याददाश्त कमजोर नहीं होती है बल्कि अन्य धाराओं में बह जाती है.....ऊर्जा
के रूप मे....और ऊर्जा एकत्रित होती है....एकाग्र रूप से ध्यान केंद्रित
करने से....मेहनत की ताकत अपना जौहर दिखा कर रहती है....तब बलवान कौन ?....
*बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः |
श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ||
....अर्थात् जो व्यक्ति धर्म (कर्तव्य) से विमुख होता है वह व्यक्ति बलवान् हो कर भी असमर्थ....धनवान् हो कर भी निर्धन....ज्ञानी हो कर भी मूर्ख हो सकता है....और तब धर्म, मित्र बन कर आपको ताकतवर अर्थात शीतल धैर्य धारण करने योग्य बनाता है...
*चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः |
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||
....अर्थात् संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा, चन्दन से भी शीतल होता है....और अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है....यानि कि वास्तविक ताकत....जो किसी भी संत के पास सहज रूप से निश्चिन्त रूप से होती है....तब संत कौन ?.... *साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
...हम में हर एक....इस संसार में ऐसा सज्जन जो अनाज साफ़ करने वाला सूपडा साबित हो...जो सार्थक को बचा कर निरर्थक को उड़ा दे...यदि यह सिद्धि सिद्ध हो जाये तो कोई भी पुरुष योगी कहला सकता है....तब योगी कौन ?...
*तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई...
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ...
शरीर पर भगवे वस्त्र धारण करना सरल है...पर मन को योगी बनाना कठिन अभ्यास का काम है...मन की चंचलता के आगे प्रकृति भी हार जाती है...य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं.....शक्ति से शीतलता आती है अर्थात संत सदैव योगी के स्वरूप मे....यही है सिद्धि और साधना का उत्कृष्ट परिणाम.....जो लोग मनुष्य का शरीर पाकर भी राम का भजन नहीं करते है.....बुरे विषयों में खोए रहते हैं...वे लोग अशुद्ध आचरण से पारस मणि को फेंक देते है और रत्न समझ कर काँच के टुकड़े हाथ में उठा लेते है....तब आनंद की उत्पत्ति कैसे हो ?...सुख कैसे आवे ?... आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...
श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ||
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*चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः |
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||
....अर्थात् संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा, चन्दन से भी शीतल होता है....और अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है....यानि कि वास्तविक ताकत....जो किसी भी संत के पास सहज रूप से निश्चिन्त रूप से होती है....तब संत कौन ?.... *साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
...हम में हर एक....इस संसार में ऐसा सज्जन जो अनाज साफ़ करने वाला सूपडा साबित हो...जो सार्थक को बचा कर निरर्थक को उड़ा दे...यदि यह सिद्धि सिद्ध हो जाये तो कोई भी पुरुष योगी कहला सकता है....तब योगी कौन ?...
*तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई...
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ...
शरीर पर भगवे वस्त्र धारण करना सरल है...पर मन को योगी बनाना कठिन अभ्यास का काम है...मन की चंचलता के आगे प्रकृति भी हार जाती है...य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं.....शक्ति से शीतलता आती है अर्थात संत सदैव योगी के स्वरूप मे....यही है सिद्धि और साधना का उत्कृष्ट परिणाम.....जो लोग मनुष्य का शरीर पाकर भी राम का भजन नहीं करते है.....बुरे विषयों में खोए रहते हैं...वे लोग अशुद्ध आचरण से पारस मणि को फेंक देते है और रत्न समझ कर काँच के टुकड़े हाथ में उठा लेते है....तब आनंद की उत्पत्ति कैसे हो ?...सुख कैसे आवे ?... आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...
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