Saturday 5 November 2016

जो सुखी नहीं है, उसे सफल नहीं कहा जा सकता....जब हम अपने आप को दूसरों की दृष्टि से आँकते हैं, तो हमारा अपना सुख गौण हो जाता है.....हम भूल जाते हैं कि हमारा सुख हमारी अपनी दृष्टि में है, दूसरों की दृष्टि में नहीं.....इसलिये आप की सफलता को किसी दूसरे की परिभाषा में नहीं बाँधा जा सकता.... तो फिर क्या करना चाहिए? किस की बात सुननी चाहिए ?.... आप को केवल उन की बात सुननी है जिन्हें स्वयं आप सर्वोच्च रूप से सफल मानते हैं, जिनकी आप सुबह-शाम पूजा करते हैं, जिनकी आप आरती उतारते हैं - जिन्हें आप देवता कहते हैं....फिर, आप को भी वही करना है, जो देवता करते हैं....आपका काम देवता की पूजा करने से नहीं, देवता जैसा आचरण करने से बनता है....आप की सफलता देवता की पूजा में नहीं, स्वयं देवता बन जाने में है....क्या ऐसा होना संभव है? क्या हम लोग देवता बन सकते हैं? जी हाँ! देवता बनना न केवल संभव है, बल्कि देवता बनना ही हमारा एक-मात्र धर्म है....लेकिन हम लोग ऐसा नहीं करते....हम दूसरों की बातों से हतोत्साहित होते हैं....हम से कहा जाता है - “आप देवता कैसे हो सकते हो? देवता के पास तो विलक्षण और दिव्य शक्ति होती है....आप तो छोटे-मोटे साधारण निर्बल जीव हो”....लेकिन हम दोनों ऐसा नहीं मानते... इस चर्चा के माध्यम से हम आप को यह बताना चाहते हैं कि आप छोटे-मोटे साधारण मनुष्य नहीं हैं, आप जीते-जागते देवता हैं....यही हमारे वेदान्त का वह सन्देश है जिस की हम उपेक्षा करते आ रहे हैं....इस उपेक्षा के कारण हम अपने अन्दर के देवता को नहीं देख पाते....इसीलिये हम उस सम्पूर्णसुख को नहीं भोग पाते जिस पर हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है....हम इइस प्रतीक्षा में बैठे रहते हैं कि एक दिन परमात्मा का अवतार इस धरती पर उतरेगा.....और हमारे दुख हर ले जायेगा...लेकिन वह अवतार कोई और नहीं, स्वयं आप हैं....आप के जाग जाने से उसका अवतरण हो जाता है....आपकी भूमिका बहुत बड़ी है...परमात्मा आप को निमंत्रण दे रहा है....परमात्मा आप से कह रहा है - उठो! अपने आप को जानो! अपनी शक्ति को पहचानो! आप ही अवतार हैं, आप ही देवता है.... देवताओं वाले सारे सुख आप के लिये ही हैं..... पर, सुख को हम पहचानते नहीं हैं....हम लोग यह नहीं जानते कि सुख कहीं बाहर से नहीं आता....सुख कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे कोई दूसरा आप की जेब में डाल देगा और वह आप का हो जायेगा....सुख तो एक प्रक्रिया (process) है जिसमें हमारे अपने भाव जागते हैं - भौतिकता के माध्यम से भी, और अध्यात्मिकता के माध्यम से भी....इस प्रक्रिया से हम लोग स्वयं ही अपने सुख का सृजन करते हैं...तमसो मा ज्योतिर्मय......मनुष्य अजर-अमर नहीं है...आत्मा और ज्ञान अजर-अमर है.....और इनकी यात्रा कभी नहीं थमती है....जैसे समय....ना थमता है....ना थकता है....जो कुछ भी है, जिसे हम ईश्वर के नाम से जानते है....वह प्रकाश का ही रूपांतरण है....गीता में श्री कृष्ण कहते हैं..…सभी प्रकाशीय वस्तुओं में प्रकाश उत्पन्न करनें की ऊर्जा , मैं हूँ...और प्रार्थना करने पर सन्देश मिलता कि DON’T WORRY…..”मै हूँ ना”.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव....आपकी कृपा से सबका सब काम हो रहा है और होता रहे..... हार्दिक स्वागत......”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#... #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...जय हो...सादर नमन...#Regards#.

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