Saturday 5 November 2016

स्पष्टीकरण....अत्यन्त सरल...जटाओं मे बसे, भक्ति का जोर....बुजुर्गो का कहना है कि जटाओं मे भक्ति भर जाती है...और इस पहलु मे समस्त-सम्प्रदाय सरल रूप से संकल्पित हो कर सहज शामिल...प्रण के स्वरूप मे प्रमाण.....जोर-जबर्दस्ती की बात नही...यह माना जाता है कि जटायें बढ़ने से ज़माने से रूबरू होने का हक़ मिल जाता है....परिपक्वता की बात....जर तथा जोरू पर जोर वाली बात बिलकुल नहीं.....और जोरू का जटा पर जोर....आकर्षण का घनघोर....मौन रूप से शोर...तब शेर के पास भी यही जोर....यह बात अलग है कि जटायें वैराग्य का प्रदर्शन कर सकती है....और साधारण व्यक्ति पश्चिमी-सभ्यता अनुसार यह साधु-स्वरूप स्वीकार नही करता है...तब साधु और साधारण मे फर्क बन जाता है...जब साधारण पुरुष का संबोधन स्नेह-वश...गृहस्त किसी को बेटा कह कर पुकारता है तो जेहन मे संतान का स्नेह.....'बेटा'....और साधु का संबोधन...."बच्चा"...बच्चे भगवान का रूप होते है....ईश्वर के अधिनस्थ तथा ईश्वर के समकक्ष....जेहन मे ईश्वर की संतान का स्वरूप....प्राणी-मात्र परम-पिता का अंश....दंश का नामोनिशान नही....यही कृपा है परमात्मा की...बीज का अंकुरण ही उसका धर्म....तब वह नर है या मादा...???.....सुनिश्चिंत नही...निरुत्तर....प्रजनन की एकल क्षमता....जैसे निर्विकार शिवलिंग...जैसे गुरु समान...जैसे वेद-पुराण....ज्योतिष वेद का प्रमुख अंग है....वैदिक-साहित्य मे चक्षु-स्थान प्राप्त...तब वेदों का उद्देश्य है, अनिष्ट का परिहार तथा इष्ट की प्राप्ति...इष्ट और अनिष्ट का ज्ञान ही ज्योतिष का प्रमुख विषय है....किस समय इष्ट की प्राप्ति होगी ?...किस समय अनिष्ट घटित हो सकता है ?...तब हम सावधान रहे और उचित उपाय द्वारा सुरक्षित रहे....समय की अवधि के आधार पर इष्ट-अनिष्ट का निर्धारण का आकलन सिर्फ ज्योतिष-शास्त्र मे...वह अद्भुत-विद्या जो भौतिक-परिस्तिथि, मानसिक-स्थिति तथा आध्यात्मिक-चेतना के सुसंयोग से जीवन को समग्र बनाने मे सहायक हो....यह स्मरण करते हुऐ कि परिश्रम का कोई विकल्प नही....और इस विधा का ज्ञाता बालक होते हुये भी चालक-स्वरूप होता है...विशिष्ट राजयोग विचार अनुसार "कमल-योग" का कमाल....विशिष्ट लोग भी परामर्श के लिये संपर्क कर सकते है....तब एक ही आधार....शुद्ध-अध्ययन....जिसका मुख्य आधार....आहार, विहार, सदाचार....सरल दर्शन-शास्त्र.... ज्योतिष-शास्त्र और दर्शन-शास्त्र में लगभग वही अंतर है जो हस्त-रेखा-विज्ञान तथा मुख-पठन (FACE-READING) में संभव है...और यह अंतर अनुभव करने के लिये दोनों पहलुओं का अध्ययन करना होगा...ज्योतिष शास्त्र में अप्रत्यक्ष दावा-प्रस्तुति तथा आकलन तनिक भय के साथ...मगर दर्शन-शास्त्र का एक ही सिद्धान्त या नियम या शर्त या धर्म....और वह है....आमने-सामने....हवा, बिजली और ईश्वर को छू कर देखने में दर्शन-शास्त्र का पूरा-पूरा उपयोग...ज्योतिष में आँख बंद करके प्रार्थना संभव है....**”जय हो...सादर नमन...सादर प्रणाम”.....आपकी खुशहाली एवम् सुफलता ही हर अभियान की सफलता मानी जा सकती है....एवम् सही कार्य उपलब्ध न हो तो व्यक्ति हताशा एवम कुंठा से ग्रसित हो कर स्वयं को असफल घोषित मानने लगता है...और एक विद्वान मित्र ने कहा है....”GRANT ME A PLACE TO STAND I SHALL LIFT THE EARTH”….अर्थात....शुद्ध परामर्श...”TRAIN YOUR ‘MIND’…TO MIND YOUR ‘TRAIN’…..यही विनय !...हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)

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