Monday 28 September 2015

उर्जा को जाग्रत करना अत्यंत सहज कार्य हो सकता है...ठीक हमारी श्वसन या स्वप्न या श्रवण प्रकिया के समान...पूर्ण प्राकृतिक...सहज चमत्कार...सर्वाधिक स्व-अनुभव...या स्व-नियंत्रण...या पूर्ण-स्वतन्त्र...या पूर्ण-गणतंत्र...पूर्ण मौन रूपी एकांत...लक्ष्य को निहारने के लिए सर्व-श्रेष्ठ उपकरण...जीवन-क्रम के संग्राम मे आवश्यक सुरक्षा साधन...मात्र स्वाध्याय को सहज अनुभव करने हेतु...यही धर्म की सहज राह या पथ या मार्ग या मंजिल हो सकती है...स्वाध्याय ही सक्रियता को स्पर्श करने का एक-मात्र माध्यम हो सकता है...अर्थात हम वह प्रत्येक सात्विक कार्य करने के बारे में सोच सकते है, जो हमको उत्तम लग सकता हैं.....हम निरन्तर कुछ सिखने का प्रयास करते है, परन्तु कभी-कभी कुछ भूलना भी महत्वपूर्ण हो सकता है....अर्थात....’व्यर्थ के काम से बचना’...यह कार्य ज्यादा आसान करना हो तो सात्विक कार्य की श्रंखला हम स्वयं भी तैयार कर सकते है...समय अनुसार.....उच्च, समकक्ष या मध्यम....शुद्ध रूप से....यह स्वयं का निर्णय हो सकता है...आमने-सामने....पूर्ण स्वतंत्रता के साथ....जय हो....शेष चर्चा अति-शीघ्र....ससम्मान.....सादर नमन्......”विनायक-चर्चा” हेतु सादर आमंत्रित...



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