Friday 4 November 2016

आध्यात्मिकता का जोर जरा मजबूत होता है....ठीक पहलवानी के समान....हर पहलु मे अपना रंग तलाशे.....एक मन सवारे, दूजा बदन निखारे....दोनों विधायें विधायक स्वरूप....आदमी स्नान करके सीधा पूजा करता है....और पहलवान अखाड़े ना जाये तो दिवार पर मुक्के मारता है...तब किसी भी विधा मे जान सिर्फ ईमानदारी से ही आती है....सुई से लेकर हवाई-जहाज तक सबका-अपना जोर....कही जर, तो कही जोरू....और धर्म का जोर हर कही तलाश कर तराशा जा सकता है.....बस यह ध्यान रखने लायक कि...थोक और खुदरा मूल्य मे ज्यादा अंतर हो जाये तो बिचौलियों की पौ-बारह.....जबकि बारह का अंक समान रूप से व्यवहार मे आता है....दिन मे, रात मे.....घड़ी मे....साल के बारह महीने.....और बारह साल सात्विकता को समर्पित....आध्यात्मिकता का उत्सव....सिंहस्त....उत्तम विचारो का प्रसार सर्वोत्तम धर्म माना जा सकता है....और जीवन के व्यवहारिक ज्ञान का प्रसार संत का काम होता है....आहार, विहार, सदाचार के रूप में....जीन्स, T-शर्ट के युग मे नवयुवक कुर्ता-पाजामा पहनने मे संकोच करने लगे है.....जबकि धोती-कुर्ता पूर्णतः आघ्यात्मिक परिवेश....बंद दरवाजा खटखटाने पर खुलने का इंतज़ार करना पड़ता है....किन्तु खुले दरवाजे पर खट-खट अनुमति का सूचक माना जाता है...

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