Wednesday 2 November 2016

जलपान, स्तनपान, मद्यपान, धूम्रपान.....आपस का शगल....जलपान रोज़मर्रा की घटना..व्यवहार बढ़ाने का रास्ता....स्तनपान जैसे अमृत-पान....हर स्तनधारी को वरदान....मद्यपान जहाँ मद्य वहीँ मयखाना...जो बोतल में जिंदगी ढूंढने जाता है, वहीँ कैद हो जाता है...धूम्रपान छोटी हरकत....कब लत लग जाती है ?...पता ही नहीं लगता....किन्तु सम्पूर्ण वायुमंडल को अशुद्ध करे....तब विषपान की संज्ञा भी विचारणीय....जैसे एक मछली सारे तालाब को मलिन करती है....जैसे एक चिंगारी पुरे फटाकों की फैक्ट्री को लपेट में ले लेती है....वैसे तो ज़माना ज्वलनशील !!....सामने वाले की समृद्धि देख कर खुद की हालत पर भड़कने की प्रवृत्ति मे निरन्तर वृद्धि.....पर जो चीज प्रकृति ने मानव को सिर्फ एक ही दी है, वह खरीद कर डबल करना मुश्किल है....बस दिमाग की ताकत डबल हो सकती है....वह भी मांग कर या खरीद कर नहीं....सिर्फ स्वयं के ध्यान के आधार पर...हम क्या करने जा रहे है ?...इस प्रश्न का उत्तर दिमाग में भली-भांति जमा होता है....हिसाब देने में सोचने का काम दिमाग का....नक्शा ठीक हो तो ईमारत भी बुलन्द हो सकती है....जैसे वर्दी की पहचान मजबूत होती है....ऊँगली उठाने की बात तो दूर बल्कि बुरी नजर का मुँहतोड़ जवाब हाजिर....हाथो-हाथ...बाउंड्री और बार्डर में अंतर.....गेंद बाउंड्री के पार चली जाये तो तालियों की आवाज़....दुश्मन बार्डर के अंदर आ जाये तो बन्दुक की आवाज़...और राष्ट्र की एक ही पुकार....आवाज़ दो, हम एक है...आदमी अपनी ताकत को, अपने आस पास के लोगो को दबा कर बढ़ाना चाहता है तो यह बहुत बड़ी भूल हो सकती है....विश्वसनीयता के ढेर में विश्वासघात की चिंगारी घातक सिद्ध होती है...वाही-वाही में चार-लोग हो, या चालीस-लोग....इस प्रक्रिया में खुद की ताकत बढ़ती नजर आती है....किन्तु आँख मसल कर या च्यूटी खीच कर देखना जरूरी है कि कहीं यह सपना तो नही ?...आलोचना...चार करे या चालीस....सपने नही आते बल्कि असलियत सामने आ जाती है...स्केलेटर की बात नही....ऊपर-नीचे तो लेटर होता है....कई लोग सीढ़ियां चढ़ते वक्त अपने अभ्यास से दो या तीन सीड़ी डाइरेक्ट चढ़ने मे एक्सपर्ट होते है....और बिना अभ्यास के...सिर्फ देखा-देख की भक्ति से यह सम्भव नही...नीम हकीम खतरे जान....चाहे धूम्रपान हो या मद्यपान....और इनको छोड़ने के लिये अपना-अपना ईमान....अत्तार की बुटी भी काम ना आवे....और संजीवनी-बुटी से छेड़-छाड़ तो बजरंग के बस मे...सिगरेट को शानदार समझने का भ्रम और त्यागने का सरल संकल्प....तब शानदार और सरल में अंतर क्या ?....फाइव-स्टार और राम-निवास भोजनालय....या फिर भोले का चाय का ठेला....फुर्सत के क्षणों में शब्दों का आदान-प्रदान अर्थात चर्चा का योग, समय अनुसार.....उच्च, समकक्ष या मध्यम....शुद्ध रूप से....स्वयं का निर्णय हो सकता है...आमने-सामने...face to face...शब्दों का सम्मान...पूर्ण स्वतंत्रता के साथ...आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS..

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