Tuesday 29 September 2015

बात है शान से जीने की....शान मतलब प्रोत्साहन, आत्मविश्वास तथा निर्णय...जीवन की सबसे बड़ी चिंता यह कि लोग हमारे बारे मे क्या सोचते है ?...यहॉ सोच-सोच कर हम प्रति-पल मृत्यु का आभास करते है...आप गौर करे की जिंदगी बहुत ही अस्थायी है.....पल में साँस और पल में मृत्यु.....यही है जिन्दगी...इस एक पल में अनेक पहलु.....प्रश्न सही और गलत नहीं हो सकते है, उत्तर अवश्य सही या गलत होते है...सार तो सीधे-सीधे जिंदगी ज़ीने में है...भविष्य बताने वाले बताते कुछ और है तथा घटित कुछ और होता है.....और यदि कुछ सकारात्मक होता है तो इसका श्रेय वे आसानी से ले लेते है...यदि आफत आ जाती है तो जन्म-पत्रिका या हस्त-रेखा का अध्ययन ज्यादा गहरा हो जाता है....समस्त भविष्य वक्ता मुसीबत में प्रारब्ध या ईश्वर की मर्जी का हवाला देकर अपने ज्ञान द्वारा आगे की रणनीति तय कर लेते है....वास्तव में समस्या होती है कि हम कँहा है और कंहाँ जाना चाहते है ?....मनुष्य मात्र को सोचने और निर्णय का वरदान प्राप्त है....बस यही वरदान अभिशाप हो सकता है...और यह सत्य है कि मनुष्य मुसीबत के समय ज्यादा अर्थात आवश्यकता से अधिक सोचता है..या विनाश काले विपरीत बुद्धि के तहत गलत निर्णय ले सकता है .ठीक श्रीमदभागवतगीता के विपरीत....'हम क्या लाये है और क्या साथ जायेगा ?.....सहज उत्तर है....'कुछ नहीं'.....और इस कुछ नहीं के लिए हम निरंतर 'बहुत कुछ' करने का प्रयास हरदम करते रहते है...'कुछ नहीं' के स्थान पर उत्तर यह भी हो सकता है कि हम संस्कार साथ लाये है और सम्मान साथ ले जायेंगे.....एक सहज नियम है जीने का कि सहज कर्म हेतु सहज प्रयास...अर्थात सहज परिश्रम...और इस परिश्रम के पश्चात् यदि दो वक्त का भोजन समय से प्राप्त हो जाए तो क्या अमीर और क्या गरीब....कोई अंतर नहीं रह जाता है....प्रत्येक आनंद-दायक भोजन के पश्चात् स्वयं को करोड़पति समझना मनुष्य की स्वाभाविक आनंद या प्रवृत्ति हो सकती है...भोजन की थाली सिर्फ भूख को देखती है....भूख के लिए मनुष्य भीख भी मांगने को मजबूर हो सकता है....भोजन की थाली में मुख्य आईटम सिर्फ और सिर्फ रोटी होती है...मगर हम उसमे सजावट के रूप में फालतू चीजे भरते जाते है....यह जानते हुए भी कि सिर्फ रोटी ही स्थायी है जिसका कोई विकल्प नहीं है....हम महल बनाते है, मगर शयन हेतु मात्र एक कमरा ही पर्याप्त होता है...हम सम्पूर्ण जिंन्दगी की चिंता करते है परन्तु सिर्फ वर्तमान ही महत्वपूर्ण होता है....हम अनेक पुरस्कार की चाह करते है परन्तु मात्र एक प्रोत्साहन की कल्पना को तरस जाते है....रणनीति तय करने के लिए एक राजा को भी मंत्री-परिषद् की आवशयकता महसूस हो सकती है....अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है....यंहा तक कि भगवान भी भक्तो के बिना अधूरा कहलाता है..





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