Tuesday 29 September 2015

मौलिकता का कोई मौल नहीं....हम अक्सर कहते आये है...”बस एक मिनट में आया”...क्या समय की मौलिकता मौल उचित है ? समय में असत्य की मिलावट सहज गंभीरता का विषय हो सकता है.....हम स्वयम की मौलिकता के बारे में भी विचार कर सकते है....सहज गति ही मौलिकता हो सकती है....आदमी थक हार कर आखिर में चुप-चाप बैठ जाता है....या फिर नादानी में पुनः कोई भूल कर बैठता है...स्वयं की गलती पर हमारा ध्यान सबसे अन्त में जाता है...जो यह सिद्ध करता है कि मात्र अज्ञानता या लापरवाही में गलती वास्तव में हम से ही हुई है...इसी दौरान समय अपनी गति से चलता रहता है....अनेक सुअवसर पहचानने का अवसर छुट जाता है...इसका निवारण सिर्फ इसलिए आसान है कि गलती स्वीकारने या सुधारने का कार्य सिर्फ हमको शुरू करना है....समय अनुसार.....उच्च, समकक्ष या मध्यम....शुद्ध रूप से....यह स्वयं का निर्णय हो सकता है....जय हो....शेष चर्चा अति-शीघ्र....ससम्मान.....सादर नमन्......”विनायक-चर्चा” हेतु सादर आमंत्रित..



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