Saturday 19 November 2016

यह आजादी कि कोई आवश्यक नहीं है SHARE या LIKE करना, तब जल्दबाजी में कोई भी काम ना करना ही बेहतर.....फोटो पर शेयर या लाइक करना तो किसी के भी दायें हाथ का खेल.....परन्तु बाएं हाथ का उपयोग करने की सलाह पर यातायात सुचारू चलता रहता है.....किसी सुनियोजित खेल की तरह....जैसे पैसे को हाथ का मैल कहा जाता है.....और जिन्दगी एक खेल.....कुछ और नहीं बस सुबह से शाम तक की रेलमपेल.....तब खुद को खुद से बात करने की फुर्सत कहाँ ?....बस दूसरों को प्रभावित करने की कवायद हरदम.....तब सुरक्षा की दृष्टि से यही दृष्टिकोण कि....LIVE TO EXPRESS AND NOT TO IMPRESS……THIS IS THE ONLY LIFE WE HAVE GOT TO BE ‘SELF’…..MAY BE SOMEONE SPECIAL……..SO, LIVE UP TO ORIGINALITY…….ताश के पत्तो में इक्के का महत्त्व बेहद ज्यादा.....ALWAYS SAY ‘YES’ TO 3A…..ACCEPT, ADJUST, APPRECIATE……और हमारे अन्दर की नकारात्मक शक्ति किसी भी काम को ना-नुकुर से सवांरते रहती है.....इज़हार की जगह इनकार को शान में बदलने की आदत भला छुटे कैसे ?......NEVER …..NO….NOT….मात्र मुंडी हिला कर इनकार करने का आविष्कार भी इंसान ने ही किया.....बस यदि यह करना ही है तो सी-ग्रेड के तीन काम आसानी से इनकार किये जा सकते है....NEVER.....CRITICIZE, CONDEMN, COMPLAIN…
चाय की दूकान पर अख़बार मे लिखा था....A friend is one of the nicest things we may have.... and one of the best things we may be....और बुजुर्ग कहते आए है...समझदार को इशारा काफी....जैसे सब से उत्तम माफ़ी...छोटी सी बात...ना मिर्च, ना मसाला....कह कर रहता है, कहने वाला....अर्श से फर्श पर अनेक लोग जाते रहते है....किन्तु कुछ लोग फर्श से अर्श पर जाते देख सकते है....और आने-जाने की खबर अखबार मे...रोज़ाना...जो फर्श पर है,जमाना उनके भाग्य को इसके लिये जवाबदार मानता है....जो अर्श पर है...वे मेहनत को मानते है...दो दिन दूकान ना जाओ तो गल्ला आवाज़ लगाता है....अलख जगाता है....आजा-आजा...मैं हूँ प्यार तेरा....और दूकानदार गल्ले के ऊपर भगवान के फोटो को अगरबत्ती लगा कर कहता है....YOUR presence is so POWERFUL....और गल्ला कहता है...DO NEEDFUL....stay till further order...सावधान ग्राहक कभी भी...किसी भी रूप में...कहीँ से भी आ सकता है....घोडा कितना भी मजबूत क्यों ना हो....घोड़े की नाल अपना महत्व रखती है....और कदमो की आहट आस-पास से पता चल जाती है....किन्तु घौडो के टापों की आवाज़ दूर तक सुनाई देती है....दूर के ढोल को सुहाने रूप मे सुनने वाली कोई बात नही...जो जौहर दिखायेगा वही बाज़ी जीतेगा.....धारयताम पक्षबलेन...अर्थात HOLD WITH THE STRENGTH OF WINGS...हवा मे टिकने की कला पक्षी बचपन से ही सीख लेता है....और आदमी हवा मे उड़ने की कोशिश करता है...पक्षी के समकक्ष, परन्तु परिंदा अन्ततः....एक कदम आगे...या कहे कि outstanding....गीता में श्री कृष्ण कहते हैं..…सभी प्रकाशीय वस्तुओं में प्रकाश उत्पन्न करनें की ऊर्जा , मैं हूँ...और प्रार्थना करने पर सन्देश मिलता कि DON’T WORRY…..”मै हूँ ना”.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव....आपकी कृपा से सबका सब काम हो रहा है और होता रहे..... हार्दिक स्वागत......”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#... #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...जय हो...सादर नमन...#Regards#.
NEED TO KNOW....जमाने के साथ....कोडिंग-डिकोडिंग....या फिर मॉड्यूलेशन....हवा के समान....चलता-फिरता काम....हिंदी मे बेताल....अंग्रेजी मे फैंटम....कंप्यूटर मे स्पाइडर मेन....पूर्णतः काल्पनिक....सामुन्द्रिक-विज्ञान....लेकिन मस्तिष्क की वास्तविकता को असत्य मानना संभव नहीं...इंसान ने कल्पना को हकीकत मे बदलने के लिये भगवान की कल्पना करी...और प्रार्थना को वास्तविकता के दायरे मे खड़ा कर दिया...और तब हठ-योग स्वतः वर्जित हो जाता है....यह प्रक्रिया किसी भी साधना का अभिन्न अंग है...हरी करे सो खरी...हरी कथा अनंता....हरी रूठे, गुरु ठौर है, गुरु रूठे नही ठौर....ठेठ से ठेठ तक....गुरु कृपा अनंता...दुनिया के तमाम तंत्र....सृष्टि के समस्त यंत्र....सबका सार सिर्फ एक मन्त्र....सर्वे भवन्तु सुखिनः...भले ही मनुष्य ने भगवान की खोज करी...परिकल्पना के रूप मे....मगर यह समय की ब्रह्मवाणी है....सावधान ईश्वर सर्वोपरि है....आखिर हरी करे सो खरी...समय के साथ-साथ प्रतिभाओं की परिकल्पना प्रस्तुत हो कर रहती है....गुरु कृपा ही केवलम....ऊर्जा का उदगम....ठीक जैसे प्रकृति अपना स्वरूप प्रस्तुत करके रहती है...पूर्णतः स्वचालित प्रक्रिया....बुजुर्ग अपने अनुभव से सही फरमाते है...हर तीसरी पीढ़ी मे परिवर्तन...और पेढ़ी एक से दो भली....धर्म के अनुसार बरकत हमेशा भली....पेढ़ी आधी होने की बात नही...ठीक जैसे दुर्घटना से देरी भली....और चमत्कार यही कि दुर्घटना टली....जैसे ताकतवर के लिये दया भली....यही तो शाकाहार का चमत्कार है कि एक से भले दो...या फिर मिल-बाँट कर खाओ और वैकुंठ में जाओ...अपनों के साथ वक्त का पता नही लगता किन्तु वक्त के साथ अपनो का पता लग जाता है....प्रगाढ़ सम्बन्धो की परिभाषा किस प्रकार प्रदर्शित हो ?.....स्वार्थ का प्रतिशत किस प्रकार तय हो ?....लेन-देन मे शुद्धता कैसे कायम हो ?.....समझदार को इशारा काफी....जैसे सब से उत्तम माफ़ी... बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।। ...खुद की गलती स्वीकार करने का मतलब माफ़ी भी मांगना पड़ेगी....और आम आदमी यह स्वीकार करने मे हमेशा हिचकिचाता है...जो जौहर दिखायेगा वही बाज़ी जीतेगा.....धारयताम पक्षबलेन...अर्थात HOLD WITH THE STRENGTH OF WINGS...हवा मे टिकने की कला पक्षी बचपन से ही सीख लेता है....और आदमी हवा मे उड़ने की कोशिश करता है...पक्षी के समकक्ष, परन्तु परिंदा अन्ततः....एक कदम आगे...या कहे कि outstanding....गीता में श्री कृष्ण कहते हैं..…सभी प्रकाशीय वस्तुओं में प्रकाश उत्पन्न करनें की ऊर्जा , मैं हूँ...और प्रार्थना करने पर सन्देश मिलता कि DON’T WORRY…..”मै हूँ ना”.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव....आपकी कृपा से सबका सब काम हो रहा है और होता रहे..... हार्दिक स्वागत......”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#... #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...जय हो...सादर नमन...#Regards#.
जय-गजानंद.....सदा रहे आनंद...दिन या रात की बात नहीं.....तब बात एक सुबह की भी नहीं...रात गयी-बात गयी तो कतई नहीं.....परन्तु हर सुबह स्वयं के घर की ही भली.... रहे....... इस आशय या निवेदन के साथ.....”सदा दिवाली संत की आठों प्रहर आनन्द....निज स्वरुप में मस्त है छोड़ जगत के फंद”.....गोविन्द दियो बताय.....जय हो...सादर नमन... सम्पूर्ण अभियान के पावन माध्यम प्रभु श्री..."विनायक"....मंगलमूर्ति, बुद्धिदाता....पूर्ण सहज...पूर्ण सात्विक....विनायक समाधान....विनायक रेखाएं...विनायक शब्द....विनायक चर्चा...विनायक जिज्ञासा....विनायक प्रश्न...विनायक उत्तर...विनायक गणना...विनायक उपासना...विनायक यंत्र...विनायक निमंत्रण...विनायक मित्र...विनायक वायुमंडल....विनायक उपाय...विनायक गति...विनायक उन्नति...विनायक अनुभूति...विनायक अहसास...विनायक एकांत...विनायक अध्ययन...विनायक आनंद...विनायक संतुष्टि..विनायक मार्गदर्शन...विनायक प्रोत्साहन..विनायक प्रार्थना....और इसी तारतम्य में विनायक अभियान हेतु उपरोक्त सभी का विनायक क्रमचय-संचय....निरंतर...वर्ष 2007 से... विनायक-मित्रो से सहज “विनायक-वार्तालाप”...अर्थात विनायक पुनरावृत्ति....’विनायक चर्चा’...विनायक शुरुआत अर्थात अंत तक विनायक आनंद की कामना...इसी विनायक कामना की पूर्ति हेतु विनायक प्रार्थना....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्' ...एकमात्र विनायक उद्देश्य--'सर्वे भवन्तु सुखिनः'....उत्तम 'वैदिक-योग'...विनायक-चर्चा सबके संग...तब यही सत्संग.....पेपर के पन्नो की हिस्सेदारी....बिना वसीयत के....तब कोई उत्तराधिकारी नहीं.....हिंग लगे ना फिटकरी....दोनों का चौखे रंग से भला क्या लेना-देना ?...भैंस के आगे बीन बजाने की बात से भैंस को बीन से कोई लेना-देना नहीं.....गई भैंस पानी में....ठीक वैसे ही जैसे सब जानवर पानी में ही जाते है....काला अक्षर भैंस बराबर....जबकि सफ़ेद कागज़ पर काला अक्षर मोती समान चमकता है....और बच्चा किसी का भी दूध पिये सबसे पहले निबंध गाय के ऊपर ही लिखता है...और माँ के दूध का कर्ज कभी चुकता नही हो सकता है....शायद इसीलिए अमृत-तुल्य नहीं बल्कि साक्षात् अमृत.....तब यह अमृत हर किसी के भाग्य में...जय हो.....इस कुरुक्षेत्र के मैदान में शास्त्र शस्त्र बन औजार का कार्य करते है......यही मनुष्य का सर्वोत्तम प्रदर्शन है....यह आवश्यकता चूँकि इसलिए कि सेवा-क्षेत्र में जीवन के क्रिया-कलाप सार्वजनिक होना आवश्यक है.....धर्म-कर्म और सेवा का समागम हो जाये तो निश्चिन्त रूप से संतुष्टि बरसेगी.....
जनता-जनार्दन के लिये....वेधशाला....यन्त्र-महल....जंतर-मंतर....अर्थात यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र...आवश्यकता के अनुरूप आविष्कार....अर्थात नक्षत्रों की गणना.... An observatory is a location used for observing terrestrial or celestial events. Astronomy, climatology/meteorology, geology, oceanography and volcanology.....उन तथ्यों के बारे मे आकलन, जिनको प्रत्यक्ष रूप से देख पाना सम्भव नही....दुरी इतनी कि दूरबीन के बिना काम ना चले...और सिर्फ देखने भर से काम ना चले...तब काम की बात के लिये....गिनती और पहाड़ो के लिये....इबादत के लिये आयत का निर्माण....जंतर-मंतर मे अनुभव का समावेश...साधना से सिद्धि का प्राकट्य....जैसे शब्दो से वाकसिद्धि का प्रदर्शन....तब भारतीय पञ्चाङ्ग अपनी विशिष्ट पहचान बनाता है....किन्तु अंतर्राष्ट्रीय रूप से आज भी स्वीकार्य नही....चौघड़िये को घड़ी कभी भी अँगीकृत नही कर सकती है....चौघड़िया मन्त्र की भाषा मे कहता है, शुभम भवतु....घड़ी यन्त्र के रूप मे कहती है, जो होना है, वह हो कर रहेगा....यन्त्र हो या मन्त्र दोनों समय की परिधि मे....महत्व सिर्फ नियमित होने पर...और संकल्प यही कि....अति सर्वत्र वर्जयते...आवश्यकता से अधिक आराम या दौड़-भाग मे बोर होने की सम्भावना....महोत्सव हो या अनुष्ठान....भीड़ होना लाज़मी....पांडाल तो इसीलिये कायम होते है....परन्तु बात तो नियमित नियम की होती है....दिनचर्या को आसान करना जरा सा मुश्किल काम हो सकता है....भारतीय आध्यात्म-दर्शन को सुलभ बनाने के लिये पंचाग को श्रेष्ठ माना जाता है....यह वह चीज है जो संपूर्ण अन्तरिक्ष को पन्ने पर खींच कर ले आती है...जैसे पन्ने पर रेखाओं का चित्रण.....जैसे सूरज की गर्मी से जलते तन को मिल जाये तरुवर की छाया...जो खोया, वही पाया....शरद-पूर्णिमा का महत्व ब्रह्माण्ड का सत्य है...तब सरल रूप से कैलेण्डर कहता है...साप्ताहिक रूप से सात्विक रूप से आहार, विहार और सदाचार जैसे शब्दों को आत्मसात करने के दिन है या हो सकते है....सोमवार, बुधवार, गुरुवार....महादेव, गणाध्यक्ष और साक्षात गुरु-वर...गणपति की माया और गुरुदेव की छाया...तब भोलेनाथ साक्षात् भाया(मन को भाने वाला...मित्र-सखा-बन्धु)...भाया राजस्थानी शब्द है, जो हम उन लोगो के लिये इस्तेमाल करते है, जो घूम-फिर कर नमकीन बेचते है...शांत-भाव से....बिना किसी ध्वनि-प्रदूषण के...और कैलेण्डर के भी यही भाव...शांत-भाव की शांति स्थापित करना....तब कोई शोर-शराबा नही...जप-तप का यही नियम...एक ही संकल्प कि कोई शर्त नही लेकिन नियम अटल....तब इन्ही दिनों के लिये कुछ विनायक उपाय हो सकते है...सोमवार को शिव मंदिर मे जल-अभिषेक या बिल्व-पत्र या रुद्राष्टक-पाठ....बुधवार को गणपति-दर्शन के साथ मंदिर की आरती में शामिल होने का अवसर....गुरुवार को रात्रि भोजन-त्याग तथा मौन-व्रत...मात्र तीन धंटे(दो काल-खण्ड)....बस समाधान के यही साधन नैया पार लगाने मे काम आते है....और इन सभी विनायक-उपाय के साथ प्रार्थना के रूप मे विनायक-साधना जारी रहती है....धर्म के स्थायी होने का राज़ है....प्रार्थना...अनंत और अखंड...संसाधन का सर्वोत्तम स्वरूप....वर्ष 2007 से दिक्षा उपरान्त इन्ही तीन दिवस पर तक़रीबन....करीब-करीब....लगभग 25000 लोगो से चर्चा का सौभाग्य रहा..
सरल रूप से कैलेण्डर कहता है...साप्ताहिक रूप से सात्विक रूप से आहार, विहार और सदाचार जैसे शब्दों को आत्मसात करने के दिन है या हो सकते है....सोमवार, बुधवार, गुरुवार....महादेव, गणाध्यक्ष और साक्षात गुरु-वर...गणपति की माया और गुरुदेव की छाया...तब भोलेनाथ साक्षात् भाया(मन को भाने वाला...मित्र-सखा-बन्धु)...भाया राजस्थानी शब्द है, जो हम उन लोगो के लिये इस्तेमाल करते है, जो घूम-फिर कर नमकीन बेचते है...शांत-भाव से....बिना किसी ध्वनि-प्रदूषण के...और कैलेण्डर के भी यही भाव...शांत-भाव की शांति स्थापित करना....तब कोई शोर-शराबा नही...जप-तप का यही नियम...एक ही संकल्प कि कोई शर्त नही लेकिन नियम अटल....तब इन्ही दिनों के लिये कुछ विनायक उपाय हो सकते है...सोमवार को शिव मंदिर मे जल-अभिषेक या बिल्व-पत्र या रुद्राष्टक-पाठ....बुधवार को गणपति-दर्शन के साथ मंदिर की आरती में शामिल होने का अवसर....गुरुवार को रात्रि भोजन-त्याग तथा मौन-व्रत...मात्र तीन धंटे(दो काल-खण्ड)....बस समाधान के यही साधन नैया पार लगाने मे काम आते है....और इन सभी विनायक-उपाय के साथ प्रार्थना के रूप मे विनायक-साधना जारी रहती है....धर्म के स्थायी होने का राज़ है....प्रार्थना...अनंत और अखंड...संसाधन का सर्वोत्तम स्वरूप....वर्ष 2007 से दिक्षा उपरान्त इन्ही तीन दिवस पर तक़रीबन....करीब-करीब....लगभग 25000 लोगो से चर्चा का सौभाग्य रहा...और सोशल-मीडिया के कारण भारत वर्ष के लगभग सभी प्रदेशों के मित्रों से चर्चा का मौका मिला....चैटिंग के दौरान हिंदी का प्रयोग बेहद सफल रहा...अंग्रेजी तो देखा-देख की भक्ति साबित होती है...शास्त्र अपने शब्दों पर अडिग रहते है...इसी आधार पर विश्वास भी अटल...समय को हम अपने संस्कारो के आधार पर उपयोग करते है.....आदमी खुद के बारे में सिर्फ अपनी मातृ-भाषा में सोचता और समझता है...यह बात चिंताजनक कि दुनिया मे हर तीसरा आदमी अपने भविष्य को ले कर बेहद चिंतित...हद से ज्यादा...तब इसका एक ही समाधान कि हाथ मे वर्तमान मे करने के लिये सरलतम उचित कार्य होना चाहिये....ठाट से...किन्तु मुश्किल यह होती है कि इनमें भी मन नही लगता....तब मन में उपज रहे संशय का निवारण कैसे हो ?....विनायक-विवेचना विवेक अनुसार ही संभव है..तब शब्द मस्तिष्क मे रेखाओं का चित्रण करते है....तब बाकि साधन समकक्ष अवश्य माने जा सकते है....
बारिश ना हो तो फसल ख़राब और संस्कार ना हो तो नस्ल ख़राब.....यह सही है कि खाली हाथ आये है और खाली हाथ जाना है...मगर हाथ मे काम ना हो तो खाली दिमाग शैतान का घर...और शैतान का हर एक शौक...एक नहीं, अनेक रोग का कारखाना...यह सत्य शाश्वत सिद्ध होता है कि हमारे व्यवहार, विचार, व्यवस्था और संस्कार से हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व रचनात्मक सिद्ध हो सकता है...और परिवेश कहता है कि शैली स्वस्थ हो, सोच विधायक हो, कर्म स्फूर्त हो....कुल मिला कर तथ्यों मे स्वतंत्र अभिव्यक्ति हो....जीवन मूल्यों की सुरक्षा मे संकट उत्पन्न ना हो...आज-कल व्यवहार मे अशुद्धता आम बात है....वजह स्पष्ट है....आवेश की अधिकता, पक्षपात पूर्ण रवैया, बहस पूर्ण विचार, स्वार्थपूर्ण मनोवृत्ति, निषेधात्मक सोच, समय प्रबंधन का अभाव....और यह तय है कि संतुलन, धैर्य, विवेक तथा सापेक्ष चिन्तन ना हो तो बरसो का व्यवहार पल मे बिगड़ जाता है...कोई अपनी विगत भूलों को याद करता है तो वर्तमान समस्याओं का स्वतः समाधान प्रकट होता है....कोई धन का संग्रह करता है, कोई ज्ञान का, कोई विचार का तो कोई धारणाओं का...तब हर कोई अपने संग्रह को दुर्लभ होने का दावा करता है...और इसी में आग्रह-दुराग्रह चलता रहता है....तब शक्ति कहाँ ?...क्रूरता मे या विनम्रता मे...और कहावत यह कि मैदान-ए-जंग और मैदान-ए-मोहब्बत मे सब जायज़ है....जो व्यक्ति स्त्री-शक्ति के संपर्क मे कम रहता है, वह क्रूर बन जाता है....जो व्यक्ति कर्कश स्त्रियों के संपर्क मे रहता है, वह कमजोर बन जाता है....पुरुष को प्रेम की परिभाषा स्त्री ही सीखा सकती है...हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला की शक्ति होती है....और हर महिला के पीछे पुरुष की भक्ति होती है...तब यह शाश्वत तथ्य कि भक्ति मे शक्ति होती है...महिला-मित्र और पुरुष मित्र आज से नही बल्कि प्राचीन युग से...और बल्कि आदम और हव्वा के युग से.....boyfriend & girlfriend...यह आकर्षण तो वैज्ञानिक रूप से भी चुम्बकत्व से परिपूर्ण....अन्यथा लेने की बात नही....हर महिला या स्त्री या कन्या का श्रेष्ठ मित्र सर्वप्रथम उसका पिता, तत्पश्चात भाई....इसी प्रकार पुरुष या युवक या नवयुवक की श्रेष्ठ मित्र सर्वप्रथम उसकी माता, तत्पश्चात बहन ही हो सकते है...बाकी सम्बन्ध तो लेन-देन और आदान-प्रदान के दायरे में...
गुस्से मे काम को आधा-अधूरा छोड़ देना....गुस्से मे सामान्य से ज्यादा भोजन करना....गाड़ी की गति दुगनी करने की कोशिश करना...कम शब्दों की बजाय आवेश भरे लंबे-लंबे वाक्यो का प्रयोग...और वाक्य में अपशब्दों का प्रयोग करना....चेहरे के शांत-भाव अचानक तमतमा जाये...वस्तुओं की उठा-पटक में अचानक जोर-शोर का शामिल हो जाना....यह सब-कुछ ऑटोमेटिक होने लग जाये तो कोई आश्चर्य नही....किन्तु चलती गाड़ी को रोकने के लिये ब्रेक का इस्तेमाल हर कोई करता है....जिस गाड़ी के ब्रेक जितने मजबूत, गाड़ी की गति उतनी तेज़....और कितनी किताबों मे क्रोध को कंट्रोल करने की कितनी विधियाँ ?....जबकि गाड़ी सिखने के लिये किसी किताब की कोई आवश्यकता नही...मजे की बात यह कि दोनों काम का एक ही सूत्र...काम की बात....कोई भी काम केवल करने से होता है....होशो-हवाश मे....आपा खोने की बात नही....खाने-पीने की बात नही....बस क्रोध को पीने की कला सीखने की बात हो सकती है....पीने-पिलाने के लिये प्याऊ पर्याप्त...और शांत रहने के अनेक उपाय....शीतल-जल गटकने मे सुकून किन्तु क्रोध तो गरमा-गरम....चाय की तरह...हर चुस्की एक फुँक के साथ....सिर्फ एक चुटकी हवा की कीमत क्या होगी बाबु ?....तो क्या वास्तव मे क्रोध को काबू मे करना इतना सरल ?...तो तब भी हर गाड़ी मे ब्रेक होते हुये भी इतनी दुर्घटनाएं क्यों ?....विवादों की बात नही किन्तु सभी विद्ववानों का न्याय-क्षेत्र सिर्फ प्रार्थना-स्थल हो होता है...जीवन सचमुच मूल्यवान है....और मनुष्य की निगाह मे मूल्यवान कुछ और....धन, सम्मान, सत्कार, अधिकार, प्रभुत्व... हर मार्ग मे कष्ट....और समाधान के रूप मे...गीता को पवित्र आचरण द्वारा सुगीता बनाया जाये....जीवन के प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के लिये यही एक-मात्र रास्ता है...तब कोई और शास्त्र अनिवार्य नही है...समस्त शास्त्रों की स्वामिनी....श्रुतियों की महारानी....वेद मंत्रों का शक्ति-पुँज....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते.....धारयताम पक्षबलेन...अर्थात HOLD WITH THE STRENGTH OF WINGS...हवा मे टिकने की कला पक्षी बचपन से ही सीख लेता है....और आदमी हवा मे उड़ने की कोशिश करता है...पक्षी के समकक्ष, परन्तु परिंदा अन्ततः....एक कदम आगे...या कहे कि outstanding....गीता में श्री कृष्ण कहते हैं..…सभी प्रकाशीय वस्तुओं में प्रकाश उत्पन्न करनें की ऊर्जा , मैं हूँ...और प्रार्थना करने पर सन्देश मिलता कि DON’T WORRY…..”मै हूँ ना”.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव....आपकी कृपा से सबका सब काम हो रहा है और होता रहे..... हार्दिक स्वागत......”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#... #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...जय हो...सादर नमन...#Regards#.
ना नोट....ना वोट....ना कोई लाईन....कोई हाय-तौबा नहीं.....
the power of LOVE...whenever love glows, it is bliss...
a state of perfect happiness....
चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः |
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||
अर्थात् संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा, चन्दन से भी शीतल होता है.....और अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है....यानि कि वास्तविक ताकत....जो किसी भी संत के पास सहज रूप से निश्चिन्त रूप से होती है....तब संत कौन ?....
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
हम में हर एक....इस संसार में ऐसा सज्जन जो अनाज साफ़ करने वाला सूपडा साबित हो...जो सार्थक को बचा कर निरर्थक को उड़ा दे...आदमी अपनी कुशलता से कितना भी आगे चला जाये, फिर भी एक समय मे खुद को ऐसे स्थान पर खड़ा पाता है, जहाँ से उसे आगे का रास्ता मालुम नही होता है...बस यह मानना होगा कि यहीं से ईश्वरीय सत्ता शुरू होती है...अवसाद और विषाद का सामना सभी करते है...स्वयं के प्रति संशय हो तो जीवन मे पलायन का अध्याय शुरू होता है...तब स्वयं की सत्ता से ज्यादा शक्तिशाली ईश्वर की सत्ता सिद्ध होती है...जो अवसाद की अपेक्षा आनंद को उत्पन्न करती है...समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव.....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)

P.T.O...कृपया पन्ना पलटिये....अर्थात पिछे मुड़, तेज चल....और फिर यही कि....मुड़-मुड़ कर ना देख...जिंदगानी के सफर मे कोई भी अकेला नही...किसी न किसी का साथ तो चाहिये....और कोई साथ हो न हो....परिवर्तन हमेशा साथ-साथ....बदले की भावना नही किन्तु बदलाव एक नही अनेक बाते सीखा देता है...मन की बात सब सुनते है...पर मन मारने वाली बात स्वयं के अनुभव मे स्वयं-सिद्ध है....हम कितने मितव्ययी हो सकते है ?...इसका जवाब वर्तमान की मुद्रा परिस्तिथि से सबको मिल सकता है....तब ये दुनिया, ये महफ़िल मेरे काम की नही....हर मुद्रा राष्ट्र की सम्पत्ति है...और धारक सिर्फ एक माध्यम भर है....सब कुछ सुनियोजित और समयानुसार हो रहा है...जिनको कहना-सुनना है, उनके पास चंद दिनो का समय है....पूर्ण आजादी है....करना था, सो कर दिया....और इसके उत्तम प्रभाव आना शुरू हो चुके है....अप्रत्यक्ष शत्रुओं को परास्त करने के लिये खोजने की जहमत नही....और अचानक वार से दुश्मन खीजने के अलावा कुछ और नही कर सकता...ऐतिहासिक काम खामियों से भरे तो भी कीर्तिमान के लिये जाने जाते है...सरल चमत्कार यही है कि जीने की कला से दिव्यता आती है...और इसी दिव्यता से पत्थर की मूर्ति से शब्दों से आदान-प्रदान होता है...विवादों की बात नही किन्तु सभी विद्ववानों का न्याय-क्षेत्र सिर्फ प्रार्थना-स्थल हो होता है...जीवन सचमुच मूल्यवान है....और मनुष्य की निगाह मे मूल्यवान कुछ और....धन, सम्मान, सत्कार, अधिकार, प्रभुत्व... मार्ग मे कष्ट....और समाधान के रूप मे...गीता को पवित्र आचरण द्वारा सुगीता बनाया जाये....जीवन के प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के लिये यही एक-मात्र रास्ता है...तब कोई और शास्त्र अनिवार्य नही है...समस्त शास्त्रों की स्वामिनी....श्रुतियों की महारानी....वेद मंत्रों का शक्ति-पुँज....मात्र आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते.....धारयताम पक्षबलेन...अर्थात HOLD WITH THE STRENGTH OF WINGS...हवा मे टिकने की कला पक्षी बचपन से ही सीख लेता है....और आदमी हवा मे उड़ने की कोशिश करता है...पक्षी के समकक्ष, परन्तु परिंदा अन्ततः....एक कदम आगे...या कहे कि outstanding....गीता में श्री कृष्ण कहते हैं..…सभी प्रकाशीय वस्तुओं में प्रकाश उत्पन्न करनें की ऊर्जा , मैं हूँ...और प्रार्थना करने पर सन्देश मिलता कि DON’T WORRY…..”मै हूँ ना”.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव....आपकी कृपा से सबका सब काम हो रहा है और होता रहे..... हार्दिक स्वागत......”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#... #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...जय हो...सादर नमन...#Regards#.
शक्ति-पुँज....उज्जैयनी बाबा महाकाल की साधना स्थली है....सृष्टि का एकमात्र स्थल जहाँ 'भस्म-आरती' का विधान है....तब आश्चर्य भरा वैभव....महनीय-नगरी...धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, साहित्य, शिक्षा, राजवैभव, ज्योतिष, न्याय, इतिहास, पूरा-सम्पदा, तंत्र-विद्या, उपासना...संपूर्ण सनातन विश्व की पुण्यभूमि, तीर्थभूमि, देवभूमि, तपोभूमि....प्राचीन वैभव का सर्वोत्तम प्रमाण....कालिदास के अनुसार स्वर्ण का कांतिमय खण्ड....बाणभट्ट कहे स्वर्ण मण्डित शिखरों की नगरी...ब्रह्मा जी के अनुसार पृथ्वी का मुकुट...राजशेखर के अनुसार शास्त्रकारों की परीक्षा-स्थली...अमरावती से बढ़ कर...तीनो लोको से न्यारी नगरी...इस महिमावान नगरी की माटी को उत्कृष्ट धर्म-चिंतक और तपस्वी-साधको का पादस्पर्श प्राप्त हुआ है...ब्रह्मा जी, भगवान् शिव, श्री राम, लक्ष्मण, माता जानकी, श्रीकृष्ण, बलराम, परशुराम जी, हनुमान जी, कार्तिक स्वामी, देवी पार्वती, आदि कवि वाल्मीकि, मुनि अगस्त्य, भक्त शिरोमणि प्रह्लाद, महामुनि मार्कण्डेय, दक्ष प्रजापति, अर्जुन...समस्त पौराणिक विभूतियाँ...वर्तमान युग मे महावीर स्वामी, आद्य शंकराचार्य, वल्लभाचार्य, वराहमिहिर, आर्यभट्ट, बाणभट्ट, पीर मत्स्येन्द्रनाथ, संत गोरखनाथ, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त, राजा उदयन, राजा भर्तहरि, राजा विक्रमादित्य, राजा भोज, अहिल्याबाई....और तब कोई आश्चर्य नही...हरि और हर की अभेद-अद्वैत नगरी...एकमात्र हरिहरात्मक नगरी...जहाँ हरिहर मिलन होता है....गोपालजी को शिवप्रिय बिल्वपत्र की माला और महाकालजी को कृष्णप्रिय तुलसीपत्र की माला पहनायी जाती है....और तब एक दूजे के प्रति यही भाव....रूप निरंतर निरखु तेरा...प्रेम अश्रु अविरल छलके....वाणी गाये गान तुम्हारा....प्रेम का रास रमे रग-रग मे....इतना सा अनुग्रह कर दो....मात्र आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते.....धारयताम पक्षबलेन...अर्थात HOLD WITH THE STRENGTH OF WINGS...हवा मे टिकने की कला पक्षी बचपन से ही सीख लेता है....और आदमी हवा मे उड़ने की कोशिश करता है...पक्षी के समकक्ष, परन्तु परिंदा अन्ततः....एक कदम आगे...या कहे कि outstanding....गीता में श्री कृष्ण कहते हैं..…सभी प्रकाशीय वस्तुओं में प्रकाश उत्पन्न करनें की ऊर्जा , मैं हूँ...और प्रार्थना करने पर सन्देश मिलता कि DON’T WORRY…..”मै हूँ ना”.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव....आपकी कृपा से सबका सब काम हो रहा है और होता रहे..... हार्दिक स्वागत......”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#... #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...जय हो...सादर नमन...#Regards#.


वह पढिये जो आपको अच्छा लगे...कही से भी पकड़ कर, कही भी छोड़े...बेरोकटोक....कोई प्रतिबन्ध नही...असमंजस की स्थिति मे सर्च-इंजिन मे जो चाहे वह खंगाले....जैसे होटल मे ऑर्डर दे कर कुछ भी मंगवा सकते है...मगर वहाँ भी यह तख्ती लगी हो सकती है कि...जो माल तैयार होगा वही प्रस्तुत होगा...जैसे यात्रा के दौरान.....लेट कर नही बल्कि बैठ कर....बर्थ नही तो सीट सही....जैसे-तैसे सफर पूरा हो जाये...राजी-ख़ुशी.....विचार जीवन का निर्माण करते हैं....विभिन्न सकारात्मक कथन जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते है अथवा नहीं....किन्तु मन में एक हलचल अवश्य हो सकती है....जैसे पानी मे कंकर फेंक कर लहर पैदा की जा सकती है...और यह वास्तविक क्रिया है.....THE WORLD NEEDS STORIES…किसी का भी, किसी भी विषय मे शत-प्रतिशत सही होना असम्भव है.....यही ज्योतिष-शास्त्र की सिद्धि हो सकती है....जो-जो जब-जब होना है....होगा...जीवन अपार संभावनाओं का अनंत सागर है....आकलन द्वारा उपाय मे सरलता हो...छोटे-बड़े की बात कहाँ से आती है ?....इसका उत्तर यही कि चोर की दाढ़ी मे तिनका का मतलब क्या होता है ?....छल-कपट का मतलब हर शब्द-कोश मे....तब किसी की अज्ञानता का फायदा हमेशा के लिये सम्भव नही...जनता-जनार्दन सबसे होशियार....पल मे हो जाये खबरदार...और आदेश की जगह चेतावनी को गंभीरता से अनुपालन करे...आज की त्वरित आवश्यकता....ज्वलंत समस्या का समाधान...घर के अंदर हो या बाहर...वृक्ष लगाओ, पर्यावरण बचाओ....बेटी बचाओ, बहु लाओ...मात्र आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते...




Saturday 5 November 2016

इतर से कपड़ों का महकाना कोई बड़ी बात नहीं है....मज़ा तो तब है जब किरदार से खुशबु आये......जिन्दगी खुशिया बटोरते-बटोरते कब गुजर जाती है.....समय का पता नहीं लगता किन्तु पता चलता है कि खुश तो वही रह सकता है जो खुशिया बांटता जानता है......फर्क होता है खुदा और फ़क़ीर में,
फर्क होता है किस्मत और लकीर में..
अगर कुछ चाहो और न मिले तो समझ लेना..
कि कुछ और अच्छा लिखा है तक़दीर में........
“The reason people find it so hard to be happy is that they always see the past better than it was....the present worse than it is.....and the future less resolved than it will be.”....
Thinking about happy thoughts helps you to maintain a healthy level of happiness, no matter what happens to you in your life.....
धन तभी सार्थक हैं जब धर्म भी साथ हो.....
विशिष्टता तभी सार्थक हैं जब शिष्टता भी साथ हो......
सुंदरता तभी सार्थक है, जब चरित्र भी शुद्ध हो.......
संपत्ति तभी सार्थक है, जब स्वास्थ्य भी अच्छा हो..
शील, विनय, आदर्श, श्रेष्ठता…….
तार बिना झंकार नहीं……..
शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी,
यदि नैतिक आधार नहीं है……..
कीर्ति कौमुदी की गरिमा में…….
संस्कृति का सम्मान न भूलें……
निर्माणों के पावन युग में,
हम चरित्र निर्माण न भूलें.......
Happiness comes when you believe in what you are doing,
know what you are doing, and love what you are doing......
”सदा दिवाली संत की आठों प्रहर आनन्द....निज स्वरुप में मस्त है छोड़ जगत के फंद".....जय हो.....सादर नमन…
आयुर्वित्तं गृहछिद्रं मन्त्रौषधसमागमा:।
दानमानावमानाश्च न व गोप्या मनीषिभि:॥
अर्थात आयु, वित्त, गृहछिद्र, मन्त्र, औषध, समागम, दान, मान और अपमान ये नौ बुद्धिमानों के द्वारा गोपनीय हैं…..गणेश पुराण कहता है कि सम्मान, अपमान व दान का विज्ञापन नहीं करना चाहिए…."विनायक समाधान"...@...91654-18344........(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…

साहित्य पढने की बात नहीं......चेहरे पढने की बात अवश्य है......और कहा जाता है.....चेहरे पर चेहरा लगा कर अपनी सूरत छिपाई जा सकती है....मगर कब तक ?...तब तक....जब तक कि दिल की बात लबों पर ना आ जाय.....कुछ कहती है अखबार की कतरन....सब्जी में ऐसा तड़का लगे कि खाँस-खाँस का दम निकल जाये...किन्तु सब्जी चखने पर लगे कि सब्जी मे दम नही....तब तो दाम भी वसूल ना हो...और हर कोई यही चाहे कि पैसा-वसूल....जमाने का यही उसूल....तब यही निर्णय उचित कि “सादा जीवन-सादा विचार” ही सदा के लिये सर्वोत्तम....यह ध्यान मे रखते हुये कि उच्च-विचार सस्ते तथा महंगे की परिधि से स्वतंत्र भी हो सकते है....कौन कहता है कि सिर्फ वस्तु ही टिकाऊ होती है...टिकाऊ तो मूलतः विचार ही हो सकते है....सस्ते की बात नही किन्तु सुंदरता तो प्रशंसा की परिधि मे आ कर ही दम लेती है....और किसी भी परिधि की मजबूती ही उसकी पहचान होती है.....बात पुराने ज़माने की है जब जवान लोग कठिन परिश्रम करते थे और बालक पढ़ाई-लिखाई के साथ खेल-कूद और घर के छोटे-मोटे काम करने की ओर ध्यान देते थे....उस समय बीमारियाँ जहाँ जातीं वहीं दुत्कारी जातीं थी....’सुराही’ अर्थात मिट्टी का एक पात्र....परन्तु सुरा अलग-थलग पड़ जाय तो अर्थ होगा मदिरा मात्र.....परन्तु सु को राही के साथ मिला कर पढ़ेंगे और एक सर्वगुण सम्पन्न राही अर्थात राहगीर अर्थात एक ऐसा सतत रास्ते चलने वाले का बिंब बनता है जो मानवीय मूल्यों का समर्थक हो...प्राण का लक्ष्य विचारों की व्यञ्जना को और अधिक प्राणवान और सघन बनाना है जो आजकल दुष्कर सा कार्य है....अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा हो सकता है...कितने करीब ज़िंदगी के मौत खड़ी है, फिर भी हरेक शख़्स को अपनी ही पड़ी है.... तेरी-मेरी करता रहा तमाम उम्र भर... भरता रहा तिजोरी तमाम उम्र भर... अंत समय झोली पर खाली ही पड़ी है.....Fully Automatically...भूलने की आदत को ठीक करने का दावा सभी करते है परन्तु याद करने का प्रयास सिर्फ स्वयं को करना पड़ता है....सब कुछ करके देख सकते है...गिनती और पहाड़े कभी भी पीछा नहीं छोड़ते है....इंसान का बस चले तो खुद की उम्र को दस से गुणा करके दस नम्बरी कहलाये....मगर शायद यह चमत्कार सौ वर्ष में संभव नहीं....…."विनायक समाधान"...@...91654-18344.....(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…
अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा हो सकता है...कितने करीब ज़िंदगी के मौत खड़ी है, फिर भी हरेक शख़्स को अपनी ही पड़ी है.... तेरी-मेरी करता रहा तमाम उम्र भर... भरता रहा तिजोरी तमाम उम्र भर... अंत समय झोली पर खाली ही पड़ी है.....उन्नीसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध अमरीकन निबन्धकार, कवि और दार्शनिक हेनरी डेविड थोरो कहते हैं - मनुष्य सफल होने के लिये पैदा हुआ है, असफल होने के लिये नहीं.... लेकिन, कितने लोग इस बात को जानते हैं? फिर, कितने लोग इस बात को मानते हैं? और कितने लोग वास्तव में सफल होते हैं?.... बहुत ही कम....क्यों?.... क्योंकि हम जानते ही नहीं कि सफलता क्या है....कोई धन एकत्र करने को अपनी सफलता समझता है तो कोई पुण्य एकत्र करने को....कोई बड़ी हवेली बनवाकर अपने को सफल समझ लेता है तो कोई ऊँचा पद पाकर....कोई अपने ज्ञान और पाँडित्य को सफलता मान लेता है, तो कोई अपनी नैतिकता और सदाचार को..... क्या ये सब वास्तव में सफलता के प्रतीक हैं?...नहीं!..... यदि बड़ी हवेली में रहकर भी किसी की ज़िन्दगी कलह-क्लेश में गुज़रे तो क्या आप उसे सफल कहेंगे?..... यदि कोई धनवान धन की चिन्ता में रात को सो नहीं सके तो क्या वह सफल कहलायेगा? .....‘परलोक’ को ‘सुधारने’ की लालच में यदि कोई घर-गृहस्थी छोड़कर, महात्मा बन जाये तो क्या वह सफल हो जाता है?.... हम लोग दूसरों से बड़ा बन जाने को अपनी सफलता समझते हैं, इसलिये हम अपने आप को दूसरों की नजरों में ऊँचा सिद्ध करना चाहते हैं....फिर हम सफलता की ऐसी विभिन्न परिभाषाओं में उलझ कर रह जाते हैं जो दूसरों के द्वारा बनाई हुई होती हैं.....पर, वास्तव में तो सफलता की एक ही परिभाषा है - जो अपने ढंग से जीने में पूरी तरह से सन्तुष्ट है, वह सफल है.....मन का सुख ही उच्चतम सफलता है....**”जय हो...सादर नमन...सादर प्रणाम”.....आपकी खुशहाली एवम् सुफलता ही हर अभियान की सफलता मानी जा सकती है....एवम् सही कार्य उपलब्ध न हो तो व्यक्ति हताशा एवम कुंठा से ग्रसित हो कर स्वयं को असफल घोषित मानने लगता है...और एक विद्वान मित्र ने कहा है....”GRANT ME A PLACE TO STAND I SHALL LIFT THE EARTH”….अर्थात....शुद्ध परामर्श...”TRAIN YOUR ‘MIND’…TO MIND YOUR ‘TRAIN’…..यही विनय !...हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…
जो सुखी नहीं है, उसे सफल नहीं कहा जा सकता....जब हम अपने आप को दूसरों की दृष्टि से आँकते हैं, तो हमारा अपना सुख गौण हो जाता है.....हम भूल जाते हैं कि हमारा सुख हमारी अपनी दृष्टि में है, दूसरों की दृष्टि में नहीं.....इसलिये आप की सफलता को किसी दूसरे की परिभाषा में नहीं बाँधा जा सकता.... तो फिर क्या करना चाहिए? किस की बात सुननी चाहिए ?.... आप को केवल उन की बात सुननी है जिन्हें स्वयं आप सर्वोच्च रूप से सफल मानते हैं, जिनकी आप सुबह-शाम पूजा करते हैं, जिनकी आप आरती उतारते हैं - जिन्हें आप देवता कहते हैं....फिर, आप को भी वही करना है, जो देवता करते हैं....आपका काम देवता की पूजा करने से नहीं, देवता जैसा आचरण करने से बनता है....आप की सफलता देवता की पूजा में नहीं, स्वयं देवता बन जाने में है....क्या ऐसा होना संभव है? क्या हम लोग देवता बन सकते हैं? जी हाँ! देवता बनना न केवल संभव है, बल्कि देवता बनना ही हमारा एक-मात्र धर्म है....लेकिन हम लोग ऐसा नहीं करते....हम दूसरों की बातों से हतोत्साहित होते हैं....हम से कहा जाता है - “आप देवता कैसे हो सकते हो? देवता के पास तो विलक्षण और दिव्य शक्ति होती है....आप तो छोटे-मोटे साधारण निर्बल जीव हो”....लेकिन हम दोनों ऐसा नहीं मानते... इस चर्चा के माध्यम से हम आप को यह बताना चाहते हैं कि आप छोटे-मोटे साधारण मनुष्य नहीं हैं, आप जीते-जागते देवता हैं....यही हमारे वेदान्त का वह सन्देश है जिस की हम उपेक्षा करते आ रहे हैं....इस उपेक्षा के कारण हम अपने अन्दर के देवता को नहीं देख पाते....इसीलिये हम उस सम्पूर्णसुख को नहीं भोग पाते जिस पर हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है....हम इइस प्रतीक्षा में बैठे रहते हैं कि एक दिन परमात्मा का अवतार इस धरती पर उतरेगा.....और हमारे दुख हर ले जायेगा...लेकिन वह अवतार कोई और नहीं, स्वयं आप हैं....आप के जाग जाने से उसका अवतरण हो जाता है....आपकी भूमिका बहुत बड़ी है...परमात्मा आप को निमंत्रण दे रहा है....परमात्मा आप से कह रहा है - उठो! अपने आप को जानो! अपनी शक्ति को पहचानो! आप ही अवतार हैं, आप ही देवता है.... देवताओं वाले सारे सुख आप के लिये ही हैं..... पर, सुख को हम पहचानते नहीं हैं....हम लोग यह नहीं जानते कि सुख कहीं बाहर से नहीं आता....सुख कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे कोई दूसरा आप की जेब में डाल देगा और वह आप का हो जायेगा....सुख तो एक प्रक्रिया (process) है जिसमें हमारे अपने भाव जागते हैं - भौतिकता के माध्यम से भी, और अध्यात्मिकता के माध्यम से भी....इस प्रक्रिया से हम लोग स्वयं ही अपने सुख का सृजन करते हैं...तमसो मा ज्योतिर्मय......मनुष्य अजर-अमर नहीं है...आत्मा और ज्ञान अजर-अमर है.....और इनकी यात्रा कभी नहीं थमती है....जैसे समय....ना थमता है....ना थकता है....जो कुछ भी है, जिसे हम ईश्वर के नाम से जानते है....वह प्रकाश का ही रूपांतरण है....गीता में श्री कृष्ण कहते हैं..…सभी प्रकाशीय वस्तुओं में प्रकाश उत्पन्न करनें की ऊर्जा , मैं हूँ...और प्रार्थना करने पर सन्देश मिलता कि DON’T WORRY…..”मै हूँ ना”.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव....आपकी कृपा से सबका सब काम हो रहा है और होता रहे..... हार्दिक स्वागत......”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#... #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...जय हो...सादर नमन...#Regards#.
on line मतलब सोशल-मीडिया....सबको अपनी बात प्रस्तुत करने का हक़ है.....छापने के लिये संपादक के सम्मुख कोई निवेदन नही.....बस सात्विकता के तहत कार्य जारी रहे....सफलता संभव है....तहकीकात के सवाल पर शक या बवाल की बात नहीं.....जीते जी लुकमान जी के पास भी शक का ईलाज नहीं....मर कर जीने की बात नहीं...मन मार कर सबको जीना पड़ सकता है....तेरा दर्द ही मेरा हयात है....घर की शांति के लिये टोने-टोटके की बजाय टेक्नीक ज्यादा कारगर हो सकती है...बात घुमा-फिरा कर प्रस्तुत की गयी है.....(*_*).....समझ मे आ जाये तो शोले...हर चेहरा अमर रहेगा....जैसे मस्तानी शाम..अपनी ही धुन में मस्त रहने का आलम....कुत्रुड ध्वनि से भली पंछियों की चहचहाहट...यवनी या सियफनी की बात नहीं...ध्वनि की बात अवश्य....मंदिर की घंटी.....काशी की कामना...जहाँ तक आवाज जाये....परिधि कायम हो जाये....बात परोसदारी की नहीं....असल मेहनत तो तैयारी मे लगती है....पुराने समय मे या आज भी सम्भव....सँयुक्त परिवार में खाली समय मे नवयुवको द्वारा, बुजुर्गो के हाथ-पैर दबाने का क्रम....या फिर क्रमचय-संचय...चाय वाली बात नही....चाय पिलाना मतलब काबू मे करना....जियो और जीने दो....जादू की झप्पी....बुजुर्गो द्वारा बच्चो को....जादू तो यही बाकि सब हाथ की सफाई.....और सफाई के अभियान के तहत हम अपने बच्चों को नियमित स्वच्छ रखते है...और बुजुर्गो को हाईजेनिक-ट्रीट देते है तो प्रतिपल हम अपनी जागरूकता गर्व से प्रदर्शित कर सकते है....क्या समय-समय पर अपने लोगो को स्वास्थ्य-रक्षक उपकरण प्रदान कर सकते है ???...यह ध्यान मे रखते हुये कि बच्चे हर घर में....और बुजुर्ग हर कही मिलेंगे....बस याद करने की देर है....सिर्फ गिफ्ट ही नही...उपकरण को इस्तेमाल करने मे मदद करना भी हमारा ही सौभाग्य होगा......दादर के एक वरिष्ठ मित्र जिन्हें फादर से संबोधित करने में आनंद आता है....गद-गद हो गये...विदेशों में...रुमाल की जगह पेपर-हेण्डकरचीफ को आवश्यक माना जाता है....डस्टबीन का भरपूर उपयोग.....इस प्रकार का गिफ्ट प्रोत्साहन की पहचान....इकोनोमिकल....इकोफ्रेंडली.... तीन-तालाब मे एक मछली की बात नही....संपूर्ण शाकाहार सर्वोत्तम.....वर्ना शरीर की व्याधि....प्रसार मे शीघ्रातिशीघ्र...अति वर्जित रहे...फुंसी को फोड़ा होते देर ना लगे...फटाफट....शरीर को सुन्न करके काटना आसान....मगर चीरा लगा कर....चिर-हरण की बात ही नही....हलाल मे नमक ही फिट....सुपर-हिट...फिटकरी की बात नही....हींग से स्वाद चौखा की बात अवश्य....मगर तीखे की बात नही....जिस प्रकार एक्यू-प्रेशर...और एक्यू-पंक्चर....इन पद्धतियों में सिद्ध किया जाता है कि पूरे शरीर के रोम-रोम आपस में संपर्क रखते है...मतलब कहीं का अनुभव कहीं और....ईमानदारी से....तब कोई चिन्दी-चोरी नही....रोम-रोम के धागे सिर्फ उँगलियों से जागे...और पैदल तीर्थ-यात्रा वह भी पूछते-पूछते...कावड़-यात्रा दल-बल के साथ.....…मतलब सिवाय आध्यात्मिक होने के अलावा कोई चारा नही...जग ढूंढ लिया जाये, कोई विकल्प नही....दुनिया मे चिकित्सा शास्त्र उन्नति करता रहे कोई आपत्ति नही...मगर प्लास्टिक कचरा फ़ोकट का कबाड़-खाना...सचमुच कबाड़ा करे....जन्म हुआ...ईश्वर को ‘धन्यवाद’.....मनुष्य योनी में हुआ---‘सर्वोत्तम’......और माता-पिता का साथ---साक्षात ‘स्वर्ग’....और बाकि के संपर्क इस दुनिया को ‘स्वर्ग से सुन्दर’ बताते है.....यदि उज्जैन में रह कर धर्म पर बात ना हो तो उपरोक्त सभी तथ्य निराधार हो सकते है.....और देवास में शक्ति कि भक्ति का अलग ही आनंद.....और इंदौर में संपर्क प्रगाढ हुए तो अहिल्या की वाणी में राग-मल्हार....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…
बात परोसदारी की नहीं....असल मेहनत तो तैयारी मे लगती है....पुराने समय मे या आज भी सम्भव....सँयुक्त परिवार में खाली समय मे नवयुवको द्वारा, बुजुर्गो के हाथ-पैर दबाने का क्रम....या फिर क्रमचय-संचय...चाय वाली बात नही....चाय पिलाना मतलब काबू मे करना....जियो और जीने दो....जादू की झप्पी....बुजुर्गो द्वारा बच्चो को....जादू तो यही बाकि सब हाथ की सफाई.....और सफाई के अभियान के तहत हम अपने बच्चों को नियमित स्वच्छ रखते है...और बुजुर्गो को हाईजेनिक-ट्रीट देते है तो प्रतिपल हम अपनी जागरूकता गर्व से प्रदर्शित कर सकते है....क्या समय-समय पर अपने लोगो को स्वास्थ्य-रक्षक उपकरण प्रदान कर सकते है ???...यह ध्यान मे रखते हुये कि बच्चे हर घर में....और बुजुर्ग हर कही मिलेंगे....बस याद करने की देर है....सिर्फ गिफ्ट ही नही...उपकरण को इस्तेमाल करने मे मदद करना भी हमारा ही सौभाग्य होगा......दादर के एक वरिष्ठ मित्र जिन्हें फादर से संबोधित करने में आनंद आता है....गद-गद हो गये...विदेशों में...रुमाल की जगह पेपर-हेण्डकरचीफ को आवश्यक माना जाता है....डस्टबीन का भरपूर उपयोग.....इस प्रकार का गिफ्ट प्रोत्साहन की पहचान....इकोनोमिकल....इकोफ्रेंडली.... तीन-तालाब मे एक मछली की बात नही....संपूर्ण शाकाहार सर्वोत्तम.....वर्ना शरीर की व्याधि....प्रसार मे शीघ्रातिशीघ्र...अति वर्जित रहे...फुंसी को फोड़ा होते देर ना लगे...फटाफट....शरीर को सुन्न करके काटना आसान....मगर चीरा लगा कर....चिर-हरण की बात ही नही....हलाल मे नमक ही फिट....सुपर-हिट...फिटकरी की बात नही....हींग से स्वाद चौखा की बात अवश्य....मगर तीखे की बात नही....जिस प्रकार एक्यू-प्रेशर...और एक्यू-पंक्चर....इन पद्धतियों में सिद्ध किया जाता है कि पूरे शरीर के रोम-रोम आपस में संपर्क रखते है...मतलब कहीं का अनुभव कहीं और....ईमानदारी से....तब कोई चिन्दी-चोरी नही....रोम-रोम के धागे सिर्फ उँगलियों से जागे...और पैदल तीर्थ-यात्रा वह भी पूछते-पूछते...कावड़-यात्रा दल-बल के साथ.....…मतलब सिवाय आध्यात्मिक होने के अलावा कोई चारा नही...जग ढूंढ लिया जाये, कोई विकल्प नही....दुनिया मे चिकित्सा शास्त्र उन्नति करता रहे कोई आपत्ति नही...मगर प्लास्टिक कचरा फ़ोकट का कबाड़-खाना...सचमुच कबाड़ा करे....परन्तु इन दोनों मौलिक तरीको का कोई तोड़ नही....यही कारण है कि शारीरिक श्रम करने वाले को कम दर्द होता है...और इसी कारण वह आराम से सोता है...इस पहलु मे भुत-भविष्य-वर्तमान सरल रूप से शामिल....इन पद्धतियों मे हृदय और किडनी से महत्वपूर्ण हाथ के पर्वत और सिर के बिंदु हो सकते है..सिर की मालिश और हाथो की ताली....अमृतमय...बिना किसी मंथन के....जैसे आध्यात्म मे नाद और ज्ञानेन्द्रियाँ.....तालियों की गड़गड़ाहट ताकतवर लोगो के पक्ष मे होती है....सामुन्द्रिक-शास्त्र के किसी भी कोर्स की अवधि सुनिश्चिंत नही....और किसी काम की अवधि की कोई भविष्य वाणी नही....पच्चीस वर्ष तक उत्तम याददाश्त के कारण मानव विद्ध्यर्थी माना जा सकता है किंतु अध्यात्म की पाठशाला मे विद्ध्यर्थी की पदवी पचास के इर्द-गिर्द मिल सकती है....डिग्री समान....मगर कम्पास की....0 से ले कर....360....तक....टेम्प्रेचर की बात नही....गरमा-गर्मी से बुद्धि का पतन...**”जय हो...सादर नमन...सादर प्रणाम”.....आपकी खुशहाली एवम् सुफलता ही हर अभियान की सफलता मानी जा सकती है....एवम् सही कार्य उपलब्ध न हो तो व्यक्ति हताशा एवम कुंठा से ग्रसित हो कर स्वयं को असफल घोषित मानने लगता है...और एक विद्वान मित्र ने कहा है....”GRANT ME A PLACE TO STAND I SHALL LIFT THE EARTH”….अर्थात....शुद्ध परामर्श...”TRAIN YOUR ‘MIND’…TO MIND YOUR ‘TRAIN’…..यही विनय !...हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…
सामुन्द्रिक-शास्त्र के किसी भी कोर्स की अवधि सुनिश्चिंत नही....और किसी काम की अवधि की कोई भविष्य वाणी नही....पच्चीस वर्ष तक उत्तम याददाश्त के कारण मानव विद्ध्यर्थी माना जा सकता है किंतु अध्यात्म की पाठशाला मे विद्ध्यर्थी की पदवी पचास के इर्द-गिर्द मिल सकती है....डिग्री समान....मगर कम्पास की....0 से ले कर....360....तक....टेम्प्रेचर की बात नही....गरमा-गर्मी से बुद्धि का पतन...वो लोग जो दूसरो की गुप्त खामियों को उजागर करते हुए फिरते है, अपने पतन के लिये स्वयं जिम्मेदार होते है...जिस तरह साँप चीटियों के टीलों में जा कर चक्रव्यूह में फंस जाता है....भले ही महाकाल का वरद-हस्त....चींटियाँ तो महाकाय-विनायक पर भी भारी...पर विनायक विघ्नविनाशक.....पूंछ अटकने की बात नही...हाथी तो निकल ही जाता है....सवारी मे शान से....सुपारी मतलब श्रेष्ठ-शुभारम्भ....और पूर्ण श्रीफल मतलब क्लेप भी आपके हाथो.....राय-मशविरा या परामर्श आदमी को महावीर बनाती है....किन्तु किसी ने सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी को यह सलाह नहीं दी की वह...
स्वर्ण को सुगंध प्रदान करे....
गन्ने के झाड को फल प्रदान करे....
चन्दन के वृक्ष को फूल प्रदान करे.....
विद्वान् को धन प्रदान करे.....
राजा को लम्बी आयु प्रदान करे.....
to impart perfume to gold....fruit to the sugarcane....flowers to the sandalwood tree.....wealth to the learned....and long life to the king...राजा का रोज जन्म होता है...संत के मुंह से अंत की बात नही...ब्राह्मण अर्थात ब्रह्म-मुहूर्त में जागरण...और जब आँख खुली तब सवेरा....मतलब जाग्रत अवस्था...इन सातो को जगा दे यदि ये सो जाए... १. विद्यार्थी २. सेवक ३. पथिक ४. भूखा-आदमी ५. डरा हुआ आदमी ६. खजाने का रक्षक ७. खजांची....The student, the servant, the traveller, the hungry person, the frightened man, the treasury guard, and the steward... ought to be awakened if they fall asleep.....जागना जरुरी है....जागते रहो....भगवान की पूजा नहीं होती बल्कि उन लोगों की पूजा होती है जो उनके नाम पर बोलने का दावा करते हैं....अगर हम दुनिया के इतिहास को देखे, तो पाएंगे कि सभ्यता का निर्माण उन महान ऋषियों और वैज्ञानिकों के हाथों से हुआ है,जो स्वयं विचार करने की सामर्थ्य रखते हैं......जो देश और काल की गहराइयों में प्रवेश करते हैं.....उनके रहस्यों का पता लगाते हैं और प्राप्त ज्ञान का उपयोग विश्व श्रेय या लोक-कल्याण के लिए करते हैं.....शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है....ज्ञान हमें शक्ति देता है, प्रेम हमें परिपूर्णता देता है....शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए.....जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके....शब्द वह साधन हैं जिसके माध्यम से हम विभिन्न पहलुओं के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं...उत्तम शब्दों से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है...उत्तम शब्दों से आज्ञा का पालन....सर्वोत्तम संस्कार...सत्यम्.....शिवम्......सुंदरम्......एकांत में जाग्रत एकाग्रता हो और सार्वजानिक होने में सुन्दरता, शालीनता और सुकून हो....बस इसी तथ्य पर सिद्धि अंत तक सुरक्षित रह सकती है.... LIGHTS…. CAMERA…..ACTION……part of every day life.. …."विनायक समाधान"...@...91654-18344.....(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…

चाय पिलाना मतलब काबू मे करना....जियो और जीने दो....जादू की झप्पी....बुजुर्गो द्वारा बच्चो को....जादू तो यही बाकि सब हाथ की सफाई.....और सफाई के अभियान के तहत हम अपने बच्चों को नियमित स्वच्छ रखते है...और बुजुर्गो को हाईजेनिक-ट्रीट देते है तो प्रतिपल हम अपनी जागरूकता गर्व से प्रदर्शित कर सकते है....क्या समय-समय पर अपने लोगो को स्वास्थ्य-रक्षक उपकरण प्रदान कर सकते है ???...यह ध्यान मे रखते हुये कि बच्चे हर घर में....और बुजुर्ग हर कही मिलेंगे....बस याद करने की देर है....सिर्फ गिफ्ट ही नही...उपकरण को इस्तेमाल करने मे मदद करना भी हमारा ही सौभाग्य होगा......दादर के एक वरिष्ठ मित्र जिन्हें फादर से संबोधित करने में आनंद आता है....गद-गद हो गये...विदेशों में...रुमाल की जगह पेपर-हेण्डकरचीफ को आवश्यक माना जाता है....डस्टबीन का भरपूर उपयोग.....इस प्रकार का गिफ्ट प्रोत्साहन की पहचान....इकोनोमिकल....इकोफ्रेंडली.... तीन-तालाब मे एक मछली की बात नही....संपूर्ण शाकाहार सर्वोत्तम.....वर्ना शरीर की व्याधि....प्रसार मे शीघ्रातिशीघ्र...अति वर्जित रहे...फुंसी को फोड़ा होते देर ना लगे...फटाफट....शरीर को सुन्न करके काटना आसान....मगर चीरा लगा कर....चिर-हरण की बात ही नही....हलाल मे नमक ही फिट....सुपर-हिट...फिटकरी की बात नही....हींग से स्वाद चौखा की बात अवश्य....मगर तीखे की बात नही....जिस प्रकार एक्यू-प्रेशर...और एक्यू-पंक्चर....इन पद्धतियों में सिद्ध किया जाता है कि पूरे शरीर के रोम-रोम आपस में संपर्क रखते है...मतलब कहीं का अनुभव कहीं और....ईमानदारी से....तब कोई चिन्दी-चोरी नही....रोम-रोम के धागे सिर्फ उँगलियों से जागे...और पैदल तीर्थ-यात्रा वह भी पूछते-पूछते...कावड़-यात्रा दल-बल के साथ.....…मतलब सिवाय आध्यात्मिक होने के अलावा कोई चारा नही...जग ढूंढ लिया जाये, कोई विकल्प नही....दुनिया मे चिकित्सा शास्त्र उन्नति करता रहे कोई आपत्ति नही...मगर प्लास्टिक कचरा फ़ोकट का कबाड़-खाना...सचमुच कबाड़ा करे....परन्तु इन दोनों मौलिक तरीको का कोई तोड़ नही....यही कारण है कि शारीरिक श्रम करने वाले को कम दर्द होता है...और इसी कारण वह आराम से सोता है...इस पहलु मे भुत-भविष्य-वर्तमान सरल रूप से शामिल....इन पद्धतियों मे हृदय और किडनी से महत्वपूर्ण हाथ के पर्वत और सिर के बिंदु हो सकते है..सिर की मालिश और हाथो की ताली....अमृतमय...बिना किसी मंथन के....जैसे आध्यात्म मे नाद और ज्ञानेन्द्रियाँ.....तालियों की गड़गड़ाहट ताकतवर लोगो के पक्ष मे होती है...
खिलौने बनाने वाली फैक्ट्री हमेशा फायदे में.....सिर्फ खैलने का मकसद...महंगा शौक....नामुराद-नशा...नाश के आगोश मे ले कर अट्टहास करने लगे तो तौबा करना जरुरी है....हाय-तौबा रोकने के लिये...फिर वही कहानी या फिर बारम्बार....बात तो एक ही है...टी.वी.....एक बार चालू करना आसान किन्तु बन्द करने का विचार मत-भेद से परिपूर्ण....मन-भेद की बात नही....बंद T.V. की स्थिति मे सबका मन एक भाषा बोले...चुपचाप....जब T.V. ख़राब हो जाये....और एक-दो दिन सचमुच की चुप्पी हो जाय तो....सचमुच का आश्रम....सबका स्वागत...सिर्फ चंद-मदहोश पहलु वर्जित....जैसे अंतिम समय हेतु आकलन वर्जित....मगर समय से पहले कमजोरी जायज़ नही...और इस को रोकने के लिये आध्यात्म का बाँध...और आध्यात्म या धर्म के पीछे दौड़ लगाने की बात नही....लेकिन खुद मे आकर्षण की बात जरूर है....भला कोई भी पुछ सकता है...आखिर आप मे क्या विशेषता है ?....हम भी तो जाने....तब सबका एक ही जवाब....मै सरल हूँ....जैसे ॐ या स्वास्तिक....यह हो जाये तो यक़ीनन....आध्यात्म आपके द्वार....खटखट या खटपट की बात नही....ना ही खटिया की....लेकिन दरवाजे की कुंडी सलामत रहे....ताकि धर्म भी आज्ञा-संस्कार का पालन करे....बिना किसी प्रपंच के....वर्ना प्रपंच का पहाड़ राई से बन जाता है....देखते-देखते....रिश्ते कमज़ोर हो जाने पर कहानी ख़त्म करने की ईच्छा होती है किन्तु मुरझाये पौधे मे प्राण फूँकने का सरल चमत्कार कोई भी कर सकता है....बिना पलक झपकाये एक झलक पाने का अवसर....नही तो कभी-कभी पुरा जीवन सपने देखने मे बिता चले जाता है...खुली आँखों से सपने देखना अच्छी आदत...बस इसी आधार पर अच्छे आदमी की पूछ-परख हो कर रहती है...और दुनिया मे अच्छे आदमी के अलावा बहुत सारी वस्तुएँ अच्छी-अच्छी....और अच्छी वस्तु वही जिसकी और अच्छे आदमी का इशारा हो जाये...सितारों की चमक कम या ज्यादा हो सकती है परन्तु इनके टूटने से आसमान को कोई फर्क नही पड़ता है.....He is a blessed grhasta (householder) in whose house there is a blissful atmosphere, whose sons are talented, whose wife speaks sweetly, whose wealth is enough to satisfy his desires, who finds pleasure in the company of his wife, whose servants are obedient, in whose house hospitality is shown, the auspicious Supreme Lord is worshiped daily, delicious food and drink is partaken, and who finds joy in the company of devotees... Those men who are happy in this world, who are generous towards their relatives, kind to strangers, indifferent to the wicked, loving to the good, shrewd in their dealings with the base, frank with the learned, courageous with enemies, humble with elders and stern with the wife...और इसका राज़ यह है कि जिस धन को अर्जित करने में मन तथा शरीर को क्लेश हो, धर्म का उल्लंघन करना पड़े, शत्रु के सामने अपना सिर झुकाने की बाध्यता उपस्थित हो, उसे प्राप्त करने का विचार ही त्याग देना श्रेयस्कर है.....संसार के छह सुख प्रमुख है- धन प्राप्ति, हमेशा स्वस्थ रहना, वश में रहने वाले पुत्र, प्रिय भार्या, प्रिय बोलने वाली भार्या और मनोरथ पूर्ण कराने वाली विद्या......शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें....
गवाह है....चाँद-तारे.....चमत्कार इस तरह कि रात सुबह का रूप ले लेती है...कैसे ???...राम जाने या फिर हर कोई जाने....सेल्फी का अनुभव सबको....किन्तु बगैर अनुमति के कोई फोटो खींच ले तब मन मे यह आशंका जन्म ले सकती है कि बगावत की बोगी पर तो बागी ही सवार हो सकता है.....यह अध्ययन का तरीका हो सकता है कि जहाँ टेबल-लेम्प है वहीँ टेबल भी होना चाहिये.....और कुल मिला कर प्रकाश की उचित व्यवस्था हो.....सौ टका....सरल तथा समकक्ष....और यह ना हुआ तो अँधेरे मे चश्मा भी काम नही करता....लैन्स जन्नत मे भी उन्नत का कार्य करे....तब दो आँखों से मन्नत से संतृप्ति....सहज-संतुष्टि....भोजन के लिये दो लोगो की आवश्यकता होती है....बनाने वाले की और खाने वाले की....सच की फैक्ट्री....तब पूछने का और परोसने वाले के पक्ष मे संपूर्णता की नैतिक ज़िम्मेवारी आ जाती है...तैयारी मे शुद्धता...युद्ध के मैदान मे पसीना बहता है तो खून पानी के रूप मे नही बहता...अर्थात....शुद्ध परामर्श...”TRAIN YOUR ‘MIND’…TO MIND YOUR ‘TRAIN’…..यही विनय !...हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)….
सहज-संतुष्टि....भोजन के लिये दो लोगो की आवश्यकता होती है....बनाने वाले की और खाने वाले की....सच की फैक्ट्री....तब पूछने का और परोसने वाले के पक्ष मे संपूर्णता की नैतिक ज़िम्मेवारी आ जाती है...तैयारी मे शुद्धता...युद्ध के मैदान मे पसीना बहता है तो खून पानी के रूप मे नही बहता.....शुद्ध रूप से घर की बात...माँग कर खाने वाली बात नही....स्त्रियों की विशेषता यह होती है कि.....चेहरा देख कर ही आटे की मात्रा तराजू मे तौल लें....कानून की देवी की तराजू....आँखों पर पट्टी वाली बात नहीं....हाथ के पलड़ों में संतुलन का प्रयास... शॉपिग-मॉल में जाने के लिये लिस्ट की आवश्यकता नहीं लेकिन बेवजह प्रलोभन में फायदा किसी और का...और व्यापारी को तब भी फायदा जब ग्राहक जेब मे लिस्ट ले कर आये....फायदे का सौदा....और % का चिन्ह सभी के लिये उपयुक्त...टका हो या आना...सही होना जरुरी....विशेष रूप से भोजन......होटल वाली बात नही...समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव.....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…
एक निश्चित बिंदु के बाद, पैसे का कोई अर्थ नहीं रह जाता......किसी मनुष्य का स्वभाव ही उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी सम्पत्ति.....अच्छा व्यवहार सभी गुणों का सार है......अच्छी शुरुआत से आधा काम हो जाता है......उत्कृष्टता वो कला है जो प्रशिक्षण और आदत से आती है....दोस्तों के बिना कोई भी जीना नहीं चाहेगा, चाहे उसके पास बाकि सब कुछ हो....दोस्त बनना एक जल्दी का काम है लेकिन दोस्ती एक धीमी गति से पकने वाला फल है.....मित्र का सम्मान आमने-सामने....पीठ पीछे प्रशंसा.....आवश्यकता पड़ने पर सहायता.....यह ईमानदारी का नियम है.....मनुष्य स्वभाव से एक राजनीतिक प्राणी है......कभी भी उस व्यक्ति से प्रेम नहीं करता जिससे वो डरता है....मनुष्य के सभी कार्य इन सातों में से किसी एक या अधिक वजहों से होते हैं: मौका, प्रकृति, मजबूरी, आदत, कारण, जुनून, इच्छा....और इन सबमे महत्वपूर्ण है चरित्र.....अपनी बात मनवाने का सबसे प्रभावी माध्यम.....मनुष्य अपने सबसे अच्छे रूप में सभी जीवों में सबसे उदार होता है, लेकिन यदि कानून और न्याय न हो तो वो सबसे खराब बन जाता है....अच्छा लिखने के लिए खुद को एक आम इंसान की तरह व्यक्त करना पड़ता है.....तब एक बुद्धिमान आदमी की तरह सोचना पड़ सकता है.......जब उन लोगों के बारे में पता चले जो वास्तव में आपके मित्र नहीं है......जितना ज्यादा आप जानोगे, उतना ज्यादा आप यह जानोगे की आप कुछ भी नहीं जानते....कोई भी क्रोधित हो सकता है- यह आसान है, लेकिन सही व्यक्ति से सही सीमा में सही समय पर और सही उद्देश्य के साथ सही तरीके से क्रोधित होना सभी के बस कि बात नहीं है और यह आसान नहीं है....शिक्षा की जड़ें कड़वी होती है लेकिन फल मीठे होते है.....वो जो बच्चों को शिक्षित करते हो वो उन्हें पैदा करने वालो से ज्यादा सम्मानीय है क्योकि वो उन्हें केवल ज़िन्दगी देते है जबकि वो उन्हें सही तरीके से ज़िन्दगी जीने की कला सीखाते है.....वर्ना युवा आसानी से धोखा खाते है क्योंकि वो शीघ्रता से उम्मीद लगाते है....शिक्षित और अशिक्षित में उतना ही फर्क है जितना की ज़िन्दगी और मौत में.....माना कि शिक्षा का व्यवसाय तगड़ा होता है.....तब निशुल्क भी कभी-कभी लाभकारी हो जाता है....सभी भुगतान युक्त नौकरियां दिमाग को अवशोषित और अयोग्य बनाती हैं.....आदमी एक लक्ष्यों की मांग करने वाला प्राणी है उसकी ज़िन्दगी का सही अर्थ है कि वो अपने लक्ष्यों के लिए प्रयास करता रहे और उन्हें प्राप्त करता रहे....संकोच आभूषण भी है और धिक्कार भी.....अपने दुश्मनों पर विजय पाने वाले की तुलना में शूरवीर वही....जिसने अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली है; क्योंकि सबसे कठिन विजय अपने आप पर विजय होती है...उत्कृष्टता कोई कार्य नहीं बल्कि एक आदत है...सत्यम्.....शिवम्......सुंदरम्......एकांत में जाग्रत एकाग्रता हो और सार्वजानिक होने में सुन्दरता, शालीनता और सुकून हो....बस इसी तथ्य पर सिद्धि अंत तक सुरक्षित रह सकती है.... LIGHTS…. CAMERA…..ACTION……part of every day life.. …."विनायक समाधान"...@...91654-18344.....(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…
स्पष्टीकरण....अत्यन्त सरल...जटाओं मे बसे, भक्ति का जोर....बुजुर्गो का कहना है कि जटाओं मे भक्ति भर जाती है...और इस पहलु मे समस्त-सम्प्रदाय सरल रूप से संकल्पित हो कर सहज शामिल...प्रण के स्वरूप मे प्रमाण.....जोर-जबर्दस्ती की बात नही...यह माना जाता है कि जटायें बढ़ने से ज़माने से रूबरू होने का हक़ मिल जाता है....परिपक्वता की बात....जर तथा जोरू पर जोर वाली बात बिलकुल नहीं.....और जोरू का जटा पर जोर....आकर्षण का घनघोर....मौन रूप से शोर...तब शेर के पास भी यही जोर....यह बात अलग है कि जटायें वैराग्य का प्रदर्शन कर सकती है....और साधारण व्यक्ति पश्चिमी-सभ्यता अनुसार यह साधु-स्वरूप स्वीकार नही करता है...तब साधु और साधारण मे फर्क बन जाता है...जब साधारण पुरुष का संबोधन स्नेह-वश...गृहस्त किसी को बेटा कह कर पुकारता है तो जेहन मे संतान का स्नेह.....'बेटा'....और साधु का संबोधन...."बच्चा"...बच्चे भगवान का रूप होते है....ईश्वर के अधिनस्थ तथा ईश्वर के समकक्ष....जेहन मे ईश्वर की संतान का स्वरूप....प्राणी-मात्र परम-पिता का अंश....दंश का नामोनिशान नही....यही कृपा है परमात्मा की...बीज का अंकुरण ही उसका धर्म....तब वह नर है या मादा...???.....सुनिश्चिंत नही...निरुत्तर....प्रजनन की एकल क्षमता....जैसे निर्विकार शिवलिंग...जैसे गुरु समान...जैसे वेद-पुराण....ज्योतिष वेद का प्रमुख अंग है....वैदिक-साहित्य मे चक्षु-स्थान प्राप्त...तब वेदों का उद्देश्य है, अनिष्ट का परिहार तथा इष्ट की प्राप्ति...इष्ट और अनिष्ट का ज्ञान ही ज्योतिष का प्रमुख विषय है....किस समय इष्ट की प्राप्ति होगी ?...किस समय अनिष्ट घटित हो सकता है ?...तब हम सावधान रहे और उचित उपाय द्वारा सुरक्षित रहे....समय की अवधि के आधार पर इष्ट-अनिष्ट का निर्धारण का आकलन सिर्फ ज्योतिष-शास्त्र मे...वह अद्भुत-विद्या जो भौतिक-परिस्तिथि, मानसिक-स्थिति तथा आध्यात्मिक-चेतना के सुसंयोग से जीवन को समग्र बनाने मे सहायक हो....यह स्मरण करते हुऐ कि परिश्रम का कोई विकल्प नही....और इस विधा का ज्ञाता बालक होते हुये भी चालक-स्वरूप होता है...विशिष्ट राजयोग विचार अनुसार "कमल-योग" का कमाल....विशिष्ट लोग भी परामर्श के लिये संपर्क कर सकते है....तब एक ही आधार....शुद्ध-अध्ययन....जिसका मुख्य आधार....आहार, विहार, सदाचार....सरल दर्शन-शास्त्र.... ज्योतिष-शास्त्र और दर्शन-शास्त्र में लगभग वही अंतर है जो हस्त-रेखा-विज्ञान तथा मुख-पठन (FACE-READING) में संभव है...और यह अंतर अनुभव करने के लिये दोनों पहलुओं का अध्ययन करना होगा...ज्योतिष शास्त्र में अप्रत्यक्ष दावा-प्रस्तुति तथा आकलन तनिक भय के साथ...मगर दर्शन-शास्त्र का एक ही सिद्धान्त या नियम या शर्त या धर्म....और वह है....आमने-सामने....हवा, बिजली और ईश्वर को छू कर देखने में दर्शन-शास्त्र का पूरा-पूरा उपयोग...ज्योतिष में आँख बंद करके प्रार्थना संभव है....**”जय हो...सादर नमन...सादर प्रणाम”.....आपकी खुशहाली एवम् सुफलता ही हर अभियान की सफलता मानी जा सकती है....एवम् सही कार्य उपलब्ध न हो तो व्यक्ति हताशा एवम कुंठा से ग्रसित हो कर स्वयं को असफल घोषित मानने लगता है...और एक विद्वान मित्र ने कहा है....”GRANT ME A PLACE TO STAND I SHALL LIFT THE EARTH”….अर्थात....शुद्ध परामर्श...”TRAIN YOUR ‘MIND’…TO MIND YOUR ‘TRAIN’…..यही विनय !...हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)
साधु का संबोधन...."बच्चा"...बच्चे भगवान का रूप होते है....ईश्वर के अधिनस्थ तथा ईश्वर के समकक्ष....जेहन मे ईश्वर की संतान का स्वरूप....प्राणी-मात्र परम-पिता का अंश....दंश का नामोनिशान नही....यही कृपा है परमात्मा की...बीज का अंकुरण ही उसका धर्म....तब वह नर है या मादा...???.....सुनिश्चिंत नही...निरुत्तर....प्रजनन की एकल क्षमता....जैसे निर्विकार शिवलिंग...जैसे गुरु समान...जैसे वेद-पुराण....ज्योतिष वेद का प्रमुख अंग है....वैदिक-साहित्य मे चक्षु-स्थान प्राप्त...तब वेदों का उद्देश्य है, अनिष्ट का परिहार तथा इष्ट की प्राप्ति...इष्ट और अनिष्ट का ज्ञान ही ज्योतिष का प्रमुख विषय है....किस समय इष्ट की प्राप्ति होगी ?...किस समय अनिष्ट घटित हो सकता है ?...तब हम सावधान रहे और उचित उपाय द्वारा सुरक्षित रहे....समय की अवधि के आधार पर इष्ट-अनिष्ट का निर्धारण का आकलन सिर्फ ज्योतिष-शास्त्र मे...वह अद्भुत-विद्या जो भौतिक-परिस्तिथि, मानसिक-स्थिति तथा आध्यात्मिक-चेतना के सुसंयोग से जीवन को समग्र बनाने मे सहायक हो....यह स्मरण करते हुऐ कि परिश्रम का कोई विकल्प नही....और इस विधा का ज्ञाता बालक होते हुये भी चालक-स्वरूप होता है...विशिष्ट राजयोग विचार अनुसार "कमल-योग" का कमाल....विशिष्ट लोग भी परामर्श के लिये संपर्क कर सकते है....तब एक ही आधार....शुद्ध-अध्ययन....जिसका मुख्य आधार....आहार, विहार, सदाचार....सरल दर्शन-शास्त्र.... ज्योतिष-शास्त्र और दर्शन-शास्त्र में लगभग वही अंतर है जो हस्त-रेखा-विज्ञान तथा मुख-पठन (FACE-READING) में संभव है...और यह अंतर अनुभव करने के लिये दोनों पहलुओं का अध्ययन करना होगा...ज्योतिष शास्त्र में अप्रत्यक्ष दावा-प्रस्तुति तथा आकलन तनिक भय के साथ...मगर दर्शन-शास्त्र का एक ही सिद्धान्त या नियम या शर्त या धर्म....और वह है....आमने-सामने....हवा, बिजली और ईश्वर को छू कर देखने में दर्शन-शास्त्र का पूरा-पूरा उपयोग...ज्योतिष में आँख बंद करके प्रार्थना संभव है....किन्तु दर्शन तो आँखों के बिना अधूरा....और शब्द अँधेरे में भी टटोल कर मन की आँखों से पढ़ें जा सकते है...TOTAL-REALITY....कहना-सुनना...आमने-सामने...FACE READING... FACE to FACE...मन की बात आमने-सामने हो तो रूह रूबरू होती है....तब चेहरे के रंग हज़ार....FACE is the front part of our head & expressions are shown on it...face-up to something i.e. to accept a difficult or unpleasant situation and do something about it--यथा भागीरथ, जुझारू.....face-value means the cost displayed on the front of a coin...मूल्यविहीन हरगिज नही...face-less अर्थात जिसकी कोई व्यक्तिगत पहचान ना हो...face-book नामक जहाज पर यात्रा की पात्रता सभी को...face-cloth यानी कि अंगौछा, तौलिया और रुमाल...FACE-LIFT...ज़माना चेहरा पहचानता है, सिर्फ उसका जो मन की बात कहे और सुने...facet...रत्न की झलक....हीरा-पन्ना-माणिक-पुखराज.....अनमोल-रतन...कोई विशेष पहलु...facetious....तब बात को हवा में उड़ाने की नही...दमकते चेहरे का राज़ यही कि कुछ चेहरों पर संदेह मुमकिन नही...जैसे मिटटी की ताकत पर कभी संदेह संभव नही...कभी भी साथ दे सकती है....फूलो की खुशबु का राज़ मिटटी मे...शरीर की ताकत मिटटी मे....संपूर्ण अर्थ-व्यवस्था मिटटी मे....पेड़ को जकड़ने का रहस्य मिटटी में....सुपुर्दे खाक की सच्चाई मिटटी के पास...आदमी की औकात मिटटी में....इज्जत मिटटी में मिलने वाली बात नहीं...और मिटटी का कोई स्वाद नहीं....अलबत्ता मिटटी में सभी स्वाद का रहस्य....बूझो तो जाने....जीभ का चटोरापन दस नखरे दिखाये....और आँखे पल भर में दुनिया देख ले....तब आध्यात्म का स्वाद कैसा ???....पञ्च तत्व का स्वाद क्या ???....तब स्वाद पहचानने के लिये समक्ष मात्र दर्शन-शास्त्र....और गवाही में चेहरे के भाव...उतार-चढ़ाव...भाव-भंगिमाएँ….सत्यम्.....शिवम्......सुंदरम्......एकांत में जाग्रत एकाग्रता हो और सार्वजानिक होने में सुन्दरता, शालीनता और सुकून हो....बस इसी तथ्य पर सिद्धि अंत तक सुरक्षित रह सकती है.... LIGHTS…. CAMERA…..ACTION……part of every day life.. …."विनायक समाधान"...@...91654-18344.....(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…
मन-लुभावन साहित्य नही....सिर्फ खरी-खरी...सही और गलत की और इशारा...ऊंट किस करवट बैठता है ?...प्रश्न का कोई निश्चिन्त उत्तर नही....और आदमी को नींद ना आये तो करवटे बदलने का क्रम जारी रहता है...तब इस प्रश्न का जवाब नही कि कौन किस करवट सोता है ?....और खर्राटों का गहरी नींद से कितना सम्बन्ध है ?.....कोई नही जान सका....और बच्चा आठ से दस घंटे लगातार फर्राटे से गहरी नींद सोता है....तब तो खर्राटे भी नहीं....और खर्राटों की बारिश बेमौसम....पल में चालू, पल में बंद....शत-प्रतिशत बेहोशी का आलम....वायु के आरोह-अवरोह में रुकावट के लिए खेद प्रकट करने का समय नहीं मिलता है...खर्राटों के कारण किस को नींद नही आ रही है ?...यह खर्राटे मारने वाले को कभी पता नही चल पाता है....शिकायत करने वाले करते रहे....क्योंकि खुद खर्राटे लेने वाले को भी मालुम नही होता है कि उसे नींद आ रही है अथवा नही...कहीं नींद आने का भ्रम तो नही ?....पीठ पीछे वाली बात नहीं....आड़ मे लेन-देन की बात नहीं....थर्ड-अंपायर भगवान को मान सकते है...थर्ड-पार्टी या थर्ड-डिग्री की बात नहीं.....संज्ञान में आये बगैर कोई काम गलत सिद्ध होता है तो उसे सही सिद्ध करना सरल है..यही है आधार मजबूत चरित्र का.....सिर्फ संज्ञान को गहरी नींद से जगाना होगा...और यह अध्यात्म से संभव है....यह याद रखते हुये कि इसका कोई विकल्प नही....और इस आनंद का कोई अंत नही....चरम की चर्चा नही किन्तु परम-आनंद हर एक का अधिकार है....और यह हो जाय तो सुबह उठने के विचार मे बरकत आ सकती है....लक्ष्मी का उल्लू पर बैठ कर आने वाली बात नही....सिर्फ सोलह आने मे सच को तोला जा सकता है....सोना तौलने वाली बात नही...नमक तो महंगी चीज हो जाती है...सोलह आने सही...नमक मे मिलावट कम से कम...और खपत भी दायरे मे....ताकत इतनी कि शरीर गला दे...गला दबाने वाली बात नही....असली सुख तो बुजुर्गो के हाथ-पैर दबाने मे....एक्यूप्रेशर थेरेपी ऑलमोस्ट बेस्ट....सेवा करे तो मेवा मिले...और मेवे मे मिट्टी भी मिल जाती है...मिट्टी में मिलाने वाली बात नहीं....जायदाद हो या मिल्कियत...और आशीर्वाद के शब्द...मिट्टी नहीं किन्तु सौंधी महक....धातु नहीं किन्तु स्वर्ण समान....अन्न और उदरपूर्ति की बात नहीं...मगर उपवास में भी मन की पूर्ति करे...तमसो मा ज्योतिर्मय......मनुष्य अजर-अमर नहीं है...आत्मा और ज्ञान अजर-अमर है.....और इनकी यात्रा कभी नहीं थमती है....जैसे समय....ना थमता है....ना थकता है....जो कुछ भी है, जिसे हम ईश्वर के नाम से जानते है....वह प्रकाश का ही रूपांतरण है....गीता में श्री कृष्ण कहते हैं..…सभी प्रकाशीय वस्तुओं में प्रकाश उत्पन्न करनें की ऊर्जा , मैं हूँ...और प्रार्थना करने पर सन्देश मिलता कि DON’T WORRY…..”मै हूँ ना”.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव....आपकी कृपा से सबका सब काम हो रहा है और होता रहे..... हार्दिक स्वागत......”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#... #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...जय हो...सादर नमन...#Regards#.
दुःख-तकलीफ-सुख तो जीवन के अभिन्न अंग है...जन्म के बाद बच्चा रोता नहीं तो शंका....और आँसू ख़ुशी के भी होते है....और रुद्राक्ष तो साक्षात् आनन्द-स्वरूप है.......हर हर महादेव.....सोम मंगलम, सोमवार मंगलम.....अर्थात सम्पूर्ण वायुमंडल मंगलमय....जय हो....प्रणाम....ॐ नम: शिवाय.....सहज या संकल्पित...WHATEVER....परन्तु अनिवार्य.....अंदाज़ अपना-अपना....उच्च, समकक्ष, निम्न....और मुश्किल को आसान करने के लिए....एक ही सामान्य आसान उपाय....बारम्बार...‘करत-करत अभ्यास के जङमति होत “सुजान”.....रसरी आवत जात, सिल पर करत निशान’......और जल-घर्षण से कंकर भी ‘शंकर’ बन जावे.....’परम-सुजान’....”महादेव”.....सदस्य, संपर्क तथा संवाद...पारदर्शिता, नियंत्रण और गठबन्धन...एकाग्रता, एकान्त और प्रार्थना....."सत्यम-शिवम्-सुंदरम"...सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शिव को सत्य तथा सुन्दर स्वीकार करता है....शिव 'नटराज' है....नृत्य की परिधि में आदि है...मध्य है....अंत है...सम्पूर्ण अभिव्यक्ति....कैवल्य तथा निर्वाण की महासमाधि...ज्ञान की गंगा में शिव, शिवत्व तथा शिवत्व में समर्पण का समावेश हो जाये तो "सत्यम-शिवम्-सुंदरम" की अनुभूति सुनिश्चिंत है.....भक्त, भक्ति और भगवान को मानव के अतिरिक्त कोई दूसरा समझ ही नहीं सकता है....रिक्त स्थान की पूर्ति.....Fill in the BLANKS....बिल्कुल गणित के सवाल के माफिक.....गणितज्ञ के लिए मात्र गणना ही चमत्कार....‘‘वज्रादपि कठोर एवं कुसुमादपि कोमल’’.....मात्र देख व सुनकर बड़े-बड़े विद्वान चकरा जायें तथा अपढ़ अशिक्षित व बच्चे भी सरलता से उत्तर दे सकें…...जय श्री महाकाल.....शतरंज की चालों का खौफ उन्हें होता है , जो सियासत करते है और रियासत की चाह रखते है.......अखण्ड ब्रहमांड के राजा महाकाल के भक्त है तो न हार का डर, न जीत का लालच....चिन्ता हो ना भय...सम्पूर्ण निर्भय....’हर-हर महादेव’....चिन्तामण चिन्ता हरे । कष्ट हरे महाँकाल ।। हरसिध्दी माँ सिध्दी दे । आशीष दे गोपाल ||…...प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव.....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)...
फोटो कितनी भी सुन्दर मगर है तो फोटो....हम उस स्थान की फोटो दिवार पर टांगे....जहाँ हमारा आना-जाना लगा रहे..एक ही चाहत....जब अकेले हो तो परमात्मा से बात हो जाय....और जब किसी के साथ हो तो परमात्मा की बात हो जाय.....और बुजुर्ग अपने अनुभव के आधार पर कहते है.....”करने से होता है”.....कुछ हो ना हो....बस जिक्र हो जाये.....और जिक्र सुन कर फ़िक्र हो जाय....चिन्ता और चिता की बात नही....और बुजुर्गो की आवाज़ पर जो दौड़ लगा दे...आज्ञाकारी-पाकीज़ा.....सीधी बात...सर-आँखों से बड़ कर कुछ नहीं.....जो हुक्म मेरे आका कहने में फुर्ती....चीते की चाल.....सरपट...लपक में घौडे से ज्यादा...लंबी रेस मे घोड़ा ही आगे...पर बात लपक की है...अकड़-धकड़ या मार-पकड़ हो...सब बाद में.....केस पर पकड़ बनाने की फ़िक्र....back side का U....फॉर साइड की नोक.....बाजीराव की तलवार....आँखों के बगैर बाज़ की नजर....और बाज़ की नज़र पारस-पत्थर पर....तब मूर्ति भी पत्थर की....पत्थर से मूर्ति बने.....और पारस भी पत्थर का एक रूप....शायद इसीलिये पत्थर की मूर्ति समस्त धातुओं मे अग्रणी....भले ही अस्तित्व पर असमंजस....नास्तिक या आस्तिक की बात नही....खुदाई मे मिल जाये तो खड़ी कर दो...खम्मा-घणी.....जैसे स्त्री-तत्व.....आदमी भगवान को देखता है मगर सिर्फ तस्वीरों मे...मगर भक्ति में महिलाओं का अनुभव ज्यादा...स्त्रियों का प्रतिशत सत्संग में पुरुषों से ज्यादा है...स्त्री-पक्ष के साधक कम किन्तु महिलाओं की संख्या भक्ति में ज्यादा....फोटो कितनी भी सुन्दर मगर है तो फोटो....हम उस स्थान की फोटो दिवार पर टांगे....जहाँ हमारा आना-जाना लगा रहे....पर्यटन का कार्य सीधे घर से शुरू हो घर पर ही ख़त्म होता है...हर हर महादेव.....सोम मंगलम, सोमवार मंगलम.....अर्थात सम्पूर्ण वायुमंडल मंगलमय....जय हो....प्रणाम....ॐ नम: शिवाय.....सहज या संकल्पित...WHATEVER....परन्तु अनिवार्य.....अंदाज़ अपना-अपना....उच्च, समकक्ष, निम्न....और मुश्किल को आसान करने के लिए....एक ही सामान्य आसान उपाय....बारम्बार...‘करत-करत अभ्यास के जङमति होत “सुजान”.....रसरी आवत जात, सिल पर करत निशान’......और जल-घर्षण से कंकर भी ‘शंकर’ बन जावे.....’परम-सुजान’....”महादेव”.....सदस्य, संपर्क तथा संवाद...पारदर्शिता, नियंत्रण और गठबन्धन...एकाग्रता, एकान्त और प्रार्थना....."सत्यम-शिवम्-सुंदरम"...सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शिव को सत्य तथा सुन्दर स्वीकार करता है....शिव 'नटराज' है....नृत्य की परिधि में आदि है...मध्य है....अंत है...सम्पूर्ण अभिव्यक्ति....कैवल्य तथा निर्वाण की महासमाधि...ज्ञान की गंगा में शिव, शिवत्व तथा शिवत्व में समर्पण का समावेश हो जाये तो "सत्यम-शिवम्-सुंदरम" की अनुभूति सुनिश्चिंत है.....भक्त, भक्ति और भगवान को मानव के अतिरिक्त कोई दूसरा समझ ही नहीं सकता है....रिक्त स्थान की पूर्ति.....Fill in the BLANKS.....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव.....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS).