभव हो तो सायकल का महत्व किसी भी महंगे दुपहिया वाहन के समकक्ष संभव है...हम सायकल शायद इसलिए नहीं चलाते है कि कीमत कम है या अन्य लोग टिका-टिपण्णी कर सकते है या शारीरिक रूप से थकने का डर हो सकता है या समय की कमि या लम्बी दुरी....हमारी सारी दलीले एक स्वस्थ तथा साधारण व्यक्ति आसानी से ख़ारिज कर सकता है....यह हम सहज अनुभव कर सकते है कि इस अभ्यास से शरीर का तापमान स्वत: नियंत्रित हो सकता है....भारत देश में सायकल का चलन कम होना चिंता का विषय हो सकता है जबकि चीन में सायकल अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार है...सायकल चलन में समय तथा दुरी की बाध्यता को समाप्त कर दिया जाय तो स्व-प्रोत्साहन हेतु इससे उम्दा तरीका दूसरा नहीं होगा...वर्तमान में तो सक्रियता तथा सम्मान बढ़ाने का सहज माध्यम यही हो सकता है...चूँकि समय एवं दुरी की बाध्यता समाप्त है तो पंजीकरण अनिवार्य हो जाता है..मात्र मित्रों के साथ या सामानांतर या समकक्ष...पंजीकरण या रजिस्ट्रेशन....अर्थात मै नहीं हम....जो एक अभियान अवश्य है....साथ-साथ चलने का....हमेशा या कभी-कभी....परन्तु एक नहीं अनेक.....सहज संग-संग....अगर चंद चुनिन्दा तथा उम्दा लोग साधारण कार्य करते है तो यही साधारण कार्य, अन्य साधारण लोग दिलचस्पी तथा उम्दा तरीके से करने लगते है....



No comments:

Post a Comment