Thursday 3 November 2016

शेयर-मार्केट के शुरुआती दौर में कुछ साथी टर्मिनल पर इस कदर भिड़े रहते थे कि खाने-पीने का कोई होश नहीं.....कुल मिला कर बढ़त की कम्पनी में पैसा लगाना....भविष्य में मुनाफा प्राप्त करने की आशा रखना.....और इस धंधे का एक ही नियम पैसे से पैसा बढेगा.....तब इधर-उधर से इंतजाम करके शेयर में पैसा लगाना....तब किसी काम में भिड़ने का मतलब लत लगना...लेकिन काम में भिड़े बिना, आनंद की प्राप्ति संभव नहीं...तब अति सर्वत्र वर्जयेत्.....यह आनंद का नियम हो सकता है.....और मुनाफे का एक नियम हमेशा अटल रहेगा....सब दिन समान नहीं....कोई दिन लाडू...कोई दिन पेड़ा...कोई दिन फाकम-फाँका जी....और एक दिन वह हुआ...जो होना था....शेयर-मार्किट में शोर्ट-सर्किट....धूमधाम की जगह धूम-धडाम....धडाधड....अच्छे-अच्छे लोग मुनाफाखोरी के अच्छे-खासे शिकार हो गये....यकीन नहीं हुआ कि कल तक अच्छे-खासे आत्म-विश्वास वाले आज गहरे रूप से हतोत्साहित कैसे हो गए ?......प्रगाढ़ सम्बन्धो की परिभाषा किस प्रकार प्रदर्शित हो ?.....स्वार्थ का प्रतिशत किस प्रकार तय हो ?....लेन-देन मे शुद्धता कैसे कायम हो ?.... बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।। ...खुद की गलती स्वीकार करने का मतलब माफ़ी भी मांगना पड़ेगी....और आम आदमी स्वीकार करने मे हमेशा हिचकिचाता है....और तब शार्ट-कट यह कि चुप्पी साध ली जाय....कम्युनिकेशन-गेप...जबकि आज के युग मे हर एप्प का काम सिवाय बातचीत के कुछ और नही...कोई आवश्यक नहीं कि बड़े आदमी का बेटा ही बड़ा आदमी बनेगा....जो जौहर दिखायेगा वही बाज़ी जीतेगा..बाकि तो सब आयाराम-गयाराम.....धारयताम पक्षबलेन...अर्थात HOLD WITH THE STRENGTH OF WINGS...हवा मे टिकने की कला पक्षी बचपन से ही सीख लेता है....माना कि अकेला चना भाड़ नही फोड़ता किन्तु ONE MAN ARMY का मतलब SOUND MIND IN A SOUND BODY....नशे में आदमी खुद को ताकतवर समझने का भ्रम उत्पन्न करता है और नशा उतरने के बाद खुद को कमजोर समझने की वास्तविकता से रूबरू होता है....सबकुछ लुटा कर होश मे आने वाली बात नही...जो केमिकल पटाखों में वही मुख-शुद्धि वाले गुटखा पाउच मे...आदमी मात्र पांच रुपये मे पहलवान...तब एक ही कारण कि दिमाग में उलट-पलट...केमिकल-लोचा....मैग्नीशियम की अल्प मात्रा भी तंबाकू के साथ अत्यन्त हानिकारक...और विज्ञापन में केशरयुक्त होने का दावा...मतलब केशर निम्बू-मिर्ची से भी सस्ती....मामला समझ से बाहर...मृत्यु-शैया पर भले ही गंगा-जल मुँह में डाल दिया जाय किन्तु दिमाग में बैंक की पासबुक, खाता-नम्बर, फिक्स-डिपॉजिट, जायदाद का ब्यौरा अपनी जगह जमा लेते है...और दिमाग सबके पास....और दिमाग तस्वीर में कैद हो जाये तो सिवाय माल्यार्पण के कोई और उपयोग नही...और ताजी माला खरीदने की बजाय सुंदर सी माला एक बार टाँगने के बाद बदलने के लिये बेहद इंतज़ार हो सकता है...सायकिल के पेडल बार-बार घुमाने की बजाय किक मारना आसान समझा जाता है किन्तु अब तो सेल्फ-स्टार्ट का चलन बहुतायत से....सुख कैसे आवे ?... आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...

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