Thursday 8 October 2015

जय हो...कितना सुविधा जनक होता है, जब न धन की आवश्यकता हो, न ही ज्ञान की....हम में से प्रत्येक इस प्रकार के कार्य करने की लालसा रख सकता है...परन्तु हम में से प्रत्येक इस प्रकार के कार्य क्या निरंतर जारी रख सकते है ?....धन प्रचुर मात्रा में हो फिर भी अस्थाई की श्रेणी में हो शुमार होगा....और ज्ञान प्रचुर मात्रा में हो फिर भी भरपूर या विपुल या पर्याप्त मात्रा में नहीं कहला सकता है...दोनों पक्ष दुविधा-पूर्ण...जबकि दोनों इस दुनियादारी की अत्यन्त महत्वपूर्ण सुविधाएँ मानी जाती है...एक और चंचलता से भरपूर माँ लक्ष्मी...'श्री-देवी' तो दूसरी और स्थायित्व से परिपूर्ण माता सरस्वती....'ज्ञान-देवी'....एक जो चंचला कहला कर सिर्फ भ्रमण करे, दूसरी मात्र एकाग्र हो कर आसन ग्रहण करे...एक सदा अतिथि कहलाये, दूसरी जो सदैव अतिथि का सम्मान करे...दोनों के वाहन भी पूर्ण भिन्न...आसन का तो कार्य ही निमंत्रण या आमंत्रण है...मात्र सम्मान हेतु...सबका सहज सम्मान...न ज्ञान का आधार, न धन का धरातल.....आधार हो या धरातल दोनों को अनुभव करने का एकमात्र माध्यम मात्र आसन हो सकता है...इस एकमात्र आसन के अनेक रूप हो सकते है...प्रत्येक प्रहर का भिन्न आसन....सभी सहज...योग-आसन, स्नान-आसन, पूजा-आसन, विद्या-आसन, भोजन-आसन, शयन-आसन...सबसे महत्वपूर्ण पुरुषार्थ-आसन अर्थात राज्य-पक्ष का आसन...इसका भी मूल-आधार पूजा-आसन....प्रतिपल ज्ञान ग्रहण करने का आसन...और कोई भी आसन हो, यही सहज प्रयास हो कि आसन-ग्रहण में एकाग्रता तथा जड़त्व का अनुभव हो...और सहजता तथा सात्विकता हो तो प्रत्येक आसन...."विनायक-आसन"...खुद ही को कर बुलंद इतना कि ख़ुदा खुद कहे....'बता तेरी रज़ा क्या है' ???...दुनिया कितनी भी अनन्त क्यों न हो, लेकिन मात्र आसन के इर्द-गिर्द ही घुमती रहती है...और आसन पर आसीन हम स्वयं...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....जय हो...सादर नमन...शेष चर्चा हेतु....www.vinayaksamadhan.blogspot.in....अवश्य अध्ययन करे...हार्दिक स्वागतम….प्रत्येक चित्र, मित्र के रूप में एक ‘निमंत्रण-पत्रिका’ या ‘VISITING CARD’ या ‘BANNER’ या ‘HOARDING’....जो भी हो....पर है....BECAUSE OF YOU….&….WE LOVE YOU….मित्रोँ स्मरण रहे....(VINAYAK) विनायक की भक्ति में हम सब (WE-NAYAK)....हम-नायक अर्थात गण-स्वरूप....और वह गण-पति अर्थात गण-नायक....Most welcome....regards...








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