Wednesday 30 September 2015

"Shree Haridra Ganesha siddhi Yantra"...इस पावन तथा सात्विक यंत्र की सुन्दर महिमा मात्र इसलिए कि गणना में यंत्र का महत्त्व ठीक उसी प्रकार है जैसे--"calculation just by calculator"...whenever....wherever & forever....just for "WHAT ELSE ?"...and answer may be "WHATEVER"....और याद रखे हम अपनी उँगलियों का उपयोग अक्सर गणना हेतु करते है...उँगलियों का उपयोग प्रार्थना में भी होता है...यह विशेषता सिर्फ मनुष्य मात्र को 'प्रकृति-प्रदत्त' अर्थात 'GOD-GIFT' है..ठीक उसी प्रकार जैसे चश्मे का उपयोग...स्वयं की आवश्यकता के लिए स्वयं का आविष्कार...मात्र स्वयं के लिए...सिर्फ ज्ञानेन्द्रियों को लाभान्वित...मात्र अध्ययन हेतु...ध्यान हेतु...एकाग्रता हेतु...सावधानी हेतु...मात्र एक "सेतु"...जो ज्ञानेन्द्रियों को अन्य पहलुओं से अवगत करवाये...एक योग करवाये...सुयोग...सफल और सुफल....पूर्ण वैज्ञानिक तथ्य...परछाई का रंग उसकी 'सत्यता' और माध्यम उसकी 'उत्पत्ति' होती है...'Haridra Ganesh Yantra' is used for obtaining blessing of Deva Shree Ganesha for success in removal of obstacles & gaining of knowledge, wit, speech, writing power, money, protection, fame, power, position, success in Tantra. It is also used for removing malefic effects of ATMOSPHERE....अर्थात क्षमा, रक्षा, न्याय, व्यवस्था...अर्थात ऊर्जा का संचय...अर्थात साक्षात् "ईशान"...जय हो...सभी मित्रो को प्रणाम...'चर्चा भक्ति की'...हम सभी भक्ति का अनुभव रखते है...सामान्य रूप से अपने परिवार में...मात्र अपने माता-पिता की भक्ति का अनुभव...सहज रूप से 'गुरु-शिष्य' का अनुभव...कम उम्र से...बचपन से ही...हम यह अनुभव करते है कि भक्ति के क्षेत्र में प्रत्येक पहलु को सुन्दर बनाने का प्रयास होता है...इस विश्वास के साथ कि सुंदरता द्वारा श्रद्धा तथा आस्था को सहज जाग्रत किया जा सकता है...सहज जागृति के लिए सुंदरता को सहज रूप में अनुभव करना भी भक्ति का आवश्यक पहलु माना जाता है...और यह हम सभी जानते है कि सहज सुंदरता ही सदाबहार हो सकती है...और यदि धर्म की बात करते है तो चिरस्थाई धर्म में सिर्फ मन्त्र अर्थात शब्दों को ही सहज सुन्दर माना गया है...और शब्दों को यदि यंत्रो के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो ध्वनि तो नहीं परंतु 'प्रतिध्वनि' अवश्य हो सकती है--"सर्वे भवन्तु सुखिनः"...और हमारे मन से अर्थात ज्ञानेन्द्रियों से एक ध्वनि उत्पन्न होती है--"गुरु कृपा हि केवलम्"...सुंदरता की और अग्रसर होते हुए हम यह अनुभव करते है कि हमारे द्वारा इस सुन्दर, सहज, आसान तथा क्षणिक जीवन में अनेक प्रश्न उत्पन्न किये जाते है...और इतिहास उठा कर देखा जाए तो आज तक प्रत्येक परीक्षा में सिर्फ निर्धारित प्रश्नो के लिए समय तथा अंक प्रत्येक के लिए समान तथा निर्धारित होते है...और इसके विपरीत हम स्वयं से लगातार प्रश्न करते है...यदि यही सब प्रश्न कोई हमसे कोई और करे तो यकीन माने हम नाराज़ हो कर प्रश्नकर्ता को चुप रहने को कह सकते है...परन्तु यह हम स्वयं से नाराज़ नहीं हो सकते है...परन्तु हम अनेक प्रश्न का एक उत्तर या एक प्रश्न के अनेक उत्तर अवश्य जान सकते है...और यह चमत्कार की बात न हो कर मात्र अध्ययन की बात हो सकती है...एक सुदंर और सहज जानकारी यह है कि लगातार प्रश्न करने वाला शनैः-शनैः अयोग्यता की श्रेणी में आ सकता है तो लगातार उत्तर देने वाला योग्यता की श्रेणी में अबश्य आ सकता है...और समय अनुसार प्रश्न और उत्तर में परिवर्तन अवश्य हो सकता है..इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारा स्वयं का अनुभव होता है...'विनायक चर्चा' के माध्यम से यही निवेदन है कि सहज सुंदरता कायम रहे...हार्दिक स्वागत...विनायक समाधान @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)...


No comments:

Post a Comment