घटनाये समय को जीवित रखती है....1974 में एप्पल के फाउंडर….स्टीव जॉब्स आए
थे.....बरसो पहले......घी-मंडी मे घी बिकता था....पर नाम आज भी कायम
है....नाम नमक-मंडी किन्तु नमक सब-दुर मिलता है....राजा की मंडी मे राजा
कभी बिकता नहीं...ज़मीर के सौदेबाज़ी की बात नही...अनाज-मंडी
अजर-अमर....आमने-सामने का खेल अनवरत जारी है...रुकावट के लिये खेद प्रकट
करने का प्राकट्य जायज़ नहीं....खरीदने-बेचने का काम हाट-बाजार मे
लगातार....जहाँ एक ही नियम जो तू साँचा-बाणिया तो साँची-हाट लगा...राम जाने
कितने लोग इसका पालन करते है ?....कारखानों में तराजू सिर्फ बनते
है...उपयोग तो कोई और करता है.....किन्तु राम के इस देश मे बाजार मे आज भी
सम्प्रदाय का भेद-भाव नगण्य है...रुपैया जाति से बाहर....सब-सुर सुनने की
स्वतंत्रता और सब-दूर आने-जाने की आज़ादी....जैसे संगीतकार....ट्रेन मे
गा-बजा कर पैसे उगाने का हुनर आज भी जीवित है.....सोलह आने सही
बात....सराफा-बाजार देश मे सभी दूर....यहाँ सोना-चाँदी अवश्य मिलता
है....दुकानों मे खानदानी काम...टांका लगाने का काम खानदानी और ग्राहक भी
खानदानी...तब विश्वास पर सब-कुछ कायम मान सकते है...तब धातु के विज्ञापन मे
विश्वसनीयता का प्रसार...तब सुलतान का नाम ही काफी है...तब राजा राम का
प्रजा द्वारा सरल सम्मान कि....राम से बड़ा राम का नाम...देश की
कुटुम्ब-व्यवस्था कहती है...रघुकुल रीत सदा चली आयी....बस इतने भर मे
सरल-वचन के आधार पर असाधारण-प्राण कायम...वर्ना प्राण-पखेरु के पश्चात् तो
स्वाहा...बात मर-मर जीने की हरगिज़ नही......तब कसौटी और माप-दण्ड दोनो ही
माथे पर लगाने लायक.....तब दूकान को दूसरा नाम दे दिया जाता
है....पेढ़ी....जहाँ मत्था टेका जाता है...आज्ञा-चक्र और हंसा-चक्र को
आत्मसात करने की प्रक्रिया....पीढ़ी-दर-पीढ़ी...एक ही पेढ़ी
पर.....सौ-प्रतिशत पक्का आरक्षण....तब मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा,
चर्च....दूकान ना हो कर पेढ़ी का रूप....तब इस पेढ़ी मे किसी के बिकने या
मिलने की बात बात नही...वहाँ विराजमान है....ईश्वर, अल्लाह, वाहे-गुरु,
गॉड....और इनका एक ही उपयोग...इनके सामने सिवाय मत्था टेकने के और काम
नही...तब राजा की कोई मंडी नही....तब सिर्फ दरबार....जहाँ कोई अतिथि
नही....तब कोई सत्कार नही....सिर्फ उदघोष....कर्तल-ध्वनि के
साथ....कहने-सुनने का माध्यम....कुत्रुड़-आवाज़ वर्जित...और यह सब-कुछ
देखने के लिये...मंदिरों मे मूर्तियों की आँखे खुली की खुली....भले ही बंद
आँखों से हम सब-कुछ सुन सकते है....जैसे पलक झपकती है वैसे देवालयों के पट
भी नियमानुसार स्वागत करे....पाठशाला के नियम सरल किन्तु अटूट तथा
अटल....अश्क़ो का समंदर फिर आँख में निखरने लगा है अब….भारत भूमि राजनीति की
नहीं संतत्व की भूमि है….दुनिया में भारत वर्ष पानीदार-आँखों के लिये
पहचाना जाता है....मानना है कि बाबा नीम करौली खुद हनुमान जी के अवतार
थे….आश्रम उत्तराखंड के नैनीताल से 65 किलोमीटर दूर पंतनगर में है….लेकिन
आश्रम में देवदार के पेड़ों के बीच पांच देवी-देवताओं के मंदिर
हैं….साक्षात धर्म-संसद....इसी आश्रम में 1974 में एप्पल के फाउंडर….स्टीव
जॉब्स आए थे…एक्ट्रेस जुलिया रॉबर्ट्स भी यहां एक बार आ चुकी हैं….आश्रम
चलाने वाले ट्रस्ट ने पुष्टि की है कि फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने
यहां दो दिन बिताए थे…..भक्त, भक्ति और भगवान को मानव के अतिरिक्त कोई
दूसरा समझ ही नहीं सकता है....रिक्त स्थान की पूर्ति.....Fill in the
BLANKS.....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र
स्वयं का अनुभव.....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @
91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)....
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